दोमुहा सांप यानी दुमयी
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दोमुहा सांप (डबल फेस स्नेक) पूरी दुनिया में केवल भारतीय उपमहाद्वीप उसी के हिस्से रहे पाकिस्तान बांग्लादेश ईरान में मूलतः पाया जाता है | राजस्थान मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचल में इसे दुमयी बोलते हैं…. लोगों की मान्यता को इसको लेकर बड़ी ही अजीबोगरीब है लोग इसे सांप नहीं मानते | जबकि वैज्ञानिक सच्चाई यह है यह नॉनवेनॉमस अर्थात विषहीन सांप है… अंतर केवल इतना है यह इंसानों को नहीं काटता जबकि अन्य विषहीन सांप इंसानों को काट लेते हैं| राजस्थान के रेगिस्तान मरुभूमि में यह बहुतायत में पाया जाता है वहां का वातावरण इसे बहुत रास आता है| इसका वैज्ञानिक नाम Indian red sand boa snake है|
बात इस की शारीरिक संरचना की करें तो इसके दो नहीं केवल एक मुंह होता है… इसकी पूछ आकृति इसके मुंह की तरह होती है साथ ही अपनी पूंछ को मुंह की तरह उठा लेता है इस कारण इसे दोमुंहा सांप कहा जाता है… लोगों को इसके दो मुंह होने का भ्रम होता है|
पूरी दुनिया में इस सांप की जबरदस्त तस्करी होती है भारतीय भूभाग से…. तस्करों के अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 5 लाख से के लेकर 5 करोड़ तक होती है| मलेशिया थाईलैंड जापान आदि में इस सांप घर पर रखना सौभाग्य का प्रतीक समझा जाता है….| दक्षिण अमेरिका अफ्रीका की जनजातियां इस सांप को पवित्र आत्माओं का प्रतिनिधि मानती है… चीन में यह मानता है इस सांप को खाने से समस्त सेक्सुअल disorder दूर हो जाते हैं… शारीरिक शक्ति मिलती है, पश्चिमी समाज में एचआईवी के इलाज का दावा भी भी इसके मांस के सेवन से किया जाता है |इसके अलावा भारत में पाखंडी तांत्रिक भी इसका इस्तेमाल लोगों को ठगने के लिए तांत्रिक क्रियाओं में करते हैं | बेवजह की इन मान्यताओं का कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं है | दुनिया के धनी लोग इसे घर में रखते हैं तथा इसके मांस का सेवन करते हैं… यही कारण इसकी तस्करी होने से यह शानदार सरीसृप लुप्तप्राय हो गया है | यह सांप जितना वजनदार चमकदार युवा होता है उतनी ही इसकी कीमत होती है| सुर्ख लाल से लेकर भूरे पीले रंग में यह पाया जाता है| चूहे कीटों को खाने वाला यह दोमुहा सांप इंसानों ,अन्य जंतुओं को कोई हानि नहीं पहुंचाता |
भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में इस सरीसृप को संरक्षित घोषित किया गया है… फिर भी प्रमुखता से यदा-कदा इसकी तस्करी शिकार के मामले सामने आते रहते हैं | पहले ग्रामीण अंचल जहां गोबर के उपले/ कंडे आदि पाथ कर रखे जाते थे या गांव की बाड़े वहां इस आलसी लेकिन शानदार सरीसृप के दर्शन सुलभ थे लेकिन अब विलुप्त प्राय होने से संकटग्रस्त हो गया है… अब बहुत कम दिखाई देता है|
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आर्य सागर खारी ✍✍✍