सहकारी क्षेत्र में बैंकिंग पहिले मुख्यतः ग्रामीण इलाक़ों एवं कृषि क्षेत्र में ही प्रचिलित हुआ करती थी। परंतु 1990 के दशक में जब उदारीकरण की नीतियों को देश में लागू किया गया तब शहरी क्षेत्रों में भी सहकारी बैंकों की संख्या काफ़ी बढ़ गई। इन्हें शुरू से ही काफ़ी उदारीकृत माहौल में स्थापित किया गया। शहरी सहकारी बैंक मुख्यतः शहरों में ही अपना व्यवसाय करते हैं अतः उद्योग एवं व्यापार क्षेत्र को ही ऋण एवं अन्य बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं। परंतु शहरी सहकारी बैंक, सहकारी संस्था अधिनियम के अंतर्गत ही पंजीकृत होते हैं एवं इनका प्रबंधन भी इसलिए सहकारी संस्था अधिनियम के तहत ही होता है। ग्रामीण सहकारी क्षेत्र की कुछ ख़ामियाँ इसीलिए शहरी सहकारी क्षेत्र में भी दिखाई देती हैं। जैसे सहकारी क्षेत्र में राजनीति बड़ी आसानी से घुसपैठ कर लेती हैं एवं कई राजनीतिज्ञ ही इन बैंकों पर अधिकार कर इन्हें चलाने में अपनी अहम भूमिका अदा करने लगते हैं। इससे सहकारी क्षेत्र के बैंकों के रोज़ाना के सामान्य कार्यों एवं ऋण प्रदान किए जाने सम्बंधी निर्णयों में विवेकपूर्ण मानदंडो का पालन नहीं किया जाकर प्रबंधन के व्यक्तिगत हितों की ओर ज़्यादा ध्यान दिया जाने लगता है। सहकारी संस्था के प्रबंधन में इस प्रकार की कई कमियाँ प्रायः देखने में आती रही हैं जिसके चलते देश के सहकारी क्षेत्र के बैंकों के जमाकर्ताओं को कई बार काफ़ी नुक़सान भी उठाना पड़ा है। जैसा कि अभी हाल में मुंबई स्थिति पंजाब एवं महाराष्ट्र कोआपरेटिव (पीएमसी) बैंक में देखने में आया है। अभी तक भी पीएमसी बैंक में समस्याओं का पूरे तरीक़े से समाधान नहीं हो पाया है। अतः हाल ही के समय में देश में इस माँग ने बहुत ज़ोर पकड़ लिया है कि जब शहरी सहकारी बैंक भी शहरी क्षेत्रों में अन्य व्यावसायिक बैंकों की तरह ही काम कर रहे हैं तो फिर शहरी सहकारी बैंकों के ऊपर भी पर्यवेक्षण उसी तरह का होना चाहिए जैसा कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अन्य व्यावसायिक बैंकों के ऊपर किया जाता है।
अब तक सहकारी बैंकों को लाइसेंस तो बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 के तहत भारतीय रिजर्व बैंक ही देता है, लेकिन इनकी कार्य प्रणाली एवं नियंत्रण राज्यों की रजिस्ट्रार कोऑपरेटिव सोसाइटी के पास ही है। सामान्यत: स्थानीय राजनीति में सक्रिय लोगों के बीच से चुनकर आया एक संचालक मंडल इन सहकारी बैकों को प्रशासित करता है। वाणिज्यिक बैंकों की तरह, सहकारी बैंकों को नियंत्रित करने का कोई तंत्र भारतीय रिजर्व बैंक के पास नहीं होता है। इसीलिए इन बैंकों में बड़े पैमाने पर कई प्रकार की ख़ामियाँ उजागर होती रहीं हैं। पिछले कुछ वर्षों से कई सहकारी बैंकों में घोटाले भी सामने आए हैं। इनमें माधवपुरा मर्केंटाइल बैंक घोटाला, जम्मू-कश्मीर सहकारी बैंक घोटाला, आदि चर्चित रहे हैं। हाल ही में पंजाब एवं महाराष्ट्र सहकारी बैंक घोटाला हुआ जिससे उपभोक्ताओं में अफरा-तफरी का माहौल बन गया था। बाद में भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से स्थिति में सुधार आया था।
