यज्ञ केवल कर्मकांड नहीं है यह सृष्टि का प्रथम मानवीय प्रयोग है जो दिव्य मेधा संपन्न ओजस्वी तेजस्वी हमारे पूर्वज ऋषि महर्षियों ने किया| एक ऐसा प्रयोग जो कभी निष्फल नहीं होता| ऐसा प्रयोग जिसकी सफलता की गारंटी ईश्वर देता है वेदों में |जो विनाश नहीं निर्माण करता है अपितु जगत का कल्याण करता है| बहुत अचूक हैं यह प्रयोग प्राणीमात्र का कल्याण कारक है | बहुत ही सस्ता सुलभ है यह प्रयोग, जिसमें थोड़ा देसी घृत ,थोड़ी सी ऋतु अनुकूल सामग्री ,पलाश पीपल बड़ गूलर आम खेजड़ी आदि में से किसी भी एक भी वृक्ष की सूखी लकड़ियां अर्थात समिधा व पूर्ण श्रद्धा विश्वास खर्च होता है…………………………….|
क्वांटम मैकेनिक्स भौतिक_रसायन तथा उष्मागतिकी के नियमों को समाहित किए हुए हैं यज्ञ|
जिस **प्रयोगशाला* में यह प्रयोग होता है उसे हम *यज्ञशाला* कहते हैं|
यहां मैं आपको कुछ आधारभूत सार्वभौमिक भौतिक शास्त्र और रसायन शास्त्र के नियमों से अवगत कराऊंगा जो यज्ञ में एक साथ यज्ञशाला में घटित होते हैं | पश्चिम भौतिक शास्त्र के इन नियमों को समझकर इन की व्याख्या बीसवीं शताब्दी मैं कर पाया है|
भौतिक शास्त्र का पहला नियम *द्रव्य की अविनाशिता* का नियम…….. अर्थात द्रव्य ,ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है, ना नष्ट किया जा सकता है बल्कि ऊर्जा को द्रव्य में द्रव्य को ऊर्जा में रूपांतरित किया जा सकता है|
हम जो भी सामग्री द्रव्य जड़ी-बूटियों से युक्त यज्ञ में डालते हैं ,आहूत करते हैं उपरोक्त नियम के अनुसार वह सामग्री ऊर्जा में रूपांतरित हो जाती है, भौतिक वायुमंडल के कोने-कोने में पहुंच जाती है ,वह कभी नष्ट नहीं होती … इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव हम पर यह पड़ता है हमारे अंदर त्याग की भावना बलवती हो जाती है| यज्ञ करने से से हमारी चंचलता चिंता अवसाद नष्ट हो जाता है….|
दूसरा नियम क्वांटम मैकेनिक्स का है जिसके अनुसार जो पदार्थ जितना सूक्ष्म होता है वह उतना ही सामर्थ्यशाली हो जाता है अर्थात एक परमाणु में स्थित इलेक्ट्रॉन व उसकी गति अधिक सामर्थ्य व ऊर्जा युक्त है एक भारी-भरकम ग्रह तथा उसकी गति की अपेक्षा……|
इसे ऐसे समझे परमाणु के नाभिक में स्थित धन आवेशित प्रोटोन को बांधने वाला बल जिसे strong nuclear बल कहते हैं अधिक शक्तिशाली है पृथ्वी और चंद्रमा या चंद्रमा सूरज के बीच लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल की अपेक्षा|
इसी नियम की भांति यज्ञ में जो विविध सामग्री हम डालते हैं उसे अग्नि सूक्ष्म कर देती है नाभिकीय कण इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन न्यूट्रॉन के स्तर पर ………..|
यज्ञ मैं जो भी सामग्री डाली जाती है वह यज्ञ में आहूत करने के पश्चात अधिक सामर्थ्य युक्त रोगनाशक ,शुद्धिकारक हो जाती है क्वांटम मैकेनिक्स के नियमों के अनुसार|
*वातावरण व जल ,वायु में जाकर उसकी केमिस्ट्री को बदल देती है उन्हें आणविक स्तर तक शुद्ध कर देती है*|
शुद्धता से तात्पर्य भौतिक वातावरण के उस नेचुरल हालात से है जैसा वह पृथ्वी पर प्रदूषण कारी कार्यकलापों से पूर्व था… भगवान ने जितनी मात्रा जिस गैस की वातावरण में निर्धारित की उसी अनुपात में उनका वातावरण में रहना ही शुद्धता है…. जैसा स्वाद जितने खनिज लवण जल में डाले उसी हालत में जल का रहना जल की शुद्धता…. अब मैदानी भागों में यह शुद्धता नहीं मिलती पहाड़ों पर भी हालात चिंताजनक है… यज्ञ से ही केवल वायु जल वनस्पतियों को शुद्ध किया जा सकता है| शुद्ध करने के साथ-साथ फल फूल वनस्पतियों को पुष्ट दिव्य औषधीय गुणों से युक्त भी किया जा सकता है|
वैदिक यज्ञ प्रार्थना में बहुत ही सुंदर खाका इसका खींचा गया है | इस प्रार्थना की चुनिंदा पंक्तियां इस प्रकार है|
भावना मिट जाए मन से पाप अत्याचार की|
कामनाएं पूर्ण होवे यज्ञ से नर नारी की||
नित्य श्रद्धा भक्ति से यज्ञ आदि हम करते रहे |
रोग पीड़ित विश्व के संताप सब हरते रहे||
लाभकारी हो हवन हर प्राणधारी के लिए |
वायु जल सर्वत्र हो शुभ गंध को धारण किए||
कितने मेधावी ओजस्वी विचारवान थे ,हमारे पूर्वज| जिन वैज्ञानिक घटनाक्रमों तथा नियमों को समझने में यूरोप-अमेरिका कुछ साल पहले जान सके लगभग 19वीं सदी (अंत में ईश्वरप्रदत्त जान से ही वह भी जान पाए )| इस विद्या से परमपिता परमात्मा ने सृष्टि के आदि में हमारे पूर्वजों को इस आर्यव्रत की भूमि पर भली भांति अवगत करा दिया था|
यज्ञ के विभिन्न पक्षों पर चर्चा जारी रहेगी……..|
आर्य सागर खारी✒✒✒✒✒