भारतीय क्षत्रिय धर्म और अहिंसा ( है बलिदानी इतिहास हमारा) अध्याय — 8 (क ) -इस्लाम का आगमन और पराक्रमी भारतीय राजा दाहिर सेन

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हिन्दू समाज का संप्रदायों में विभाजन हो जाना और नए-नए सम्प्रदायों का जन्म होते जाना निश्चित ही हमारे सामाजिक जीवन के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ । इस प्रकार के सम्प्रदायों ने हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को क्षतिग्रस्त किया। नये-नये सम्प्रदायों के धर्माचार्यों ने भी कहीं न कहीं महात्मा बुद्ध के उपदेशों को ग्रहण कर लोगों को मानसिक रूप से दुर्बल करने का प्रयास किया। उदाहरण के रूप में महात्मा बुद्ध का उपदेश ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ बताया गया और इसी को देश व समाज की उन्नति का सूत्र घोषित किया गया । लोगों ने बड़ी संख्या में इस उपदेश को स्वीकार भी किया। जबकि वेद का उपदेश ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ था । निश्चित रूप से ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ से कहीं अधिक उत्तम उपदेश है । कहने का अभिप्राय है कि उपदेशों में इस प्रकार की मिलावट होती गई और लोग कहीं ना कहीं सांस्कृतिक बौद्धिक स्तर पर दुर्बल होते गए।

ईसाइयत व इस्लाम जैसे सम्प्रदाय भी वैदिक धर्म के प्रचार – प्रसार में आई कमी के फलस्वरूप जन्मे । जिस वेद का धर्म सर्वग्राही सर्व कल्याणकारी और सभी की उन्नति व विकास की कामना करने वाला होने के कारण सबको स्वीकार्य और मान्य था , जो सृष्टि के समस्त ज्ञान-विज्ञान का एकमात्र स्रोत था , जो भक्त के भीतर सच्ची आस्तिकता और सामाजिक संगठन की भावना उत्पन्न करने में सर्वथा समर्थ था , उसकी इस गरिमा और गौरवपूर्ण संस्कृति के विरुद्ध सम्प्रदायवाद और अज्ञान बढ़ने लगा । सृष्टि नियमों के विरुद्ध अपनी धारणा और मान्यताओं को लेकर इस्लाम के आक्रमणकारी भारत की ओर बढ़ने लगे। इस्लाम के आक्रमणकारियों के भारत की ओर बढ़ने को लेकर किसी कवि ने कितना अच्छा कहा है :–

हैरत की बात है कि वेदों की सर जमीन पर ।
वह आए हैं हाथों में कुरआन लिए हुए।।

वेदों के मुकाबले कुरान को लेकर जब इस्लाम का भारत में पदार्पण हुआ तो भारत के वीर क्षत्रिय योद्धाओं ने भी इस नवीन सम्प्रदाय की साम्प्रदायिक नीतियों और कार्यशैली का विरोध करने का मन बना लिया था । सामाजिक रुप से चाहे जितनी दुर्बलताएं देश के भीतर आ चुकी थीं , परन्तु देश का पौरुष और पराक्रम अभी भी थका हुआ नहीं था। वे आक्रमण करते – करते थमे नहीं तो भारत के विषय में भी इतिहास का यह गौरवपूर्ण तथ्य है कि हमारे योद्धा उनका सामना करते – करते कभी थके नहीं , वह आक्रमण करते – करते रुके नहीं तो हमारे वीर योद्धा उनके आक्रमणों का सामना करते – करते कभी झुके नहीं।
वैसे हमें इस समय के बारे में यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इस्लाम न केवल उस समय भारत की ओर शत्रुभाव से देख रहा था अपितु वह संसार के अन्य देशों को भी निगलने की तैयारी कर रहा था । यह एक मजहबी आंधी थी जो अरब की धरती से उठ रही थी और कई देशों व कई सभ्यताओं को अपनी चपेट में लेकर या तो निगल चुकी थी या निगलने की तैयारी कर रही थी। मुस्लिम इतिहासकारों ने इस आंधी को कुछ इस प्रकार दिखाने का प्रयास किया है कि जैसे यह केवल भारत की ओर ही आई और इसने भारत को पहले झटके में ही विनष्ट कर दिया , जबकि सच यह है कि यह आंधी विश्व के अन्य देशों की ओर भी फैली और कई देशों व कई सभ्यताओं को निगलने में सफल रही।