वहीं दूसरी ओर देश में अनुसूचित बैंकों पर भारतीय रिज़र्व बैंक का पर्यवेक्षण रहता है जिसके अंतर्गत इन बैंकों को कई प्रकार के कड़े नियमों का पालन करना होता है। जैसे, इन बैंकों के उच्च प्रबंधन में कौन कौन लोग शामिल होंगे, इनकी योग्यता किस प्रकार आँकी जाएगी, बैंक का प्रबंध निदेशक कौन होगा, बैंक के बोर्ड में कौन कौन सदस्य होंगे एवं उनकी पृष्ठभूमि किस प्रकार की होगी, ये बैंक किस प्रकार ऋण प्रदान करेंगे एवं इस सम्बंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सुझाये गए दिशा निर्देशों का अक्षरशः पालन करेंगे, एक उद्यमकर्ता कम्पनी को एवं कम्पनियों के एक समूह को बैंक द्वारा कितनी राशि का ऋण प्रदान किया जाएगा, किसी एक उद्योग अथवा किसी एक सेक्टर को एक निश्चित सीमा के अंदर ही ऋण राशि प्रदान की जाएगी एवं यदि बैंक में आस्ति देयता प्रबंधन में कोई असंतुलन होता है तो इसे किस प्रकार ठीक किया जाएगा, आदि अन्य कई प्रकार के विवेकपूर्ण मानदंडो का पालन करना अनिवार्य होता है। प्रायः यह पाया गया है कि शहरी सहकारी बैंक उक्त वर्णित नियमों का पालन नहीं करते हैं एवं कई बार तो एक शहरी सहकारी बैंक केवल शिक्षा संस्थानों अथवा अस्पतालों को ही ऋण प्रदान करते चले जाते हैं बग़ैर इस बात की जाँच किए कि इन संस्थानों से ऋण की अदायगी समय पर होगी कि नहीं। ऋण स्वीकृत करते समय कई बार तो केवल यह देखा जाता है कि इस संस्थान को किस व्यक्ति ने प्रारम्भ किया है।
उक्त पृष्ठभूमि के चलते केंद्र सरकार ने देश में 1482 शहरी सहकारी बैंकों और 58 बहु-राज्य सहकारी बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक की निगरानी में लाने के उद्देश्य से एक अध्याधेश जारी किया है जिसे राष्ट्रपति महोदय ने भी मंजूरी प्रदान कर दी है। इस प्रस्ताव पर राष्ट्रपति महोदय के हस्ताक्षर के बाद देश में बैंकिंग नियम (संशोधन) अध्यादेश लागू हो गया है। इसके जरिए अब सरकारी बैंकों की तरह देश भर के सहकारी बैंक भी भारतीय रिजर्व बैंक की निगरानी में आ जाएंगे। इस अध्यादेश का उद्देश्य बेहतर गवर्नेंस और निगरानी सुनिश्चित करके जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा करना है। अध्यादेश का दूरगामी उद्देश्य है कि सहकारी बैंक व्यावसायिक रूख अपनाकर व्यवस्थित बैंकिंग प्रणाली अपनाएं। देश के वित्तीय समावेशन में सहकारी बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उल्लेखनीय है कि सहकारी बैंकों का गठन लघु बचत और निवेश करने वालों की सुरक्षा देने के लिए किया गया था। देश में शहरी सहकारी बैंक और बहुराज्यीय सहकारी बैंकों के पास 8.6 करोड़ जमाकर्ताओं के 4.85 लाख करोड़ रूपये की राशि जमा है।
