आशीष राय
भारत का उपभोक्ता बाजार वाणिज्यिक संस्थानों को अपने कारोबार की बढ़ोतरी का शुरू से अवसर देता रहा है और इसी का अनुचित लाभ लेकर कारोबारी उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी, छल व कपट का भी कार्य भी करते रहे हैं।
भारत की जनसंख्या ने विश्व व्यापार को भारत में निवेश करने के लिए सदैव आकर्षित किया है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट कहती है कि आने वाले 10 वर्षों में भारत, अमेरिका और चीन के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बनने को तैयार है। रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक भारत में उपभोक्ता खर्च 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर छह ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो सकता है। भारत वर्तमान में 7.5 प्रतिशत की वार्षिक जीडीपी विकास दर के साथ, दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
भारत का उपभोक्ता बाजार वाणिज्यिक संस्थानों को अपने कारोबार की बढ़ोतरी का शुरू से अवसर देता रहा है और इसी का अनुचित लाभ लेकर कारोबारी उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी, छल व कपट का भी कार्य भी करते रहे हैं। उपभोक्ताओं के साथ कपट व धोखाधड़ी के कारण ही भारत सरकार को 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम कानून लाना पड़ा जिससे कि उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा की जा सके। इसके लिए उपभोक्ताओं के शिकायत निवारण हेतु उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों का भी गठन हुआ।
बदलते समय के साथ-साथ वाणिज्यिक क्षेत्रों में काफी विस्तार हुआ है। इसी के साथ-साथ प्रतिस्पर्धा के कारण प्रलोभन देकर उपभोक्ताओं को अपने जाल में फंसाने का कार्य भी शातिराना अंदाज में बढ़ने लगा। उपभोक्ता भी विभिन्न प्रकार के अनुचित नियम एवं शर्तों के कारण भ्रम की स्थिति में आ ही जाते हैं।
बदलते परिवेश में उपभोक्ता आयोगों के अतिरिक्त उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए कोई केंद्रीकृत व्यवस्था का ना होना, ई-कॉमर्स का बढ़ता दायरा और उपभोक्ता आयोगों के सुदृढ़ीकरण की आवश्यकता ने सरकार को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में बदलाव हेतु सोचने पर विवश किया। काफी जद्दोजहद, विचार-विमर्श और इस संबंध में बनी कमेटियों की संस्तुति के आधार पर उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019 तैयार करके संसद के पटल पर रखा गया। संसद की संस्तुति के बाद, अब उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019 ने अधिनियम बनकर 34 वर्ष पुराने उपभोक्ता कानून की जगह ले ली है।
नये कानून से उपभोक्ताओं को होने वाले लाभ
नए कानून के अंतर्गत केंद्र सरकार उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, संरक्षण करने और उन्हें लागू करने के लिये केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority- CCPA) का गठन करेगी। यह अथॉरिटी उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों को विनियमित करेगी। महानिदेशक की अध्यक्षता में CCPA की एक अन्वेषण शाखा (इनवेस्टिगेशन विंग) होगी, जो ऐसे उल्लंघनों की जाँच या इनवेस्टिगेशन कर सकती है।
