क्या जीव जग में कुछ भी लेकर नहीं आता ?
और क्या जग से कुछ भी लेकर नहीं जाता ?
क्या जीव बहुत कुछ लाता है जग में बहुत कुछ ले जाता है जग से ?
उक्त शंका, भ्रांति अथवा प्रश्नों को समझने के लिए
सर्वप्रथम ईश्वर , जीव और प्रकृति को जान लें।
ईश्वर ,जीव और प्रकृति तीनों अनादि हैं अर्थात तीनों अज हैं अर्थात जिनका जन्म नहीं,यह हम सब जानते हैं।
इनमें जीव से ईश्वर ,ईश्वर से जीव और दोनों से प्रकृति भिन्न स्वरूप तीनों अनादि हैं। इन तीनों के गुण ,कर्म और स्वभाव भी अनादि हैं। इन जीव और ब्रह्म में से जीव इस वृक्ष रूप संसार में पाप पुण्य रूप फलों का अच्छे प्रकार भोक्ता है और दूसरा परमात्मा कर्मों के फलों को न भोगता हुआ चारों ओर अर्थात बाहर भीतर सर्वत्र प्रकाशमान हो रहा है।
परमात्मा , जीव और प्रकृति इन तीनों का जन्म नहीं होता ।इसलिए यह तीनों जगत के कारण हैं । इनका कारण कोई नहीं । क्योंकि कारण का कारण नहीं होता।
अनादि प्रकृति के भोग में अनादि जीव फंसता है , उसमें परमात्मा न फंसता है न उसका भोग करता है। ईश्वर और जीव का लक्षण अलग-अलग है।
जीव शरीर में भिन्न परिछिन्न है। क्योंकि जीव जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति ,मरण, जन्म, संयोग, वियोग आने-जाने में लगा रहता है , जीव का स्वरूप अल्पज्ञ है और ईश्वर अनंत सर्वज्ञ और सर्वव्यापक स्वरूप है।
इसलिए ब्रह्म जीव और जीव ब्रह्म एक कभी नहीं होता ।सदा पृथक – पृथक हैं।
जबकि प्रकृति सत, रज और तम अर्थात जड़ता तीन वस्तु से मिलकर एक संघ है ,उसका नाम प्रकृति है।
जगत के तीन कारण हैं ।एक निमित्त, दूसरा उपादान, तीसरा साधारण।
मोक्ष में जीव के भौतिक शरीर या इंद्रियों के गोलक जीवात्मा के साथ नहीं रहते है। किंतु अपने स्वाभाविक शुद्ध गुण रहते हैं। जब सुनना चाहता है तब श्रोत्र, स्पर्श करना चाहता है तब त्वचा ,देखने के संकल्प से चक्षु, स्वाद के अर्थ रसना, गंध के लिए घ्राण , संकल्प – विकल्प करते समय मन और निश्चित करने के लिए बुद्धि, स्मरण करने के लिए चित्त और अहंकार के अर्थ अहंकार रूप अपनी स्वशक्ति से जीवात्मा मुक्ति में जाता है और संकल्प मात्र शरीर होता है। जैसे शरीर के आधार रहकर इंद्रियों के गोलक के द्वारा जीव स्वयं कार्य करता है वैसे अपनी शक्ति से मुक्ति में सब आनंद भोग लेता है।
उस समय जीव की 24 प्रकार की शक्ति उसके साथ रहती हैं , जो निम्न प्रकार हैं :–
बल, पराक्रम ,आकर्षण, प्रेरणा, गति ,भाषण, विवेचन, क्रिया, उत्साह, स्मरण ,निश्चय, इच्छा, प्रेम , द्वेष, संयोग, विभाग, संयोजक, विभाजक, श्रवण, स्पर्शन, दर्शन, स्वाद, गंध ग्रहण तथा ज्ञान।
इन्हीं 24 शक्तियों के कारण जीव मुक्ति में आनंद की प्राप्ति भोग करता है। कठोपनिषद में आया है कि जब शुद्ध मन युक्त पांच ज्ञानेंद्रियां जीव के साथ रहती हैं और बुद्धि का निश्चय स्थिर होता है उसको परम गति अर्थात मोक्ष कहते हैं।