सदियों तक नहीं हिला पाया था इस्लाम भारत को

भारत के तत्कालीन इतिहास को लुटेरों के ‘लुटेरे इतिहासकारों’ की कलम से लिखी गई बातों के आधार पर लिखने का प्रयास किया जाता है । जिसे एक ‘अक्षम्य अपराध’ के रूप में ही माना जाना चाहिए। क्योंकि जब लुटेरे आक्रमणकारी भारत देश को लूटते थे और यहाँ पर नरसंहार करते थे तो उनकी उस लूट में से उन चाटुकार इतिहासकारों को उनका हिस्सा मिलता था , जिसे वह लेखन कार्य पर खर्च करते थे और अपनी आजीविका चलाते थे । ऐसे लेखकों से हम यह कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि वह भारत की धर्म , संस्कृति और देशभक्ति की भावना का सम्मान कहीं कर सकते थे ? इसके उपरान्त भी भारत के ऐसे अनेकों इतिहासकार और लेखक हुए हैं और वर्त्तमान में भी हैं , जिन्होंने इन्हीं मुस्लिम इतिहासकारों के वर्णन को आधार बना- बनाकर भारत के इतिहास के विकृतिकरण और तथ्यों के विलोपीकरण का कार्य किया है।
इस आंधी के बारे में यह एक आश्चर्यजनक किन्तु इतिहास का अकाट्य सत्य है कि भारत को यह सदियों बाद तक भी नहीं निगल सकी । तब ऐसे में निश्चय ही यह मानना पड़ेगा कि भारत के पास कुछ न कुछ ऐसा था , जिसके कारण इस्लाम को यहाँ असफल होना पड़ा । निश्चय ही भारत का पौरुष , पराक्रम , वीरता और योद्धाओं का देशाभिमान का भाव हमारे पास ‘कुछ ऐसा था’- जिसके कारण भारत भारत बना रहा और भारत की संस्कृति को इस्लाम सदियों बाद तक भी आहत नहीं कर सका । भारत के इन सभी महान गुणों में श्रीवृद्धि करने में गुर्जर समाज का विशेष योगदान रहा।

भारत के पराक्रम का प्रतीक राजा दाहिर सेन

अरब वालों का पहला प्रमुख आक्रमण भारत पर 712 ई0 में हुआ । इस आक्रमण का मुस्लिम नायक मोहम्मद बिन कासिम था । जबकि भारत की ओर से राजा दाहिर सेन सारे भारतीय समाज का नेतृत्व कर रहे थे। राजा दाहिर सिन्ध के सिन्धी ब्राह्मण सैन राजवंश के अन्तिम राजा थे। वह अत्यन्त प्रतापी , वीर , शौर्य सम्पन्न और देशभक्त शासक थे । उनके बारे में विदेशी इतिहासकारों ने बहुत कुछ गलत लिखा है । उसका कारण केवल यही है कि वह विदेशी लेखक और उनके राजनीतिक संरक्षक इस महान देशभक्त राजा के पौरुष से ईर्ष्या करते थे । अतः उन्होंने घृणावश ऐसा लिखा है। जिससे कि वह एक क्रूर और आततायी राजा के रूप में दिखाई दे । इस राजा ने विदेशी आक्रमणकारियों के आक्रमण का बहुत ही वीरता के साथ सामना किया ।

उसने भारत के अन्य राजाओं से किसी प्रकार की सहायता की याचना नहीं की और न ही इस बात की प्रतीक्षा की कि वे उसकी सहायता के लिए सेना लेकर आएं । जैसे ही उसे यह सूचना मिली कि विदेशी आक्रमणकारी भारत की सीमाओं की ओर बढ़ा चला आ रहा है , वह तुरन्त दहाड़ते हुए शेर की भांति शत्रु दल पर टूट पड़ा । महाराजा दाहिर की सेना में गुर्जर सैनिकों तथा सेनापति मानू गुर्जर की उपस्थिति का उल्लेख भी मिलता है । जिसने देवल (कराची ) की बन्दरगाह में अरब के समुद्री जहाजों के उन नागरिकों को मारकर सामान लूट लिया था जो वहाँ की सिन्धी हिन्दू स्त्रियों का अपहरण करके ले जाना चाहते थे । बाद में वही मानू गुर्जर महाराजा दाहिर का प्रधान सेनापति बना था। निस्सन्देह आज सिन्ध का वह क्षेत्र भारत का एक अंग नहीं है , परन्तु इतिहास का वह कालखण्ड तो सृष्टि पर्यंत भारत का एक अंग रहेगा । ऐसे में उस सत्य घटना का समावेश कर अपने मानू देव गुर्जर सेनापति को भावपूर्ण श्रद्धांजलि तब तक नहीं दी जा सकती जब तक उस घटना का विस्तृत विवरण इतिहास में एक प्रेरक प्रसंग के रूप में दर्ज नहीं हो जाता है।
उनके समय में ही अरबों ने सर्वप्रथम सन 712 ई0 में भारत (सिंध) पर आक्रमण किया था। मोहम्मद बिन कासिम ने 712 में सिन्ध पर आक्रमण किया था। जहाँ पर राजा दाहिर सैन ने उन्हें रोका और उनके साथ युद्ध लड़ा । उनका शासन काल 663 से 712 ई0 तक माना जाता है। अपने शासनकाल में वह इससे पूर्व भी अरब आक्रमणकारियों के आक्रमणों को रोकते रहे थे । जिनका कोई उल्लेख जानबूझकर नहीं किया जाता , क्योंकि पहले किए गए उन युद्धों में वह सफल रहे थे। उन्होंने अपने शासनकाल में अपने सिन्ध प्रान्त को बहुत ही सशक्त बनाया । युद्ध का परिणाम चाहे जो रहा हो , लेकिन वर्तमान भारत उनके उपकारों का ऋणी है , क्योंकि उनका सारा जीवन ही देशभक्ति से ओतप्रोत और देश सेवा के लिए समर्पित रहा।
( शेष भाग कल )

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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