भारत वर्ष के चालाक चतुर धूर्त राज नेताओं ने 1945 में अनुस्थ्ति चुनावों में देश की हिन्दू जनता से वोट यह कह कर लिया कि कांग्रेस को वोट दें। हम किसी भी कीमत पर मुस्लिम लीग की मांग के हिसाब से देश का विभाजन स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने गांधी की प्रतिष्ठा को भी दाव पर लगा दिया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि गाँधी की लाश पर ही पाकिस्तान बन सकेगा।
भारत वर्ष की 93 प्रतिशत मुस्लिम जनता ने पाकिस्तान की मांग करने वाली मुस्लिम लीग को वोट देकर 30 की 30 मुस्लिम सीट जीता दी। कांग्रेस भारत को अखंड रखेगा कहकर 72 अन्य सीटों में 57 सीटों पर कांग्रेस को हिंदुओं ने विजयी बनाया, पर कांग्रेस ने हिन्दू मतदाताओं को धोखा दिया तथा कांग्रेस के देश विभाजन के प्रस्ताव को मान लेने के बाद लॉर्ड माउंट बैटन ने भारत विभाजन के प्रस्ताव की घोषणा की। प्रस्ताव में लिखा था कि भारत का विभाजन कर दो राष्ट्रों का निर्माण होगा। पाकिस्तान एक नया राष्ट्र बनेगा तथा पुराना भारत काट छाँट के बाद भारत ही रहेगा। विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों महान ब्रिटिश साम्राज्य के उपनिवेश बने रहेंगे। माउंट बैटन की प्लैन के तहत नए राष्ट्र पाकिस्तान को भारत के पूर्व व पश्चिम की भूमि से 30 प्रतिशत भूमि काटकर दे दी गई। पाकिस्तान बाद में इस्लाम धर्म पर आधारित एक इस्लामिक राष्ट्र बना। खंडित भारत के शत प्रतिशत मुसलमानों ने पाकिस्तान बनाने की मांग के समर्थन में वोट दिया, जिन 7 प्रतिशत मुसलमानों ने पाकिस्तान माँग का विरोध किया वे आज के पाकिस्तान के सिंध, पंजाब, व बलूचिस्तान प्रांत के थे। क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि गांधी द्वारा मनोनीत 15 सदस्यीय कांग्रेस कार्यकारिनी समिति देश विभाजन का प्रस्ताव 2 जुलाई 1947 को लेती है और 3 जुलाई को ही भारत के वायसराय लॉर्ड माउंट बैटन भारत विभाजन की प्रस्तावित रूप रेखा पेश कर देते हैं। अब प्रश्न उठता है कि क्या कांग्रेस कार्यकारिनी समिति को यह अधिकार प्राप्त था की वह देश विभाजन जैसे महत्वपूर्ण विषय पर निर्णय ले सकें। यह अधिकार सिर्फ जनता के पास था।
क्या जनता से लिया था रेफरेंडम
कुछ समय पहले आजाद हिंद सेना के कैप्टन डॉक्टर जान जैकब ने कोलकाता में एक सभा में कहा था कि कांग्रेस को क्या अधिकार था की वह देश विभाजन का निर्णय ले सके। क्या उसने इस विषय पर जनता से रेफरेंडम लिया था। यदि नहीं तो उनको मुल्क को बांटने का अधिकार कहां से मिला। मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग पर चुनाव लड़ा था। अब पाकिस्तान बनेगा तो खंडित भारत के विधायकों व सांसदों को भारत छोड़ना पड़ेगा। मुस्लिम लीग ने अपने सभी सांसदों की सभा बुलायी और सर्व सम्मति से निर्णय लिया गया। गांधी को भारत के बँटवारे का प्रस्ताव पास कराने के लिए रेफ़रेंडम पर जाने का भय था, तो मुस्लिम लीग की तरह कांग्रेस के विधायकों व सांसदों की मीटिंग बुलाते और सर्व सम्मति से भारत विभाजन का प्रस्ताव पास करवाते। गांधी को मालूम था यदि रेफ़रेंडम लिया गया इस भारत विभाजन के प्रस्ताव को हिन्दू व सिख जनता का समर्थन नहीं मिलेगा और नाही सांसदों व विधायकों की मीटिंग में भी कांग्रेस के भारत विभाजन प्रस्ताव को मंज़ूरी मिलेगी क्योंकि ये विधायक व सांसद भारत अखण्ड रहेगा।
पुरुषोत्तम दास टंडन ने किया विरोध
इस नारे के साथ जीत कर आए थे तो चोर दरवाज़े कांग्रेस कार्यकारिणी समिति से प्रस्ताव पास करवाया और तब माउंट बैटन ने भारत विभाजन की घोषणा कर दी। इसके बाद 16 जुलाई 1947 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में प्रस्ताव लाया गया जिसका विरोध पुरुषोत्तम दास टंडन व अन्य वरिष्ठ नेताओं ने किया। 15 अगस्त 1947 को किसी भी क़ीमत पर देश के स्वतंत्रता दिवस के रूप में नहीं मनाया जा सकता, क्योंकि इसी दिन भारत भूखंड का 30 प्रतिशत भाग काट कर एक नए राष्ट्र पाकिस्तान का जन्म हुआ। 15 अगस्त 1947 को राष्ट्र ब्रिटिश साम्राज्य का एक अंग राज्य था। यहां के गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंट बैटन थे, गवर्नर जनरल हाउस यानी आज के राष्ट्रपति भवन पर ब्रिटिश साम्राज्य का पताका यूनियन जैक लगा हुआ था। यहां का मिलिट्री चीफ अंग्रेज था। इतनी सब बातें होते हुए हम कैसे कह सकते हैं कि 15 अगस्त 1947 भारत का स्वतंत्रता दिवस है। अंग्रेजों ने भारत पर से अपना उपनिवेश हटाने की शर्त रखी थी।
20 लाख से अधिक हिन्दू मार दिए गए
आपका जब संविधान बन कर लागू हो जाएगा हम आपको स्वतंत्र कर देंगे। संविधान सभा की समाप्ति पर 21 नवम्बर 1949 संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर अंबेडकर ने कहा कि आगामी 26 जनवरी से हमारा अपना संविधान लागू होगा और भारत औपनिवेशक राष्ट्र नहीं रह कर एक स्वतंत्र राष्ट्र हो जाएगा। इसका अर्थ यह है कि 26 जनवरी 1950 को हम ब्रिटिश उपनिवेश से मुक्त होकर स्वतंत्र राष्ट्र बने। 15 अगस्त 1947 भारत के लोगों के लिए विशेष कर पाकिस्तान में रह गए हिंदुओं के लिये बहुत दुःख भरा दिन है। इसी दिन 20 लाख से अधिक हिन्दू मार दिए गए, करोड़ों को घर छोड़ना पड़ा। इन सब बातों को देखते हुए हम यही कह सकते हैं कि 15 अगस्त 1947 हमारा राष्ट्रीय शोक दिवस है।