जो शहीद हुए हैं उनकी…ज़रा याद करो कुर्बानी… (कारगिल युद्ध)

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अंकित सिंह

कैप्टन मनोज कुमार पांडे का जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर के रुधा गांव में 25 जून 1975 को हुआ था। बचपन से ही पांडे में देश सेवा का जुनून सवार था। यही कारण था कि उन्होंने भारतीय सेना को चुना। 1997 में मनोज कुमार पांडे गोरखा राइफल्स का हिस्सा बने।

26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। यह वही दिन है जिस दिन भारत ने अपने वीर जवानों के साहस के दम पर युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। हमारे जवानों ने देश की आन बान और शान की खातिर अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए थे। पाकिस्तान के साथ कारगिल में हुए युद्ध में हमने अपने कईं जवानों को खो दिया था। हमारे जवानों ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए टाइगर हिल पर भारतीय तिरंगे को लहराया था। एक बार फिर 26 जुलाई को देश अपने बहादुर जवानों को नम आंखों से याद कर रहा है। तो चलिए आपको हम उन जवानों के बारे में बताते हैं जिन्होंने कारगिल युद्ध के समय अपनी जान की बाजी लगाकर दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। भारत सरकार ने इनके बहादुरी को देखते हुए इन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया था।

कैप्टन मनोज कुमार पांडे का जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर के रुधा गांव में 25 जून 1975 को हुआ था। बचपन से ही पांडे में देश सेवा का जुनून सवार था। यही कारण था कि उन्होंने भारतीय सेना को चुना। 1997 में मनोज कुमार पांडे गोरखा राइफल्स का हिस्सा बने। उन्हें पहाड़ों पर चढ़ने और घात लगाकर दुश्मनों पर हमला करने में महारत हासिल थी। यही कारण था कि सियाचिन में तैनाती होने के बावजूद भी उन्हें कारगिल युद्ध के समय बुला लिया गया। मनोज कुमार ने अपनी बटालियन का नेतृत्व करते हुए 2 महीने में ही कुकरथांग और जबूरटॉप जैसी चोटियों को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त करा लिया। इसके बाद उन्हें खोलाबार पर कब्जा करने की जिम्मेदारी दी गई। यह काम सबसे मुश्किल माना जा रहा था। खोलाबार की ओर बढ़ते हुए उन्हें पाकिस्तानी सेना के गोलियों का सामना करना पड़ा। घायल होने के बावजूद भी उन्होंने पाक सेना का 4 बंकर खत्म कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने दुश्मन सेना के कई जवानों को मौत के घाट भी उतार दिया। इस परिस्थिति में भी उन्होंने अपने साथियों को कवर दी। वह 3 जुलाई 1999 को शहीद हो गए। उनके बहादुरी को सलाम करते हुए मरणोपरांत उन्हें भारत के सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

योगेन्द्र सिंह यादव-

ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव को कारगिल युद्ध के दौरान दिखाए गये अदम्य साहस के लिए उच्चतम भारतीय सैन्य सम्मान परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया। ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव कारगिल युद्ध के दौरान जूनियर कमीशनन्ड ऑफिसर (JCO) थे। वर्तमान में वह सूबेदार मेजर हैं। ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव को 19 साल की उम्र में परमवीर चक्र प्राप्त हुआ। योगेन्द्र सिंह यादव सबसे कम उम्र के सैनिक हैं जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ। योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के सिकंद्राबाद के औरंगाबाद अहीर गाँव में हुआ था। उनके पिता करण सिंह यादव ने 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों में भाग लेते हुए कुमाऊं रेजीमेंट में सेवा की थी। यादव 16 की आयु में भारतीय सेना में शामिल हुए।

कारगिल युद्ध में सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित सूबेदार संजय कुमार आज भी वह मंजर याद करते हैं तो उनका खून खौल जाता है। वर्तमान में देहरादून अकादमी में तैनात सूबेदार संजय कुमार कारगिल युद्ध के समय राइफलमैन थे। 4 और 5 जुलाई 1999 के दौरान उन्होंने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया। कारगिल युद्ध के दौरान एरिया फ्लैट टॉप पर कब्जा करने में संजय कुमार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संजय कुमार का जन्म 3 मार्च 1976 को हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में हुआ था। संजय कुमार की तैनाती कारगिल में मास्को वैल्यूप्वाइंट पर थी। यहां दुश्मन ऊपर से लगातार हमले कर रहा था। संजय ने अपने 11 साथियों में से दो को गंवा दिया था जबकि आठ गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इस परिस्थिति में भी संजय ने दुश्मनों का कड़ा मुकाबला किया और एक समय ऐसा भी आया जब उनके राइफल की गोलियां खत्म हो गई। तीन गोली लगने के बावजूद संजय कुमार ने अपने मिशन में कामयाबी हासिल की। उन्होंने आमने-सामने की मुठभेड़ में तीन दुश्मन सैनिकों को भी मार गिराया।

कैप्टन विक्रम बत्रा-

हिमाचल प्रदेश के पालमपुर जिले के घुग्‍गर में 9 सितंबर 1974 को कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था। 6 दिसंबर 1997 को कैप्टन बत्रा जम्मू और कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में बतौर लेफ्टिनेंट शामिल हुए। दो साल बाद ही उन्हें प्रमोट कर कैप्टन रैंक दी गई। कैप्टन विक्रम बत्रा कारिगल के हीरो माने जाते हैं। कैप्टन विक्रम बत्रा ने कारगिल युद्ध में पांच सबसे इंपॉर्टेंट पॉइंट जीतने में अहम रोल निभाया था। पाकिस्तानी घुसपैठिये टाइगर हिल पर कब्जा करके बैठे थे और नीचे भारतीय सेना पर लगातार फायरिंग कर रहे थे ऐसे में योजना बनाई गई टाइगर हिल पर चढ़ने की। पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए पांच इंपॉर्टेंट पॉइंट को जीतना बेहत जरूरी था। कैप्टन विक्रम बत्रा ने हर पॉइंट जीतने में मदद दी। कारगिल युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा अपने एक साथी को बचाते-बचाते शहीद हो गये। कहते है कि दुश्मनों की गोलीबारी के दौरान उन्होंने अपने साथी से अंतिम शब्दों में यह कहा था कि ‘तुम हट जाओ। तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं।’ कारगिल युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा से जुड़े एक वाकये को उनके साथी ने शेयर करते हुए कहा कि जब भी बत्रा गोलियों से दुश्मनों को भून देते थे तो वह कहते ‘ये दिल मांगे मोर’। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान वीरता के लिए भारत का सर्वोच्च और सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार मरणोपरांत परमवीर चक्र से उन्हें सम्मानित किया गया था।

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