राखी का त्यौहार प्रतीक है भाई बहन के असीम प्रेम और प्यार का
3 अगस्त को श्रावण मास का आखिरी सोमवार बना रहा है रक्षाबंधन को खास।
भगवत कौशिक–भारत की सनातन परंपरा पर्व प्रधान है। ये पर्व सृष्टि के क्रमिक विकास के वार्षिक पड़ाव हैं। प्रति वर्ष आकर ये जीवन के विकासक्रम को संस्कारित करते हैं और आगे अपने धर्म के निर्वहन की प्रेरणा भी देते हैं। यह धर्म कोई मजहब या पंथ नहीं होता बल्कि मानव का होता है। इसमें राजा का धर्म, प्रजा का धर्म, पिता का धर्म, पुत्र का धर्म, भगिनी का धर्म, भाई का धर्म, पति का धर्म, पत्नी का धर्म, बड़ों का धर्म, छोटों का धर्म आदि निहित हैं। यह जीवन की संस्कृति का निर्माण करते हैं। इन पर्वों में से ही एक महत्वपूर्ण पर्व है रक्षा सूत्र बंधन।आज के दौर में जब रिश्ते धुधंलाते जा रहे हैं, ऐसे में भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मजबूत प्रेम पूर्ण आधार देता है। रक्षाबंधन का त्योहार। इस पर्व का ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक और राष्टीय महत्व है। इसे श्रावण पूर्णिमा के दिन उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। रक्षाबंधन पर्व का ऐतिहासिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय महत्व है। यह भाई एवं बहन के भावनात्मक संबंधों का प्रतीक पर्व है। इस दिन बहन भाई की कलाई पर रेशम का धागा बांधती है तथा उसके दीर्घायु जीवन एवं सुरक्षा की कामना करती है।राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच का कार्यकलाप नहीं रह गया।
अब राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, धर्म की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है। विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ने इस पर्व पर बंग भंग के विरोध में जनजागरण किया था और इस पर्व को एकता और भाईचारे का प्रतीक बनाया था।
रक्षा सूत्र बंधन का त्योहार कब शुरू हुआ–
इसकी कोई सटीक जानकारी नहीं मिलती लेकिन यह पर्व है अत्यंत प्राचीन, क्योंकि इसकी प्राचीनता के प्रमाण उपलब्ध हैं। भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है। इसके अलावा कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमे युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की उंगली घायल हो गई थी, श्री कृष्ण की घायल उंगली को द्रौपदी ने अपनी साड़ी मे से एक टुकड़ा बाँध दिया था, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट मे द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था।
पचास और साठ के दशक में रक्षाबन्धन हिंदी फ़िल्मों का लोकप्रिय विषय बना रहा। ना सिर्फ़ ‘राखी’ नाम से बल्कि ‘रक्षाबन्धन’ नाम से भी कई फ़िल्में बनायीं गयीं। ‘राखी’ नाम से दो बार फ़िल्म बनी, एक बार सन 1949 में, दूसरी बार सन 1962 में, सन 62 में आई फ़िल्म को ए. भीमसिंह ने बनाया था, कलाकार थे अशोक कुमार, वहीदा रहमान, प्रदीप कुमार और अमिता। इस फ़िल्म में राजेंद्र कृष्ण ने शीर्षक गीत लिखा था- “राखी धागों का त्यौहार”। सन 1972 में एस.एम. सागर ने फ़िल्म बनायी थी ‘राखी और हथकड़ी’ इसमें आर.डी. बर्मन का संगीत था। सन 1976 में राधाकान्त शर्मा ने फ़िल्म बनाई ‘राखी और राइफल’। दारा सिंह के अभिनय वाली यह एक मसाला फ़िल्म थी। इसी तरह से सन 1976 में ही शान्तिलाल सोनी ने सचिन और सारिका को लेकर एक फ़िल्म ‘रक्षाबन्धन’ नाम की भी बनायी थी।
ऐतिहासिक प्रसंग—
★★मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी लड़ने में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की।
★★सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरूवास को राखी बाँधकर अपना मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया।
★★राखी का मुहूर्त:
03 अगस्त को सुबह 9.28 बजे के बाद किसी भी समय राखी बांधी जा सकती है। वैसे राखी बांधने का सबसे शुभ मुहूर्त दोपहर 01.48 बजे से शाम 04.29 बजे तक रहेगा। दूसरे शुभ मुहूर्त की बात करें तो ये शाम 07.10 बजे से रात 09.17 बजे तक रहेगा। रक्षा बंधन का पर्व रात 09.17 रात तक मनाया जा सकता है।
रक्षा बंधन, राखी
भाई बहन का त्योहार
जहाँ हो प्यार की बौछार
एक दूसरे के प्रति श्रद्धा, प्रेम
विश्वास और समर्पण
तब ही हो ये त्योहार वर्ना सब बेकार
जहाँ हो इर्ष्या, द्वेष मन में विकार
तो कहाँ होता त्योहार साकार
सब लगता दिखावा, निराधार
ये धागा हो प्रेम का विश्वास का
ना कि मिठाई का और उपहार का
मिठाई के बदले दिलों में मिठास
उपहार के बदले, एक दूसरे पर
आँच आने पर मर मिटने की कला
प्रेम प्यार से भरे रिश्ते को
प्रेम से सींचना
ना लाना कभी मन में कोई विकार
तभी मनाना प्रेम से ये त्योहार
एक टुकड़े वस्त्र का कर्ज चुकाया
कृष्ण ने कृष्णा की भरी सभा में
लाज बचाकर भाई बनना तो वैसा ही
बहन बनना तो सुभद्रा और पांचाली सा!
डॉ. पल्लवी