समाचार पत्रों को पढ़ने पर पता चला कि कई व्यापारी संगठनों ने सरकार से अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए बंद का आयोजन किया है। वो भी इसलिए कि सरकार कोई भी कड़ा कानून न बनाये।
लोकतंत्र में अपनी नाराजगी या असहमति प्रकट करना नागरिकों का मौलिक अधिकार होता है । नागरिकों के इस मौलिक अधिकार की सुरक्षा करना सरकार का दायित्व होता है । यह व्यवस्था इसलिए है कि सरकार कोई जनविरोधी निर्णय नहीं ले पाए और जनता जहां सरकार को जनविरोधी निर्णय देते हुए देखे वहां अपनी नाराजगी और असहमति प्रकट कर सरकार को सतर्क और सावधान कर सकें ।
हमारे संविधान में भी जनता को सरकार के निर्णयों से असहमति और नाराजगी प्रकट करने का संवैधानिक अधिकार प्रदान किया है । पर इस सब के उपरांत भी हम सभी अपनी मानसिकता को कब तक बनाये बैठे रहेंगे कि हमें तो कानून का उल्लंघन करना ही है। सरकार जो कानून बनाती है साधारण जनता के भले के लिए ही बनाती है। आज के समय में उसमें कौन सी बुराई है कि जब भी घर से बाहर निकलें, मास्क लगाकर ही निकलें। लेकिन दुख व दुर्भाग्य का विषय है कि सरकार के इस निर्णय पर भी कुछ लोगों को एतराज है।
हमारे प्यारे भारत देश में कानून से किसी को कोई डर नहीं है। यही वजह है कि आये दिन हत्याएं एवं बलात्कार होना आम बात है। बलात्कार एवं हत्या जैसे जघन्य अपराध के लिए एक निश्चित समय सीमा के अन्दर मृत्युदंड का प्रावधान किया जाना चाहिए।
सरकार कोई कड़ा कानून लाने का विचार भी करती है तो हमारे जैसे अपने आपको पढ़े लिखे एवं समझदार समझने वाले लोग सड़कों पर उतरकर कानून का विरोध प्रारम्भ कर देते हैं। जबकि यही लोग सरकार की इस बात के लिए आलोचना करते भी दिखाई दे जाएंगे कि हत्या और बलात्कारों का क्रम बंद क्यों नहीं हो रहा है ? – एक तरफ यह हत्या और बलात्कार बंद कराने की बात करते हैं तो दूसरी ओर जब सरकार इन दोनों प्रकार के अपराधों को रोकने के लिए कठोर कानून लाने की बात करती है तो उसका विरोध करते हैं , समझ नहीं आता कि फिर व्यवस्था में सुधार कैसे आए ?
हमें अपनी मानसिकता को बदलना होगा। अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में सोचना होगा । तभी हम विश्वगुरु होने का सपना देख सकते हैं। समाज में रहकर जो असामाजिक लोग असामाजिकता का काम करते हैं या जन सामान्य के मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं ऐसे राक्षस प्रवृत्ति के लोगों का विनाश करना सरकार का उद्देश्य होता है । उसके लिए कठोर कानून लाने अपेक्षित होते हैं । जनसाधारण को चाहिए कि ऐसे कठोर कानूनों का स्वागत करे । जिससे समाज में शांति व्यवस्था स्थापित करने में सहायता मिले।
अमेरिका से लौटी एक महिला से पूछा गया कि अमेरिका एवं भारतवर्ष में क्या फर्क समझ में आता है? उस भद्र महिला का जवाब मिला कि भारतवर्ष में कुत्ते को लेकर रोड पर घूमना एवं यत्रतत्र मलमूत्र त्यागने पर कोई पाबन्दी नहीं है।
हम सब प्यारे भारतवासियों को मिलकर अपनी मानसिकता को बदलना होगा एवं गलत करने वालों के खिलाफ कड़े से कड़े कानून कि मांग करनी होगी तभी हम एक उन्नत भारत का सपना देख सकते है।
मेरा किसी भी राजनैतिक पार्टी से कोई लेना देना नहीं है, सिर्फ एक नागरिक होने के नाते इतना ही कहना चाहूंगा कि आज झारखण्ड में एक पढ़े लिखे युवा मुख्यमंत्री है एवं बन्ना गुप्ता जैसे युवा, साहसी, जुझारू, निडर, मेहनती एवं सब का भला चाहने वाले व्यक्ति भगवत कृपा से हमारे स्वास्थ्य मंत्री हैं
आवश्यकता इस बात की है कि किस नियम का उल्लंघन करने पर सजा मिलेगी उस नियम को प्रसारित प्रचारित किया जाए एवं लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाने का प्रयास किया जाऐ की ये नियम हम मान कर चले क्योंकि यह नियम हमारे ही फायदे के लिए बनाये गये है।
हमें यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि इन नियमो का गलत फायदा उठाकर सरकारी ओहदा पर बैठे लोग इस का दुरुपयोग न करे।
साथ ही सरकार से निवेदन करना चाहुँगा इस संकटमय घड़ी में कोई भी कदम लोकहित के विरुद्ध न उठाया जाये। सरकार ने ६० वर्ष के ऊपर के व्यक्ति को घर से बाहर जाने के लिए पाबंदी लगाई है यह बहुत ही उचित कदम है किन्तु सरकार पर आसीन महानुभावों को यह भी समझना चाहिए की एक अगस्त से जमीन जायदाद के रजिस्ट्री का दर बढ़ाने का जो प्रस्ताव है क्या ये उचित है ? ऐसी परिस्थिति में जमीन जायदाद के खरीददार भी मज़बूरीवश ६० वर्ष से अधिक विक्रेता को रजिस्ट्री कराने हेतु दबाब बना रहे हैं।
अतः सरकार से अनुरोध है अभी इस कोरोना काल में इस प्रकार के अयुक्तिसंगत निर्णय लेकर जन विरोधी कार्य न करे। जबकि यह भी सत्य है कि विगत पाँच वर्षों में ज़मीन जायदाद की वास्तविक कीमत में कोई वृद्धि नहीं हुई है।
राजेंद्र कुमार अग्रवाल , जमशेदपुर
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