भ्रामक विज्ञापनों के माध्यम से अपने उत्पादों और सेवाओं को बेचना व्यापारी वर्ग के लिए आम बात-सी हो गई है। भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए भी नए कानून में प्रावधान किए गए हैं। CCPA झूठे या भ्रामक विज्ञापन के लिये निर्माताओं या प्रचार करने वाले पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगा सकती है। दोबारा अपराध की स्थिति में यह जुर्माना 50 लाख रुपए तक बढ़ सकता है। वस्तु निर्माताओं को दो वर्ष तक की कैद की सजा भी हो सकती है। जो हर बार अपराध करने पर पाँच वर्ष तक बढ़ सकती है। दोषपूर्ण उत्पादों या सेवाओं को रोकने के लिये निर्माताओं और सेवा प्रदाताओं की ज़िम्मेदारी का प्रावधान होने से उपभोक्ताओं को छान-बीन करने में अधिक समय खर्च करने की अब जरूरत नहीं होगी।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नए कानून में उपभोक्ता की परिभाषा को कुछ हद तक विस्तारित किया गया तो कुछ हद तक सीमित भी किया गया है। नये कानून के अनुसार अब ‘उपभोक्ता’ वह व्यक्ति है जो अपने इस्तेमाल के लिये कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है। इसमें वह व्यक्ति शामिल नहीं है जो दोबारा बेचने के लिये किसी वस्तु को हासिल करता है या वाणिज्यिक उद्देश्य के लिये किसी वस्तु या सेवा को प्राप्त करता है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके, टेलीशॉपिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग या सीधे खरीद के ज़रिये किया जाने वाला सभी तरह का ऑफलाइन या ऑनलाइन लेन-देन शामिल है।
इस नए कानून में उत्पाद की जिम्मेदारी भी तय की गई है। उत्पाद की ज़िम्मेदारी का आशय- उत्पाद के निर्माता, सेवा प्रदाता या विक्रेता की ज़िम्मेदारी। यह इनकी ज़िम्मेदारी होगी कि ये किसी खराब वस्तु या सेवा के कारण होने वाले नुकसान या क्षति के लिये उपभोक्ता को मुआवज़ा दें। मुआवज़े का दावा करने के लिये उपभोक्ता को उत्पाद या सेवा में खराबी या दोष से जुड़ी कम-से-कम एक शर्त को साबित करना होगा।
उपभोक्ता कानून में शुरू से ही यह स्पष्ट प्रावधान है कि यदि किसी उत्पाद में दोष है या किसी सेवा में कमी की गई है तो इसके विरुद्ध उपभोक्ता, उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकता है। उपभोक्ता को शिकायत दर्ज कराने के लिए किसी अधिवक्ता की सहायता की भी आवश्यकता नहीं है। शिकायत स्वयं उपभोक्ता या उसके अपने अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा भी दर्ज कराई जा सकती है। शिकायत पंजीकृत डाक द्वारा भी भेजी जा सकती है। नए कानून के अनुसार अब शिकायत की ई-फाइलिंग भी की जा सकती है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार उपभोक्ता किसी दोषपूर्ण उत्पाद या सेवा में कमी के लिए 2 वर्ष के अंदर ही शिकायत दर्ज करा सकता है। शिकायत दर्ज कराने के पूर्व उपभोक्ता को संबंधित निर्माता या सेवा प्रदाता को नोटिस भेजकर उत्पाद में सुधार या बदलाव, सेवा में की गई कमी की पूर्ति के लिए भी आग्रह कर लेना चाहिए। इस नोटिस के माध्यम से आयोग में जाने से पूर्व समस्या के हल की संभावना रहती है। यदि कोई हल ना निकले तो उपभोक्ता आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग देश में 3 चरणों में कार्य करता है:- जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग।
नए कानून के अनुसार जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में अब एक करोड़ की राशि तक के विवाद निस्तारित किए जा सकते हैं। इसी प्रकार एक करोड़ से ऊपर और 10 करोड़ तक के विवाद हेतु राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग तथा 10 करोड़ से ऊपर की राशि के विवाद पर राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष ही शिकायत दर्ज करा सकते हैं। अंतिम अपील देश के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दाखिल की जाती है।
