टिड्डियों के इन हमलों से किसान ही नहीं, सरकार और वैज्ञानिक भी खासे परेशान
योगेश कुमार गोयल
टिड्डी दलों द्वारा फसलों को नष्ट कर देने से किसी भी देश में खाद्य असुरक्षा की आशंका बढ़ सकती है। दरअसल जब लाखों टिड्डयों का कोई दल आगे बढ़ता है तो अपने रास्ते में आने वाले सभी तरह के पौधों और फसलों को चट करता हुआ आगे बढ़ जाता है।
पिछले करीब पांच महीनों से भारत-पाकिस्तान सीमा पर राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में टिड्डियों के हमले लगातार जारी है। अभी तक करीब 80 टिड्डी दल भारत में प्रवेश कर देश के कई राज्यों में लाखों हैक्टेयर जमीन पर फसलों को भारी नुकसान पहुंचा चुके हैं। पिछले दिनों तो पाकिस्तान से पहली बार एक साथ 8 टिड्डी दल भारत में घुसे, जिनमें सात दल छोटे थे किन्तु एक दल तीन किलोमीटर लंबा और इतना ही चौड़ा था। राजस्थान के साथ-साथ हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश इत्यादि कई अन्य राज्यों में भी टिड्डी दल एक बार फिर फसलों पर कहर बरपा रहे हैं। पंजाब में तो टिड्डी दलों के संभावित हमले पर काबू पाने और फसलों को खराब होने से बचाने के लिए राज्य सरकार द्वारा हरियाणा और राजस्थान की सीमाओं से लगते बठिंडा, संगरूर, मानसा, फाजिल्का, बरनाला इत्यादि जिलों में अलर्ट भी जारी कर दिया गया है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी विभिन्न क्षेत्रों में टिड्डी दलों के हमले बार-बार हो रहे हैं और ये देश के कई राज्यों में किसानों की बर्बादी की कहानी लिख रहे हैं।
टिड्डी दलों द्वारा व्यापक स्तर पर फसलों को नष्ट कर देने से किसी भी देश में खाद्य असुरक्षा की आशंका बढ़ सकती है। दरअसल जब लाखों टिड्डयों का कोई दल आगे बढ़ता है तो अपने रास्ते में आने वाले सभी तरह के पौधों और फसलों को चट करता हुआ आगे बढ़ जाता है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक मात्र 6-8 सेंटीमीटर आकार का यह कीट प्रतिदिन अपने वजन के बराबर खाना खा सकता है और जब यह समूह में होता है तो खेतों में खड़ी पूरी फसल खा जाता है। एक साथ चलने वाला टिड्डियों का एक झुंड एक वर्ग किलोमीटर से लेकर कई हजार वर्ग किलोमीटर तक फैला हो सकता है। ये अपने वजन के आधार पर अपने से कहीं भारी आम पशुओं के मुकाबले आठ गुना ज्यादा तेज रफ्तार से हरा चारा खा सकती हैं। एलडब्ल्यूओ के मुताबिक दुनियाभर में टिड्डियों की दस प्रजातियां सक्रिय हैं, जिनमें से चार प्रजातियां रेगिस्तानी टिड्डी, प्रवासी, बॉम्बे तथा ट्री टिड्डी भारत में देखी जाती रही हैं। इनमें रेगिस्तानी टिड्डी सबसे खतरनाक मानी जाती है।
चिंता की बात यह है कि बाड़मेर जिले की सीमा से लगते पाकिस्तान के सिंध प्रांत के दक्षिणी हिस्से में बहुत बड़ी संख्या में टिड्डियां अंडे दे रही हैं। भारत में भी टिड्डियों की समर ब्रीडिंग शुरू हो गई है। राजस्थान में तो हाल ही में रेतीली जमीन के नीचे टिड्डियों के अण्डे भी मिले हैं और इस बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ दिन पहले ही इन अण्डों से हॉपर निकले हैं। रेगिस्तानी टिड्डी अब मानसून के दौरान ट्रांजिशनल फेस में ही अंडे देकर प्रजनन करने लगी हैं। राजस्थान में टिड्डियां जैसलमेर, बाड़मेर, श्रीगंगानगर, बीकानेर, जोधपुर, चुरू, नागौर, झुंझनू इत्यादि में अण्डे दे रही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि पाकिस्तान से आ रही गुलाबी टिड्डियां भारत में पहले से मौजूद पीली टिड्डियों के साथ मैटिंग कर रही हैं, जिससे तेजी से प्रजनन की आशंका है। विशेषज्ञों के अनुसार इस साल पाकिस्तान अपने क्षेत्र में टिड्डियों पर नियंत्रण करने में पूरी तरह नाकाम रहा है, जिस वजह से टिड्डियों के होपर्स एडल्ट होकर बड़ी संख्या में राजस्थान की सीमा से भारतीय क्षेत्र में आए हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक टिड्डियों की समर ब्रीडिंग के बाद इनकी बढ़ी जनसंख्या बहुत बड़ा खतरा बन सकती है। फसलों पर थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद बार-बार हो रहे टिड्डियों के इन हमलों से किसान ही नहीं, सरकार और वैज्ञानिक भी खासे परेशान हैं।
