बिन मांगे अमृता मिल गई

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इंसान सदियों से अमर होना चाहता है | बुढ़ापा, मृत्यु से छुटकारा पाना चाहता है…. क्या यह संभव है? मृत्यु से बचने के लिए अंतिम सांस तक मशक्कत करता है इंसान फिर भी मृत्यु तो अटल है… इंसान की यह जन्मजात स्वाभाविक इच्छा पूरी हो ना हो लेकिन 4mm के एक समुद्री जीव के मामले में ऐसा नहीं है… वह मृत्यु को चकमा दे देता है… उसने अमृता को हासिल कर लिया है|

सोचिए आप 100 वर्ष के बुजुर्ग है… आपका शरीर वृद्धावस्था के कारण कार्य संपादन में अक्षम हो गया है…. अंग इंद्रियां शिथिल हो रही है… मृत्यु कभी भी आप का आलिंगन कर सकती है…. आपकी परिजन आपकी मुक्ति की कामना कर रहे हैं धार्मिक ग्रंथ का पाठ चल रहा है…. असल में यह मुक्ति कि नहीं दर्द , यातना मुक्त मृत्यु की कामना होती है( मुक्ति केवल और केवल जीवित युवा अवस्था में परमात्मा को जानकारी ही होती है) अचानक आपके शरीर में तेजी से कोशिका के स्तर पर परिवर्तन होता है… आपकी शरीर की खरबो कोशिकाएं आपको पुनः जवान 25 वर्ष का नवयुवक बना देती है… अब आप 100 वर्ष के बुजुर्ग ना होकर चुस्त तंदुरुस्त 25 वर्ष के युवा है… कुछ घंटों दिनों में ही यह हो जाता है इस पर किसी को विश्वास नहीं होता|

विज्ञान की भाषा में इसे ट्रांस सेल्यूलर डिफरेंटशिएशन कहते हैं| इंसान के मामले में नहीं समुद्री जीव जेलीफिश की एक खास प्रजाति Turritopsis dohrnii के मामले में ऐसा होता है| यह जेलीफिश दुनिया के समस्त महासागरों में पाई जाती है|

अन्य जेलीफिश की तरह इसके जीवन की भी 4 अवस्थाएं होती हैं अंडा, लारवा, पल्प ,मेडूसा| जैसे हम मनुष्यों की शिशु किशोर युवा वृद्ध अवस्था होती है,यह ठीक ऐसे ही है | यह जेलीफिश जैसे ही समुंदर में घायल हो जाती है या किसी खतरे का आभास करती हैं इसके शरीर की कोशिकाएं सिमटकर गोलाकार आकृति में बदल जाती है…. इसके शरीर की कोशिकाएं दूसरे अंगों की कोशिकाओं में रूपांतरित हो जाती है… अपनी मेडूसा अवस्था से , पल्प अवस्था में चली जाती है…. यह ठीक है सा यह जैसा ऊपर बताया गया है इंसानों के मामले में| अर्थात इसका शरीर मरने से पहले ही दूसरे शरीर धारण कर लेता है… उसी जेनेटिक मैटेरियल के साथ|

1990 के आसपास जर्मनी के मरीन बायोलॉजी के छात्र सुमर ने इटली के समुंदर में इस जेलीफिश के इस वैज्ञानिक रहस्य को खोजा था….|

लेकिन यह अमृता बड़ी अजीबो-गरीब है| जेलीफिश कि यह अमृता कुछ विचित्र नियमों द्वारा नियंत्रित है…. स्वभाविक सी बात है यह नियम हमने और आपने तो नहीं बनाए विधाता सर्वशक्तिमान ईश्वर ने ही बनाए हैं|

जेलीफिश कि यह अमृता शाश्वत नहीं है jellyfish केवल 12 ही नवीन शरीर पा सकती है… संक्रमण से यदि जेलीफिश को नुकसान होता है तो वह मर सकती है उसकी यह विलक्षणता उसके काम नहीं आएगी या अन्य कोई जीव उसको को अपना शिकार बना ले… तब भी उसका अंत निश्चित है…. वैज्ञानिक कहते हैं यदि जेलीफिश की इस खास प्रजाति को इन शर्तों के साथ अमृता नहीं मिलती तो दुनिया के महासागर इस जीव के कारण भर जाते|

सोचिए ऐसी अमृता मगरमच्छ सार्क व्हेल जैसे समुद्री जीवो को मिल जाती तो वह पूरे समुद्री जीवन को ही खत्म कर डालते हैं….. लेकिन सर्वशक्तिमान ईश्वर ने उन्हें नहीं दी….|

दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिक जेलीफिश पर अध्ययन कर मनुष्य को कैंसर जैसी बीमारियों से बचाने के लिए शोध कर रहे हैं…. कैंसर कोशिकाओं का ही रोग है….| इंसान जेलीफिश की तरह अमर तो नहीं लेकिन कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों से मुक्त होकर लंबा स्वस्थ दीर्घ जीवन जरूर पा सकता है….|

*आर्य सागर खारी*✍✍✍

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