इस अध्याधेश के जारी होने के बाद भारतीय रिज़र्व बैंक की शक्तियां जैसे अनुसूचित बैंकों पर लागू होती हैं, वैसे ही अब सहकारी बैंकों पर भी लागू होंगी। सहकारी बैंकों का अंकेक्षण प्रति वर्ष भारतीय रिज़र्व बैंक की निगरानी में होगा। अब तक यह अंकेक्षण 18 महीने में होता था। सहकारी बैंकों के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों की नियुक्ति भी भारतीय रिज़र्व बैंक करेगा। शहरी सहकारी बैंकों एवं बहुराज्यीय सहकारी बैंकों को भी भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय समय पर जारी किए जाने वाले विवेकपूर्ण मानदंडो का पालन करना होगा। ऋण स्वीकृत करने सम्बंधी जितने भी नियम भारतीय रिज़र्व बैंक ने बनाए हैं उन सभी नियमों के अनुपालन का भी ध्यान रखना होगा। सहकारी बैंकों में भी अब पेशेवर प्रबंधन को भर्ती करना होगा एवं व्यावसायिक बैंकों से इन्हें प्रतिस्पर्धा भी करनी होगी।
अभी तक सहकारी बैंक शेयर, डिबेंचर अथवा अन्य प्रतिभूतियों को जारी कर पूँजी बाज़ार से पूँजी नहीं उगाह सकते थे। इसके कारण, इन्हें हमेशा ही पूँजी की कमी का सामना करना पड़ता था। इसके विपरीत, व्यावसायिक बैकों को चूँकि आस्तियों के एक निश्चित प्रतिशत (9 से 12 प्रतिशत) तक पूँजी रखना अनिवार्य है अतः इन बैकों को पूँजी बाज़ार में शेयर, डिबेंचर एवं अन्य प्रतिभूतियों को जारी कर पूँजी जुटाने का अधिकार प्राप्त है। अब उक्त अध्याधेश के जारी होने के बाद सहकारी बैंकों को भी यह अधिकार दे दिया गया है कि वे शेयर, डिबेंचर एवं अन्य प्रतिभूतियों को जारी कर पूँजी बाज़ार से पूँजी उगाह सकते हैं। इससे सहकारी बैंकों को ज़्यादा सुरक्षित बनाया जा सकेगा। सहकारी बैकों द्वारा एक निश्चित निर्धारित सीमा तक पूँजी बनाए रखने से, विपरीत परिस्थितियों में, जमाकर्ताओं को एक बफ़र (सुरक्षा कवच) उपलब्ध हो सकेगा एवं सहकारी बैकों में इनकी जमाराशियाँ अधिक सुरक्षित रहेंगी।
कुल मिलाकर इस सबसे अब जमाकर्ताओं का भरोसा न केवल शहरी सहकारी बैकों पर बढ़ेगा, बल्कि औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में भी उनका विश्वास बढ़ेगा। इस प्रकार उनकी गाढ़ी कमाई की रक्षा भी उचित तरीक़े से की जा सकेगी। हालांकि अभी भी इन बदलावों के बावजूद सहकारी बैंकों के प्रबंधन का जिम्मा रजिस्ट्रार ऑफ कोऑपरेटिव्स के पास ही रहेगा।
उक्त अध्याधेश के लागू होने से राज्य सहकारी कानूनों के तहत सहकारी समितियों के राज्य पंजीयकों के मौजूदा अधिकारों में कोई कमी नहीं आएगी। कृषि विकास के लिए दीर्घकालिक वित्त मुहैया कराने वाली प्राथमिक कृषि ऋण समितियां भी इसके दायरे में नहीं आएंगी। अतः यह अध्याधेश मुख्यतः शहरी सहकारी बैंकों एवं बहुराज्यीय सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में सुधार लाने एवं इन बैकों को मज़बूती प्रदान करने के उद्देश्य से लागू किया गया है।