टिड्डी दल प्रायः बहुत बड़े समूह में होता है, जो हरी पत्तियों, तने और पौधों में लगे फलों को चट कर जाता है। यह जिस हरे-भरे वृक्ष पर बैठता है, उसे पूरा नष्ट कर देता है। जिस भी क्षेत्र में टिड्डी दल का हमला होता है, वहां सारी फसल चौपट हो जाती है। फिलहाल देशभर में कई टीमें टिड्डी दलों पर नियंत्रण करने की कोशिशों में लगी हैं। केन्द्र सरकार द्वारा एयरक्राफ्ट, ड्रोन तथा विशेष प्रकार के दूसरे उपकरणों के जरिये कीटनाशकों का छिड़काव कर टिड्डियों को नष्ट करने के प्रयास जारी हैं। इसी साल फरवरी माह में भी पाकिस्तान से आए टिड्डी दलों ने राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात इत्यादि कई राज्यों में फसलों को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। पिछले साल राजस्थान में तो दर्जन भर जिलों में टिड्डी दलों ने नौ महीनों के दौरान सात लाख हैक्टेयर से अधिक इलाके में फसलों का सफाया कर दिया था। टिड्डी दल दस किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से सफर करता है और एक दिन में 150 किलोमीटर तक उड़ने की क्षमता रखता है। टिड्डियों का एक छोटा झुंड भी एक दिन में करीब 35 हजार लोगों का खाना खा जाता है और दस हाथियों या पच्चीस ऊंटों के खाने के बराबर फसलें चट कर सकता है।
अगर टिड्डी दलों से होने वाले नुकसान की बात करें तो भारत में वर्ष 1926 से 1931 के बीच टिड्डियों के कारण तत्कालीन मुद्रा में करीब दस करोड़ रुपये तथा 1940 से 1946 के दौरान दो करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। उस नुकसान को देखते हुए 1946 में लोकस्ट वार्निंग ऑर्गेनाइजेशन (एलडब्ल्यूओ) यानी टिड्डी चेतावनी संगठन की स्थापना की गई थी। एलडब्ल्यूओ केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के अंतर्गत कार्यरत है। भारत में 1949-55 के दौरान टिड्डी दलों के हमले से दो करोड़, 1959-62 के दौरान पचास लाख तथा 1993 में करीब 75 लाख रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया गया था। अभी ऐसे हमलों में नुकसान करोड़ों-अरबों रुपये तक पहुंच जाता है। वर्ष 2017 में बोलीविया की सरकार को तो एक बड़े कृषि क्षेत्र में टिड्डियों के हमले के कारण आपातकाल घोषित करना पड़ा था। कई अन्य देशों में भी टिड्डी दलों के हमलों के बाद खाद्य सुरक्षा को लेकर संकट उत्पन्न होता रहा है।
हालांकि किसान पटाखे छोड़कर, थाली बजाकर या अन्य तरीकों से शोर करके टिड्डियों को भगाते रहे हैं क्योंकि टिड्डियां तेज आवाज सुनकर अपनी जगह छोड़ देती हैं लेकिन फिर भी टिड्डी दल किसी भी क्षेत्र से गुजरते हुए वहां की पूरी फसल को चट करता हुआ आगे बढ़ जाता है। हालांकि कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इन उपायों के अलावा टिड्डी दलों से होने वाले नुकसान से बचने के लिए किसानों को कुछ कीटनाशक रसायनों का भी इस्तेमाल करना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा कई पुस्तकों के लेखक हैं, उनकी हाल ही में पर्यावरण संरक्षण पर 190 पृष्ठों की पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ प्रकाशित हुई है)