मैं – – मैं – – मैं – – मैं – – मेरी जाती

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मार्तंड (सूर्य )के उदय होते ही जैसे ही कुछ विलक्षण प्रजाति के मनुष्य अपना स्मार्टफोन संभालते हैं , उनका जातिवादी राग/ रोना शुरू हो जाता है…. जातिवादी व्यक्ति जातिवाद जैसी मानस व्याधि से पीड़ित होकर भी स्वीकार नहीं करता कि वह जातिवादी है|

जातिवादियों का अलग ही लोकतंत्र है” मेरी जाति के मनुष्य द्वारा मेरी जाति का , मेरी जाति के लिए शासन ही उत्तम आदर्श है| सामूहिक साझा राष्ट्रीय संस्कृति से जाती वादियों को घृणा होती है, अपनी अलग ही संस्कृति जातिवादी गढ़ते हैं| सभी एक ही रोना रोते हैं मेरी जाति के इतिहास को छुपाया गया मेरी जाति के इतिहास को नष्ट किया गया हम तो यह थे हम तो वो थे| आज इस भूभाग में यदि कोई पिछड़ी दमित जाति है पीड़ित है तो मेरी ही जाति है|

सोशल मीडिया पर बधाई संदेश भी चुन चुन कर देते हैं मानसिक तौर पर बड़े ही संकीर्ण सिलेक्टिव होते हैं| जैसे ही किसी शीर्ष संविधानिक प्रशासनिक न्यायिक राजनीतिक पदों पर किसी जाति विशेष से संबंध रखने वाले व्यक्ति की नियुक्ति होती है तब बधाइयों का अंबार लग जाता है….|

मामला अपनी जाति से किसी दूसरी जाति के विषय की उपलब्धियों के विषय में हो तो कहते हैं हमें इससे क्या?

अपनी मानसिक स्वतंत्रता बौद्धिकता को तो मानो गिरवी रख देते हैं सामूहिक तौर पर किसी अपने ही समाज के एक व्यक्ति के हितों की एवज में..ऐसे तथाकथित व्यक्ति के अपमान या सम्मान से अपनी संपूर्ण जाति समाज के सम्मान /अपमान को जोड़ देते हैं | कोई भी व्यक्ति अपनी महत्वाकांक्षाओं अपने अलौकिक लक्ष्यों को पाने के लिए एक अधिनायक की भूमिका में इन जातीय समूह में स्थापित हो जाता है… जातिवादी यह विचार नहीं करते वह व्यक्ति भी इंसान है वह भी गलत हो सकता है मानवीय चरित्र की दुर्बलता से कोई नहीं बच सकता|

सबसे बड़ी हैरत तो इस बात पर होती है देश की सीमा पर जैसे ही कोई जवान शहीद होता है उसकी जाति सोशल मीडिया पर आ जाती है…. अपनी जाति का है तो शहीद अन्यथा हमें इससे क्या?

सोशल मीडिया के जातिवाद के ऐसे असंख्य पैटर्न प्रतिमान /लक्षण है| सबसे हास्यास्पद तो तो तब लगता है जब किसी जाति विशेष से संबंध रखने वाले व्यक्ति की कारगुजारी के आधार पर उसके पूरे समाज को ही दोषी सिद्ध कर दिया जाता है| बड़े-बड़े जातीय सोशल पेज बने हुए हैं सुबह से शाम तक वह केवल वैचारिक उदारता के स्थान पर वैचारिक संकीर्णता मानव के स्वतंत्र माननीय चिंतन को नकारात्मक अर्थों में प्रभावित करते हैं|

राष्ट्रीय एकता अखंडता गौरव राष्ट्रवाद के लिए यह भावना बड़ी ही घातक है|

शेष फिर कभी लिखा जाएगा अजीबोगरीब वर्चुअल जातिवाद के संबंध में….|

आर्य सागर खारी ✍

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