कोरोना के चलते बकरीद पर कितने सावधान हैं मुसलमान ?
आगामी 1 अगस्त को मुसलमानों का सबसे बड़ा त्यौहार ईद आ रहा है। इस पर अनेकों पशुओं की बलि दी जाएगी । जिससे पर्यावरण संतुलन की पहले से ही बिगड़ी हालत में और इजाफा हो जाएगा।
सारे पर्यावरणविद और पशुओं की रक्षा का ठेका लेने वाले सभी संगठन अब पूरी तरह मौन हैं। अब उन्हें संविधान की वह धारा याद आ रही है जिसमें प्रत्येक अल्पसंख्यक को अपने मजहबी परंपराओं का निर्वाह करने की पूरी छूट है।
मुस्लिम समुदाय इस मौके पर जानवरों की कुर्बानी करता है. उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र सहित तमाम राज्य सरकारों ने बकरीद के लिए गाइड लाइन जारी कर दी है, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते कई राज्यों में बकरीद के दिन लॉकडाउन भी पड़ रहा है. ऐसे में मुस्लिम समाज में असमंजस बरकार है कि कैसे कुर्बानी करें?
उत्तर प्रदेश के डीजीपी हितेश चंद्र ने बकरीद को लेकर बुधवार को एडवाइजरी जारी की है. इसके अनुसार किसी भी धार्मिक स्थल पर सामूहिक नमाज पर रोक लगाई गई है. इसके अलावा खुले में जानवरों की कुर्बानी करने और खुले में मांस ले जाने की अनुमति नहीं है. साथ ही डीजीपी ने कहा है कि सांप्रदायिक भावनाओं का ध्यान रखा जाए और पुलिस लाउडस्पीकर का इस्तेमाल कर लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए जागरूक करें.
बता दें कि कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरों के देखते हुए उत्तर प्रदेश में सप्ताह में दो दिन शनिवार और रविवार को पूरी तरह से लॉकडाउन लागू रहता है. इस बार बकरीद का त्योहार शनिवार को पढ़ रहा है. यही वजह है कि मुस्लिम समुदाय में असमंजस है कि कैसे कुर्बानी करेंगे, क्योंकि लाकडाउन के दौरान किसी तरह से लोगों को घर से बाहर निकलने पर रोक होती है. ऐसे में जानवरों की कुर्बानी के लिए लोग कैसे आएंगे और जाएंगे.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा कि सरकार की गाइडलाइन के बाद साफ है कि बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी के लिए किसी तरह की कोई रोक नहीं है. लेकिन सरकार को इसके साथ ही लोकल स्तर के प्रशासन को हिदायत देनी होगी कि वो किसी तरह से मुस्लिम समुदाय को कुर्बानी के लिए परेशान न करें. कुर्बानी के लिए सिर्फ जानवरों की ही जरूरत नहीं होती बल्कि उसे काटने के लिए आदमी की भी अवश्यकता पड़ती है. ऐसे में कुर्बानी करने वाले लोगों को आने-जाने में प्रशासन न रोके, साथ ही मुस्लिम भी पूरी तरह नियमों का ध्यान रखें.
कमाल फारूकी ने कहा कि कोरोना के चलते सामुहिक रूप से लोग नमाज पढ़ने से ऐसे ही परहेज कर रहे हैं. ऐसे में सरकार की गाइडलाइन के बाद इसका और भी ख्याल रखा जाना चाहिए. इसके लिए प्रशासन को भी सरकार हिदायत दे कि बेवजह मुस्लिम समुदाय को परेशान न किया जाए. उन्हें लाकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराते हुए नमाज पढ़ने की इजाजत दी जाए, क्योंकि मुस्लिम समुदाय के महज ईद और बकरीद दो ही त्योहार हैं.
मुसलमानों के लिए कुर्बानी करना इस्लामिक तौर पर वाजिब (जरूरी) है. भारतीय संविधान भी बकरीद को मौके पर कुर्बानी की इजाजत देता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 ने धार्मिक परम्पराओं को निर्बाध रूप से मानने की गांरटी दी है. इसी के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 2015 और 2016 में बकरीद के मौके पर कुर्बानी को रोकने के लिए दाखिल की गई याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था.
जमात-ए-इस्लामी हिंद के महासचिव मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने कहा कि सरकार की गाइडलाइन का मुस्लिम समुदाय का पालन करेगा, लेकिन सूबे का प्रशासन गाइडलाइन को सही तरह से अमल करे यह जरूरी है. हमें कानून भी कुर्बानी करने की इजाजत देता है और सरकार ने गाइडलाइन में भी रोक नहीं लगाई है. ऐसे में कुर्बानी तो मुस्लिम समुदाय करेगा और कानून का पालन करते हुए, लेकिन सरकार को चाहिए कि वह प्रशासन को अमल करने की हिदायत दे.
जमियत उलेमा-ए-हिंद के मुफ्ती अब्दुल राजिक कहते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार ने बकरीद के मौके पर जानवरों की कुर्बानी की छूट दी है. प्रशासन को चाहिए कि वह लोकल स्तर पर मुस्लिम समुदाय के साथ बातचीत कर गाइडलाइन का पालन कराए, लेकिन बेवजह किसी को परेशान न करे. यूपी में हाल के दिनों में देखा गया है कि प्रशासन किस तरह से मुस्लिम समुदाय के साथ बर्ताव कर रहा है वह उचित नहीं है. हम इस बात के पूरी तरह से समर्थन में हैं कि गोवंश की कुर्बानी न की जाए और न ही खुले तौर पर मांस लेकर जाया जाए. ऐसे में सरकार और प्रशासन की भी जिम्मेदारी बनती है कि बकरीद के मौके पर वैध जानवरों की कुर्बानी करने पर किसी को परेशान न किया जाए.
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