समाज में ईश्वर के अवतार रूप में जन्म लेने के लिए भ्रान्ति व्याप्त है । अब इसी पर विचार करते हैं कि क्या ईश्वर अवतार लेता है या नहीं ? इसी के साथ-साथ यह भी विचारणीय है कि क्या रामचंद्र जी महाराज व महाराज कृष्ण विष्णु के अवतार थे ?
क्या ईश्वर को संसार में धर्म की स्थापना करने के लिए सशरीर आना पड़ता है ?
इस विषय में सप्तम समुल्लास ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में महर्षि दयानंद ने अवतारवाद का निषेध किया है।
सर्वप्रथम हम महर्षि दयानंद के विचारों को जानते हैं जो निम्न प्रकार हैं :–
“ईश्वर अवतार लेता है वा नहीं , उत्तर – नहीं । ईश्वर जन्म नहीं लेता। श्री कृष्ण जी कहते हैं कि जब – जब धर्म का लोप होता है तब – तब मैं शरीर धारण करता हूं।
उत्तर – यह बात वेद विरुद्ध होने से प्रमाण नहीं।
और ऐसा हो सकता है कि श्री कृष्ण धर्मात्मा और धर्म की रक्षा करना चाहते थे कि मैं युग – युग में जन्म लेकर श्रेष्ठ की रक्षा और दुष्टों का नाश करूं तो कुछ दोष नहीं । क्योंकि परोपकाराय संताम विभूतय : परोपकार के लिए सत पुरुषों का तन, मन ,धन होता है ।तथापि इससे श्री कृष्ण ईश्वर नहीं हो सकते।
प्रश्न_ जो ऐसा है तो संसार में ईश्वर के 24 अवतार होते हैं और इनको अवतार क्यों मानते हैं ?
उत्तर __वेदार्थ के न जानने, संप्रदायी लोगों के बहकावे और अपने आप विद्वान नहीं होने से भ्रम जाल में फंसके ऐसी – ऐसी अप्रमाणिक बातें करते और मानते हैं।
उत्तर__प्रथम जो जन्मा है वह अवश्य मृत्यु को प्राप्त होता है ।जो ईश्वर अवतार शरीर धारण किए बिना जगत की उत्पत्ति स्थिति निर्णय करता है , उसके सामने कंस और रावण आदि एक कीड़ी के समान भी नहीं ।वह सर्वव्यापक होने से कंस ,रावण आदि के शरीरों में भी परिपूर्ण हो रहा है ।जब चाहे उसी समय मर्म छेदन कर नाश कर सकता है। भला इस अनंत गुण , कर्म , स्वभाव युक्त परमात्मा को एक क्षुद्र जीव के मारने के लिए जन्म मरण युक्त कहने वाले को मूर्खपन उसे अन्य कुछ विशेष उपमा मिल सकती है। और जो कोई कहे कि भक्त जनों के उद्धार करने के लिए जन्म लेता है तो भी सत्य नहीं । क्योंकि जो भक्तजन ईश्वर की आज्ञा अनुकूल चलते हैं उनके उद्धार करने का पूरा सामर्थ ईश्वर में है । क्या ईश्वर के पृथ्वी ,सूर्य ,चंद्र आदि जगत को बनाने धारण और प्रलय करने रूप कर्मों से कंस , रावण आदि का वध और गोवर्धन आदि पर्वतों का उठाना बड़े कर्म हैं ? जो कोई इस सृष्टि में परमेश्वर के कर्मों का विचार करें तो ‘न भूतो न भविष्यति’ – ईश्वर के सदृश्य कोई न है न होगा और युक्ति से भी ईश्वर का जन्म सिद्ध नहीं होता ।जैसे कोई अनंत आकाश को कहे कि गर्भ में आया वा मुट्ठी भर लिया – ऐसा कहना कभी सच नहीं हो सकता ,क्योंकि आकाश अनंत और सब में व्यापक है ।इससे न आकाश बाहर आता और न भीतर जाता। वैसे ही अनंत सर्वव्यापक परमात्मा के होने से उसका आना-जाना कभी सिद्ध नहीं होता ।आना व जाना वहां हो सकता है , जहां न हो। क्या परमेश्वर गर्भ में व्यापक नहीं था जो कहीं से आया और जो बाहर नहीं था जो भीतर से निकला ? ऐसा ईश्वर के विषय में कहना और मानना विद्याहीनों के सिवाय कौन कहे और मान सकेगा। इसलिए परमेश्वर का जाना -आना, जन्म – मरण कभी सिद्ध नहीं हो सकता ।इसलिए ईसा आदि भी ईश्वर के अवतार नहीं । ऐसा समझ लेना क्योंकि राग, द्वेष , क्षुधा,तृषा , शोक ,दुख, सुख ,जन्म ,मरण आदि गुण युक्त होने से मनुष्य थे।”
