देश में पंजीकृत और अपंजीकृत हजारों राजनीतिक दल इस समय कार्यरत हैं। यद्यपि कुछ लोग देश में त्रिदलीय राजनीतिक व्यवस्था की बात करते हैं, परंतु राजनीतिक दलों की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही है । निश्चय ही राजनीतिक दलों की संख्या में हो रही यह वृद्धि हम सब के लिए चिंता और चिंतन का विषय है । कहने के लिए तो देश में लोकतंत्र है, पर वास्तव में लोकतंत्र को ‘लूटतंत्र’ और ‘ठोकतंत्र’ में परिवर्तित करने में यह राजनीतिक दल ही सबसे अधिक जिम्मेदार रहे हैं । राजनीतिक दल अपने लिए वोट मांगते हैं और अपने लिए ही लोगों का ध्रुवीकरण करते हैं , राष्ट्र के लिए नहीं । जबकि वास्तविक लोकतंत्र वही होता है, जिसमें सबसे पहले राष्ट्र होता है।
प्रत्येक राजनीतिक दल में ब्लॉक स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर के पद या तो बेचे जाते हैं या फिर किसी व्यक्ति विशेष की ‘कृपा’ से प्राप्त किए जाते हैं। स्वार्थी लोगों का जमावड़ा एक साथ होता है तो एक राजनीतिक दल बन जाता है। फिर ये सारे मिलकर सत्ता पर कब्जा कर आर्थिक स्रोतों को चूसकर देश को कंगाल करने की योजना पर काम करते हैं। एक नहीं ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब किसी प्रमुख पार्टी का जिलाध्यक्ष बनते ही कोई व्यक्ति 2 से 4 महीने में ही शानदार कोठी , गाड़ी – घोड़ा खरीद लेता है। प्रांत में पदाधिकारी बनते ही व्यक्ति प्रदेश की राजधानी में कोठी खरीद लेता है । इसके बाद उसके आय के अज्ञात स्रोत इतने बढ़ते हैं कि उसे पैसा रखना मुश्किल हो जाता है । इसीलिए किसी भी पार्टी में पदों को प्राप्त करने की सारी की सारी आपाधापी केवल कार – कोठी – बंगले के सपने को साकार करने के लिए की जाती है , राष्ट्र सेवा और समाज सेवा जाए भाड़ में।
ऐसे अनेकों राजनीतिक कार्यकर्ता आपको मिल जाएंगे जो व्यक्तिगत बातचीत में स्वीकार करते हैं कि वह राजनीति में केवल नाम और पैसा कमाने के लिए आए हैं। यदि यहां आकर भी पैसा नहीं कमाया तो कहां कमाएंगे ? इन लोगों को देश के संविधान की , देश के संविधान की मर्यादाओं की , लोकतंत्र की और लोकतंत्र की मर्यादाओं की न तो कोई जानकारी होती है और न ही कोई जानकारी ये लेना चाहते हैं। इन्होंने देश का राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को बना दिया , परंतु गांधी कौन थे ? – यह तो देश के विद्यार्थियों को बताया ही नहीं । अभी पिछले दिनों मैं अपने एक मित्र के यहां गया । इंटरमीडिएट में पढ़ती उनकी बेटी से मैंने पूछा कि कौन से विद्यालय में पढ़ती हो ? बच्ची ने बताया कि मैं महात्मा गांधी इंटर कॉलेज में पढ़ती हूं । मैंने पूछा कि महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी का क्या संबंध था ? तो बच्ची ने बताया कि महात्मा गांधी इंदिरा गांधी के ससुर थे। जिस देश का राजा और सारी राज्यव्यवस्था भ्रष्टाचार में डूबी हो और जिस देश की सारी व्यवस्था अर्थसाधना में लीन हो , उसमें अपने महापुरुषों के विषय में बच्चे भी क्यों सोचेंगे या उनके अध्यापक उन्हें नैतिक शिक्षा की जानकारी क्यों देंगे ? जब लूटतंत्र देश में चल रहा हो तो लूटतांत्रिक व्यवस्था ही विद्यालयों में पहुंच जाती है। यही कारण है कि वहां भी फीस और ट्यूशन के नाम पर अभिभावकों को लूटने का पूरा गिरोह काम कर रहा है।
यही इसके देश की न्याय प्रणाली की है । वहां भी न्याय खरीदा जाता है । दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि न्याय बिक रहा है। अब आइए, चिकित्सा की ओर। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कोरोना के नाम पर डॉक्टरों को बहुत प्रोत्साहित करने का काम किया । उन जैसे व्यक्तित्व के लिए यह उचित और अपेक्षित भी था कि कोरोना योद्धाओं की एक फौज तैयार की जाती । परंतु समाज में अनेकों ऐसे सामाजिक संगठन झूठी वाहवाही लेने के लिए मैदान में आ गए जिन्होंने ऐसे – ऐसे लोगों को कोरोना योद्धा का ‘प्रमाण पत्र’ दे दिया जिन्होंने एक भी मरीज की सेवा नहीं की , ना ही किसी गरीब को एक दिन का भोजन कराया । जहां तक डॉक्टर्स की बात है तो उनके द्वारा भी किस स्तर पर मरीजों के साथ लापरवाही बरती जा रही है ? – वह भी बहुत ही चिंता का विषय है। कारण उसका भी केवल एक ही है कि वहां भी ‘लूटतंत्र’ काम कर रहा है। अति उस समय हो गई जब यह भी देखने में आया कि लोगों को कोरोना पॉजिटिव बताकर जबरन अस्पताल में भर्ती कर उसके अंग निकालने की घिनौनी हरकतें करते भी डॉक्टर पाए गये ।
जिस देश की राज्य व्यवस्था , न्याय प्रणाली , शिक्षा व्यवस्था और चिकित्सा व्यवस्था चारों ही ‘कोरोनावायरस’ से पीड़ित हों , उस देश का भविष्य कैसा हो सकता है ? यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । जहां हर जगह दानवता मानवता के स्थान पर नंगा नाच कर रही हो , भूखे गिद्ध सजातीय भाइयों के कंकालों को नोंच नोंचकर खा रहे हों , वहां नैतिकता और मानवता की बात करना कितना उचित हो सकता है ? – वहां कानून का शासन कैसे कहा जा सकता है ? वहां सारी व्यवस्था किसी संविधान जैसी पवित्र गीता के माध्यम से चल रही होगी – यह भी कैसे माना जा सकता है ?
