कारगिल युद्ध में स्वीडन से खरीदी गई बोफोर्स तोप का रहा जलवा

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अनुराग गुप्ता

कारगिल युद्ध को कारगिल संघर्ष के नाम से भी जाना जाता है। इस युद्ध की शुरुआत मई 1999 में हुई थी। इस युद्ध में मिली विजय का श्रेय सेना के हथियारों को भी जाता है। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि इस दौरान कौन-कौन से हथियार इस्तेमाल किए गए थे।

यदि कोई कहे कि उसे मौत से डर नहीं लगता, या तो वो झूंठ बोल रहा है, या फिर वो भारतीय सेना का सिपाही है… इस पंक्ति को आपने कई बार सुना और दोहराया होगा। जितने बार आप इस पंक्ति को दोहराएंगे आपका पूरा शरीर रोमांच से भर जाएगा और ठीक इसी जज्बे के साथ रणबांकुरों ने सीमा पर अपनी बहादुरी दिखाई थी। जिसको देख हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए थे। हम बात कर रहे हैं कारगिल युद्ध की जिसकी याद में हम सब 26 जुलाई के दिन को ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाते हैं।

कारगिल युद्ध को कारगिल संघर्ष के नाम से भी जाना जाता है। इस युद्ध की शुरुआत मई 1999 में हुई थी। इस युद्ध में मिली विजय का श्रेय सेना के हथियारों को भी जाता है। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि इस दौरान कौन-कौन से हथियार इस्तेमाल किए गए थे।

जीत की तरफ बढ़ता बोफोर्स का गोला

कारगिल युद्ध में स्वीडन से खरीदी गई बोफोर्स तोप ने अपना जलवा बिखेरा था। 77-बी बोफोर्स तोप से निकले गोले ने पाकिस्तानी सैनिकों को अपनी पोस्ट छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था और भारतीय सैनिकों को आगे बढ़ने के लिए कवर भी दिया। इस तोप से निकले एक-एक गोले ने जीत का रास्ता बनाया था और फिर सैनिकों के हौसलों ने पाकिस्तानियों को धूल चटाई थी। इस तोप ने तोलोलिंग की चोटी के साथ ही द्रास सेक्टर की हर चोटी में छिपे दुश्मन पर निशाना लगाया था।

उस वक्त सेना ने बोफोर्स का मोर्चा 3 अधिकारियों और 69 जवानों को सौंपा था। 77-बी बोफोर्स तोप की रेंज 42 किमी है। इसमें से 105 एमएम के गोले निकलते है। 155 एमएम लंबी बैरल वाली यह तोप एक मिनट में 10 गोले दागने की हिम्मत रखती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे -3 डिग्री से लेकर 70 डिग्री के ऊंचे कोण तक फॉयर किया जा सकता है।

बोफोर्स से निकले हर एक गोले ने तबाही मचाई थी और पाकिस्तान की रक्षा पंक्ति को पूरी तरह से साफ कर दिया था। साथ ही साथ इस तोप की वजह से पाकिस्तानी सेना के एक हजार जवान बुरी तरह से जख्मी हो गए थे।

इतिहास में पहली बार देखा गया कि 18 गन बैरल महज 25 दिनों में फॉयर करते करते घिस गई थी। इसके बावजूद रेजिमेंट ने अपना हमला रोका नहीं था बल्कि दूसरी रेजिमेंट से नई गन बैरल लेकर हमला जारी रखा था और जीत की राह आसान बनाने में मदद की थी।

दागे गए थे ढ़ाई लाख गोले

भारतीय तोपों का एक-एक गोला मानों भारत मात की जय का उद्घोष लगाते हुए पाकिस्तानियों पर बरस रहा है और युद्ध में तो तोपों ने कुल ढाई लाख गोले, रॉकेट और बम दागे गए थे। जिसने पाकिस्तान के पसीने छुड़ा दिए थे।

भारतीय सैनिकों ने टाइगर हिल से पाकिस्तानियों का कब्जा हटाने के लिए बंदूखों से धावा बोला था और उनकी मदद के लिए 300 से अधिक तोपों, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चरों ने रोजाना करीब 5 हजार बम दागे थे।

ऑपरेशन सफेद चादर

भारतीय सेना के जवानों पर ऊंचाई से पाकिस्तानी सैनिक गोलियां बरपा रहे थे तभी भारतीय वायुसेना ने दखल देते हुए ऑपरेशन सफेद चादर शुरु किया। इस दौरान वायुसेना ने हवाई हमले कर पाकिस्तानियों के ठिकानों को तबाह किया। बता दें कि 8 मई को कारगिल युद्ध की शुरुआत हुई थी और 11 मई को वायुसेना ने जवानों की मदद करनी शुरू कर दी थी। जिसके तहत सबसे पहले मिग-21 विमानों ने दुश्मनों के इलाकों की अच्छी तरह से छानबीन की और तस्वीरें खीचीं। वहीं एमआई-7 हेलिकॉप्टर्स घायल सैनिकों को उपचार के लिए सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने, राशन लाने में मदद कर रहे थे।

पाकिस्तानी सैनिक ऊंचाई पर थे जिसकी वजह से वह मिग पर भी निशाना लगा रहे थे ऐसे में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने वायुसेना को अग्रिम जिम्मेदारी सौंपी। जिसके बाद मिग-21, मिग-23, मिग-27, मिग-29, मिराज-2000 और जगुआर ने बम गिराकर पाकिस्तानियों के ठिकानों को खाख कर दिया था।

वायुसेना का ऑपरेशन सफेद चादर 60 दिनों तक चला था। जिसमें 300 विमानों ने 6500 बार उड़ान भरी थी। इसके अतिरिक्त इजरायल से मिले नाइट विजन डिवाइस और लेजर गाइडेड बमों ने भी दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। इसे दुश्मनों की सही लोकेशन खोजने में मदद मिली थी।

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