हम यह भी जानते हैं कि यह स्थूल शरीर मरण धर्मा है ।यह प्रकृति से बना है। पंच भूतों से बना है। और इसके अलावा जो सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर है, वह अलग होते हैं।
मुक्ति के बाद परमात्मा मुक्ति का आनंद भोग लेने के पश्चात पृथ्वी में उन्हें माता-पिता के संबंध में जन्म देकर माता पिता का दर्शन कराता है। वही परमात्मा मुक्ति की व्यवस्था करता है । वह सबका स्वामी है।
जीव को पंचकोश अन्नमय, प्राणमय, मनोमय,विज्ञान मय,आनंदमय का विवेचन करना चाहिए। क्योंकि जीव इन्हीं से सब प्रकार के कर्म, उपासना ,ज्ञान आदि व्यवहारों को करता है।
जीव का सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों का समुदाय है जो निम्न प्रकार है :–
पांच प्राण ,पांच ज्ञानेंद्रियां, पांच सूक्ष्म भूत ,मन तथा बुद्धि। यह सूक्ष्म शरीर जन्म मरण में भी जीव के साथ रहता है। इससे यह स्पष्ट हुआ कि जीवात्मा के शरीर को छोड़ने के पश्चात भी उसके पांच प्राण , पांच ज्ञानेंद्रियां , पांच सूक्ष्म भूत व मन और बुद्धि उसके साथ जाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक जीव जग में जब आता है तो यह सब ले करके आता है और स्थूल शरीर को छोड़ने के बाद अर्थात मृत्यु उपरांत साथ लेकर के जाता है। अभौतिक शरीर मुक्ति में जीव के साथ रहता है। भौतिक शरीर छूट जाता है।
भौतिक शरीर के कारण ही जीव मोक्ष में सुख भोगता है। सबको विदित है कि जब मृत्यु हो जाती है , तब सब यह कहते हैं कि जीव निकल गया ।यही जीव तो सबका प्रेरक, सबका धर्त्ता, साक्षी, कर्त्ता , भोक्ता होता है।
उपरोक्त के अतिरिक्त पंचकोश के कारण कर्म, उपासना और ज्ञान में, कर्म जिस प्रकार के जीव करता है उसी के अनुसार उसकी गति होती है। उसी के अनुसार कर्माशय ,कर्मफल, करम गति ,भाग्य आयु ,भोग ,योनि, प्रारब्ध,होते हैं तथा जीव की 24 सामर्थ्य, व 17 तत्त्व सूक्ष्म शरीर वाले आदि जीव को प्राप्त रहते हैं।
अत: स्पष्ट हुआ कि जीव अपने साथ जगत में उत्पन्न होते समय सूक्ष्म शरीर, कारण शरीर ,प्रारब्ध, भाग्य, आयु, भोग , योनि ,२४ सामर्थ्य,१७ तत्व सूक्ष्म शरीर वाले सब लेकर के आता है।कर्मों के अनुसार अपने साथ मृत्यु उपरांत लेकर भी जाता है।
इसलिए यह कहना व्यर्थ है कि न कुछ लेकर आया है ना कुछ लेकर जाना है। यह केवल सांसारिक / भौतिक वस्तुओं अर्थात धन आदि के संबंध में कहा जा सकता है। क्योंकि भौतिक वस्तु सब यहीं पर छूट जाती हैं। भौतिक वस्तुओं के अतिरिक्त अभौतिक वस्तुएं जो अदृश्य होती हैं तथा जीव के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती हैं, वह सब जीव के साथ जाती है और आती है।
देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन : उगता भारत