अब अंत में आइए राजस्थान की ओर । राजनीति में कैसे-कैसे लोग पदों पर पहुंच गए हैं और सारी राजनीति कितनी नंगी हो चुकी है ? इसे राजस्थान में भली प्रकार देखा जा सकता है । बिना किसी व्यक्ति या पार्टी का पक्ष पोषण किए यदि निष्पक्षता से सोचा जाए तो हम डंके की चोट कहना चाहेंगे कि किसी भी विधायक को खरीदना जहां पाप है वही किसी भी विधायक की आवाज पर प्रतिबंध लगाना भी पाप है । किसी की चलती सरकार को गिराना जहां पाप है , वहीं चलती सरकार के विरुद्ध उठती आवाजों को दबाना भी पाप है । इन छोटी-छोटी बातों को समझने के लिए भी राजनीति को न्यायालयों के दरवाजे खटखटाने पड़ रहे हैं। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि वैचारिक धरातल पर राजनीति कितनी कंगाल हो चुकी है ? जल लुटेरे , डाकू , बदमाश व हत्यारे लोगों को टिकट देकर उन्हें केवल गूंगी गुड़िया बनाकर विधान मंडलों में ले जाकर बैठाओगे तो वहां पर चिंतन का अभाव होना स्वाभाविक है। राजनीति के लिए तो यह नादान बच्चे हैं। जो देश धर्म के बारे में कुछ नहीं जानते। अब सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या नादानों से तेज चला जा सकता है?
सरकारें जब गठित होती हैं तो इस शर्त पर नहीं होती हैं कि सारे विधायक ‘गूंगी गुड़िया’ बनकर बैठे रहेंगे । सरकार चलाने वालों को यह पता होना चाहिए कि जनप्रतिनिधि चुने ही इसलिए जाते हैं कि उनकी आवाज पर कोई पहरा नहीं होगा और वह जनता की आवाज को एक उचित मंच पर उठाएंगे। संविधान की सीमाओं के अंतर्गत जो उन्हें उचित लगेगा , वह बोलेंगे । लेकिन व्हिप का डंडा दिखाकर विधायकों और सांसदों की आवाज बंद की जाती है।
व्हिप जारी होने का मतलब है कि संविधान और देश की रक्षा के लिए नहीं बोलना है , बल्कि पार्टी और नेता की रक्षा के लिए बोलना है । अंतरात्मा की आवाज को दबा दो और वह बोलो जो तुमसे हम बुलवाना चाहते हैं। कुछ समझ नहीं आता कि राजनीति को ‘गुलाम’ चला रहे हैं या गुलामों को राजनीति हांक रही है ?
राजनेता झूठे वादे करते हैं , झूठे भाषण देते हैं, झूठे एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं । इसके उपरांत भी इनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं होती , एक साधारण व्यक्ति के विरुद्ध कानून अपना शिकंजा लेकर उसके घर पहुंच जाता है , परंतु राजनेता के झूठ के पकड़े जाने पर भी वह इसे राजनीति कह कर बच जाते हैं। झूठे लोग ही अपने आप को भावी प्रधानमंत्री के रूप में जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हैं और फिर कहीं ना कहीं पार्टी के ‘गुलाम विधायकों’ को अपने झूठ को सिद्ध करने के लिए या अपनी बातों को ही यथावत मनवाने के लिए व्हिप जारी करते हैं। पता नहीं देश की राजनीति कौन से दर्शनशास्त्र से चल रही है ?
देश के संविधान में कहीं पर भी ‘राजनीतिक दल’ जैसा कोई शब्द नहीं है । बात स्पष्ट है कि देश के संविधान निर्माताओं की सोच देश में किसी राजनीतिक दल की सत्ता स्थापित करना नहीं था , बल्कि उनकी सोच थी कि देश में राष्ट्रीय सरकार काम करेगी । कहने का अभिप्राय है कि जब सरकार बन गई तो वह किसी राजनीतिक दल की ना होकर देश की सरकार होगी । पर यहां पहले दिन से ही किसी विशेष दल की सरकारें बनती चली आ रही हैं। जब सरकार पर किसी विशेष दल की सरकार होने का ठप्पा लग जाता है तो उसे देश की सरकार मानकर देश धर्म के लिए काम करने वाली सरकार कैसे माना जा सकता है ? राजनीति के इस गंभीर प्रश्न को हम जितना एक गुत्थी के रूप में उलझाते जाएंगे उतना ही देश अपनी मौलिक समस्याओं के समाधान के प्रति
लापरवाह होता जाएगा ।
शुभारंभ राजस्थान से ही हो जाना चाहिए कि ना तो कोई व्हिप जारी होगा , ना कोई पार्टी किसी पार्टी के विधायक खरीदेगी और ना ही चलती सरकार गिराई जाएगी , ना ही चलती सरकार किसी विधायक की आवाज को बंद करेगी। वैसे लगता नहीं कि ‘कोरोना पॉजिटिव’ मिली भारत की राजनीति इतना साहस दिखा पाएगी।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत