” * पर्यावरण |
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एक प्राकृतिक जंगल को विकसित होने में 100 से लेकर 1000 वर्षों तक का समय लग जाता है| जंगलों का इतिहास मानव सभ्यता के इतिहास से प्राचीन है…………..| लेकिन क्या यह संभव है की शुरुआती साधारण सी देखरेख में 3 से लेकर 5 वर्षों में जंगल से बाहर जंगल अर्थात महानगरों शहरों के खाली भूखंडों, ग्रीन बेल्ट आदि में प्राकृतिक जंगल विकसित हो जाएं….| जी हां यह संभव है साक्षात साकार रूप भी है… इसे संभव कर दिखाया है 92 वर्ष के पर्यावरणविद अकीरा मियावाकी ने |
आज दुनिया के महानगरों जिनमें भारत के बेंगलुरु मुंबई गुरुग्राम दिल्ली शामिल है अकीरा मियावाकी की तकनीक से 3 वर्षों में शहर के बीचो बीच हरे भरे जंगल लगाए खड़े कर दिए गए हैं|भारत में जंगल निर्माण कि यह तकनीक शुरुआती चरणों में है |
आइए समझते हैं क्या है यह तकनीक? यह एक ग्रीन टेक्नोलॉजी है| 1990 में अकीरा मियावाकी ने रियो डी जेनेरियो जनेरियो एनवायरनमेंट सम्मेलन में इसे बताया|
अकीरा मियावाकी जापानी है उन्होंने देखा जापान के प्राचीन मंदिरों बौद्ध मठों प्रार्थना स्थलों के आसपास उगे हुए वृक्ष बहुत प्राचीन है तथा तेजी से विकसित होते हैं| ऐसे धार्मिक स्थलों के आस पास लगे हुए वह वृक्ष नष्ट हो जाते हैं जो उस स्थानीय धार्मिक स्थल या भूभाग की मिट्टी आबोहवा के अनुकूल नहीं होते| उन्होंने गौर किया किसी भी स्थानीय भूभाग में पाए जाने वाले मूल वृक्ष मात्र 0.061% ही होते हैं….| इन्हें स्थानीय वृक्षों को तीन भागों में बांट कर झाड़ियों में ,मध्यम ऊंचाई शीर्ष ऊंचाई वाले वृक्षों को लेकर… एक आर्डर में यदि सघन वृक्षारोपण किया जाए तो वृक्षों की बढ़वार तेजी से होती है…..| वृक्षारोपण शत-प्रतिशत सफल होता है| मियावाकी तकनीक की झलकियां हमें अपने प्यारे भारतवर्ष देश में धार्मिक स्थल , सिद्ध स्थलों तपोभूमिओं में मिल जाती है| धार्मिक स्थलों पर हमारे पूर्वज स्थानीय मिट्टी व जलवायु के अनुकूल वृक्ष लगाते थे…. आपको भारतवर्ष में प्रत्येक पांच 10 गांवों के बीच इको फॉरेस्ट मिल जाएंगे जिन्हें स्थानीय भाषा में लोग बनी , झीडी, धाम बोल देते है….| इनमें स्थानीय देशज वृक्ष पाए जाते हैं जो दीर्घायु व स्वस्थ रहते हैं…..| बात मियावाकी तकनीकी करे तो मियावाकी तकनीक में मिट्टी परीक्षण कर पहले कम ऊंचाई के वृक्षों का वृक्षारोपण किया जाता है फिर उन्हीं से सटाकर मध्यम ऊंचाई अधिक ऊंचाई वाले वृक्षों का वृक्षारोपण किया जाता है…. यदि साधारण रीति से वृक्षारोपण करे तो 1 एकड़ में मात्र 800 वृक्ष लगाए जा सकते हैं लेकिन मियावाकी तकनीक से 1 एकड़ भूमि में 12000 के लगभग वृक्ष लगाए जा सकते हैं… क्योंकि पौधों से पौधों की दूरी इस तकनीक में बहुत कम होती है| ऐसे में सूर्य का प्रकाश जमीन पर नहीं पड़ता पौधों के नीचे नमी बनी रहती है सिंचाई हेतु बहुत कम जल की आवश्यकता पड़ती है |पौधे धुआंधार ऊर्ध्वाधर दिशा में तेजी से वृद्धि करते हैं…|
आज पर्यावरण संरक्षण, विकास के नाम पर भी प्राइवेट लिमिटेड कंपनियां स्टार्टअप विकसित हो गए हैं….| इनका उद्देश्य अधिकांश का आर्थिक ही होता है….| हरियाली को बढ़ावा देने पर्यावरण के संरक्षण विकास में जितना योगदान एक निष्पक्ष पर्यावरण कार्यकर्ता या सामाजिक संगठन दे सकता है उतनी अपेक्षा इन कंपनियों से नहीं की जा सकती…| मियावाकी तकनीक भारत में शुरुआती चरण में है | बड़े-बड़े महानगर नगर निगम ,विकास प्राधिकरण इस तकनीक के लिए टेंडर खोलते हैं ऐसी ही धन लूटने वाली कंपनियां मियावाकी जंगल के नाम पर मोटा मुनाफा कमा रही है…. यह तकनीक बुरी नहीं है| जनहित में इसका प्रशिक्षण आम पर्यावरण प्रेमी लोगों को भी प्रदत किया जाना चाहिए… जिससे शहरों सेक्टरों गांवों में खाली भूमि में छोटे-छोटे जंगल विकसित हो सके…| ऐसे जंगलों में दिव्या जड़ी बूटियां वटवृक्ष गूलर पीपल खेजड़ी नीम जैसे दरख़्त सदाबहार वृक्ष पुष्पित पल्लवित हो|
आर्य सागर खारी ✍✍✍