ईश्वर सर्वशक्तिमान है। वह कोई भी कार्य करने के लिए किसी अन्य का सहारा नहीं लेता। ईश्वर ने सृष्टि निर्माण के समय 5 तन्मात्राएँ, 5 भूत आदि सब बनाएं । स्थावर, जंगम, मानवी सृष्टि जब सब उसी ने पैदा किए हैं ,तो उसके पैदा किए हुए को मारने के लिए कोई व्यक्ति जन्म लेकर के आए , ऐसा नहीं हो सकता। जिसने बनाए हैं , वही विनाश कर सकता है। जो बनाना जानता हो वह मारना और विनाश करना भी जानता है।
अब देखते हैं कि ब्रह्मर्षि कृष्ण दत्त ब्रह्मचारी इस विषय में क्या कहते हैं ?
“अवतारवाद का खंडन
मुनिवरो !आज का मानव महानंद जी के कथन अनुसार परमात्मा को कोई तो राम शब्द से पुकारता है तो कोई कृष्ण शब्द से पुकारता। यह तो यथार्थ है कि परमात्मा के अनंत नाम हैं।उसको किसी नाम से पुकारो , है तो वह परमात्मा ही। परमात्मा को जिन रूपों में पुकारा जाता है, उन्हीं रूप से प्रकट हो रहा है।
मुनिवरों !
जब मानव रूढ़िवादी बन जाता है ,और रूढ़िवादी बन करके उस महान योगेश्वर कृष्ण को भगवान मान लिया जाता है, तो उस महान आत्मा पर लांछन लगाकर अपने स्वार्थ को पूरा करना चाहता है ।यह हमारी मूढ़ता नहीं तो और क्या है ? यह हमारी अज्ञानता नहीं तो और क्या है ? जिन्होंने अपने दर्शन को नहीं जाना, जिन्होंने अपने वेदों को नहीं जाना और परमात्मा की वाणी वेद पर विचार नहीं किया, यह उनकी अज्ञानता नहीं तो और क्या है ?
निष्कर्ष आया कि अवतारवाद में फंसना मूर्खता के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है अर्थात ईश्वर कभी भी अवतार ग्रहण नहीं करता ।शरीर धारण नहीं करता ।जन्म मरण में नहीं पड़ता। सुख और दुख से दूर रहता है। इसलिए अवतारवाद में विश्वास मत करो।
अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए स्वार्थी व मक्कार लोग समाज में जनसाधारण को भ्रमित करने के लिए नए-नए झूठ बोलते रहते हैं और नई-नई भ्रान्तियों को जन्म देते रहते हैं । जिससे उनकी दुकानदारी चलती रहती है । ऐसे लोगों ने धर्म को भी दुकानदारी या व्यापार का धंधा बना लिया है। जिससे वास्तव में धर्म की हानि हुई है । लोगों के भीतर धर्म व धार्मिकता के भाव उसे मजबूत बनाते हैं , लेकिन इन तथाकथित धर्म के ठेकेदारों या दुकानदारों ने मनुष्य को धर्म के नाम पर भीरु बना दिया है । ऐसे में इन मक्कारों की मक्कारी व छल छद्मों से अपने आपको बचा कर रखना बहुत आवश्यक है। वैज्ञानिक ,तार्किक , बुद्धिसंगत और प्रकृति के नियमों के अनुकूल चलना ही मानव का स्वभाव होना चाहिए। उसके विरुद्ध की गई बातें भ्रामक ,असत्य और सर्वथा मिथ्या होती हैं । उनमें फंसना नहीं चाहिए ।
देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन : उगता भारत