नए कानून में यह भी प्रावधान किया गया है कि अब उपभोक्ता अपने निवासी क्षेत्र में स्थित उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकता है चाहे विपक्षी पार्टी उस क्षेत्र में रहती हो या ना रहती हो साथ ही साथ यह व्यवस्था भी की गई है कि यदि विपक्षी पार्टी में से कोई भी एक पार्टी जिस भी जिला उपभोक्ता निवारण आयोग की सीमा के अंतर्गत निवास करता हो उस आयोग के समक्ष भी उपभोक्ता शिकायत दर्ज करा सकते हैं। पूर्व के कानूनों में यह व्यवस्था थी कि उपभोक्ता विपक्षी पार्टी की सीमा में ही स्थित उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में शिकायत दर्ज करा सकता था परंतु इस नए परिवर्तन से उपभोक्ताओं को अपनी शिकायत दर्ज कराने में अब आसानी हो सकेगी।
उपभोक्ता अपने क्षेत्राधिकार व शिकायत के अनुसार, जिला आयोग, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के समक्ष अपनी शिकायत एक निर्धारित शुल्क का भुगतान करके दाखिल कर सकता है।
उपभोक्ताओं को अपनी शिकायत दर्ज कराने के पहले कुछ सावधानियों की भी आवश्यकता रखनी चाहिए। जैसे-
– अपनी शिकायत के ड्राफ्ट में यह बताना आवश्यक होगा कि आप केस क्यों दाखिल करना चाहते हैं।
– शिकायत में बताएं कि मामला इस फोरम के क्षेत्राधिकार में कैसे आता है।
– शिकायत पत्र के अंत में आपको अपने हस्ताक्षर करने जरूरी हैं और यदि आप किसी अन्य व्यक्ति में माध्यम से शिकायत दर्ज कराना चाहते हैं तो शिकायत पत्र के साथ एक प्राधिकरण पत्र (authorisation letter) लगाना आवश्यक होगा।
– शिकायतकर्ता का नाम, पता, शिकायत का विषय, विपक्षी पक्ष या पार्टियों के नाम, उत्पाद/सेवा का विवरण, पता का उल्लेख।
– अपने आरोपों का समर्थन करने वाले सभी दस्तावेजों की प्रतियां; जैसे खरीदे गए सामानों के बिल/ सेवा हेतु भुगतान की राशि का बिल, वॉरंटी और गारंटी दस्तावेजों की फोटोकॉपी, कम्पनी या व्यापारी को की गयी लिखित शिकायत की एक प्रति और उत्पाद को सुधारने का अनुरोध करने के लिए व्यापारी को भेजे गए नोटिस की कॉपी भी लगा सकते हैं।
– अपनी शिकायत में क्षतिपूर्ति राशि का दावा इत्यादि का उल्लेख, क्षतिपूर्ति के अलावा, धनवापसी, मुकदमेबाजी में आयी लागत और ब्याज, उत्पाद की टूट-फूट और मरम्मत में आने वाली लागत का पूरा खर्चा मांग सकते हैं।
– इन सभी खर्चों को अलग-अलग मदों का विवरण डालना चाहिए।
– कुल मुआवजा शिकायत फोरम की केटेगरी के हिसाब से ही मांगना चाहिए।
– ध्यान रहे अधिनियम में शिकायत करने की अवधि घटना घटने के बाद से 2 साल तक ही है और यदि शिकायत दाखिल करने में देरी हो, तो देरी के कारण की व्याख्या ऐसे करें कि ट्रिब्यूनल द्वारा स्वीकार की जा सके।
– शिकायत के साथ एक हलफनामा/एफीडेविट दर्ज करने की भी आवश्यकता है, कि शिकायत में बताए गए तथ्य सही हैं।
यदि उपरोक्त सावधानियों का ध्यान देते हुए उपभोक्ता अपनी शिकायत आयोग के समक्ष दर्ज कराता है तो उसको इसका लाभ मिलता है और अनावश्यक खर्चों से भी अपने को बचा सकता है।
बदलते परिवेश को ध्यान में रखते हुए यह उम्मीद तो की ही जा सकती है कि सरकार के द्वारा लाए गए इस नए उपभोक्ता कानून से निश्चित रूप से सामान्य उपभोक्ताओं को लाभ मिलेगा।