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आज तीसरे दिन घर के गैराज में मध्यम ऊंचाई के पेड़ पर स्थित टेलरबर्ड अर्थात दर्जी चिड़िया के दूसरे , तीसरे अंडे से भी चूजे निकल आए हैं| अंडा जोकि ऑर्गेनिक वेसल अर्थात जैविक पात्र होता है उस से निकलकर तीनों चिड़ियों के बच्चे का जन्म हो चुका है| पहले नन्ही दर्जी चिड़िया की जिम्मेदारी अपने अंडों को खराब ना होने देना , वातावरण के अनुकूल बनाकर रखना साथ ही अंडे खाने वाले सरीसृप पक्षियों से उसकी रक्षा करना था….. अभी यहीं से एक नई चुनौती जिम्मेदारी शुरू हो जाती है इन नवजात बच्चों का बेहतर पोषण खुराक की देखभाल साथ ही इनकी साफ-सफाई ,घोसले की साफ-सफाई भी सुनिश्चित होना| सांप गिरगिट बाज कौवा आदि का खतरा तो इन नन्हे कोमल चूजे पर तब तक मंडराता रहेगा… जब तक यह उड़ने लायक नहीं हो जाते…. अंडों से निकलकर किसी चिड़िया के बच्चे की पहली उड़ान के बीच का समय फ्लेजिंग पीरियड (उड़ान का अंतराल) कहलाता है……. अलग-अलग परिंदों के मामले में यह अवधि भिन्न-भिन्न होता है…. दर्जी चिड़िया के मामले में यह अवधि 22 दिनों की है… अर्थात अभी इन तीनों चूजा को उड़ने के लिए 22 दिन बेहतर पोषण प्राप्त करना होगा… तब कहीं जाकर यह उड़ पाएंगे|
चूजों की सुरक्षा तो प्राथमिक तौर पर दर्जी चिड़िया घोसला बनाकर ही सुनिश्चित कर देती है मध्य ऊंचाई के पेड़, झुंड आदि पर पर 5 से 6 फीट की ऊंचाई पर ऐसे भाग पर घोंसला बनाया जाता है जो आसानी से शिकारी को ना दिखे| दूसरी जो फुलप्रूफ व्यवस्था होती है वह होती है घोसले की विशेष साफ-सफाई| गंदगी व रोगों का चोली दामन का साथ होता है| लेकिन परिंदों के मामले में गंदगी रोगों के साथ साथ मौके की ताक पर बैठे हुए शिकारी को भी आमंत्रित कर सकती हैं……………….| नवजात चुजो के मल की गंध को सूंघकर आकर्षित कोई भी सर्प नेवला छिपकली परिंदों के हि दुश्मन मांसाहारी परिंदे घोसले तक कभी भी आ धमक सकते हैं |
सर्वरक्षक , सर्वपिता परमेश्वर ने परिंदों के घोसले को गंदगी से मुक्त करने के लिए बहुत ही अनोखी व्यवस्था की है| दर्जी चिड़िया के नवजात चूजे जो संख्या में 1 से लेकर 4 तक हो सकते हैं तेजी से बड़े होने के लिए अपने वजन का दुगना कीड़े मकोड़ों के रूप में आहार पाते हैं|
प्रत्येक जीवधारी जो खाता है उसे पचाकर शेष को अपशिष्ट मल के रूप में निकालता भी है…… इंसान गाय भैंस घोड़ा अन्य जीव-जंतुओं के नवजात बच्चों का मल जन्म से लेकर एक निश्चित अवधि तक अलग गुणधर्म लिए होता है…… परिंदों में भी ऐसा ही है लेकिन एक खास विशेष व्यवस्था है…. दर्जी चिड़िया सहित अन्य चिड़ियों के चूजे जब घोसले में मल त्याग करते हैं… तो उनका मल पेट से ही विशेष सफेद लीक प्रूफ झिल्ली (मेंब्रेन) में बंद होकर आता है…. Fasical sac भी कहते हैं| ऐसा तब तक होता है जब तक वह उड़ने लायक ना हो जाए………….|
चूजे जैसे ही मल त्याग करते हैं, झिल्ली में मल बंद होने के कारण वह घोसले को गंदा नहीं करता, ना ही चूजो का शरीर गंदा होता है… जैसे ही मादा चिड़िया घोसले में आती है वह उस मल मूत्र की थैली को अपनी चोच से उठाकर घोसले से दूर किसी अन्य स्थान पर ठिकाने लगा देती…. अन्य परिंदे छोटे जीव इसे बड़े चाव से खाते हैं|
साथ ही चिड़िया दाना पानी खुराक को घोसले में गिरने नहीं देती उसे तुरंत ठिकाने लगाती है खाकर… हम कहे सकते हैं सुरक्षा के मामले में नो कंप्रोमाइज….. जीरो टोलरेंस पॉलिसी भी कह सकते हैं…….. निष्कर्ष यह निकलता है चूजो की मल थैली डायपर का ही काम करती है ,जो पेट से ही बनकर आता है……| ऐसा डायपर जिसका इंसानी फैक्ट्री made diaper की तरह कोई नुकसान नहीं वातावरण पर्यावरण को….. नहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आर्थिक शोषण………|
हमने देखा है मनुष्य के नवजात शिशु की देखरेख में डायपर के खर्च खरीद में ही निम्न मध्यम वर्ग के परिवार की जेब ढीली हो जाती है बच्चे को डायपर पर लगाए तो दिक्कत नहीं लगाए तो दिक्कत……..|
नीचे फोटो में घोसले को देखिए दर्जी चिड़िया ने household item कॉटन के धागे को भी खोसला निर्माण में इस्तेमाल किया है यह प्रत्येक उस चीज को इस्तेमाल करती है जो इसके घोंसले के लिए जरूरी होता है…. चाहे वह नेचर मेड हो या मैन मेड|
शेष अगले लेख में…..!
आर्य सागर खारी✍✍✍