योगेश कुमार गोयल
मेक इन इंडिया मुहिम में भारत का बड़ा सहयोगी है रूस, जल्
रूस सदैव भारत का मददगार साबित हुआ है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अथवा एनएसजी में भारत की सदस्यता के लिए समर्थन की बात हो या शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता दिलाने में भारत की मदद करने का मामला, रूस हमेशा हमारा भरोसेमंद मित्र साबित हुआ है।
पिछले दिनों तीन दिवसीय दौरे पर मॉस्को गए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रूसी उपप्रधानमंत्री यूरी बोरिसोव से द्विपक्षीय रक्षा संबंधों पर चर्चा के बाद उम्मीद जताई थी कि रूस से भारत को समय पर एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली मिल जाएगी। उनकी रूस यात्रा का मुख्य उद्देश्य ही एस-400 रक्षा प्रणाली सहित भारत-रूस के बीच हुए रक्षा सौदों की जल्द आपूर्ति कराना था। दरअसल चीन नहीं चाहता कि रूस भारत को एस-400 सहित इन रक्षा सौदों की शीघ्र आपूर्ति करे लेकिन रूस द्वारा भारत को जल्द से जल्द एस-400, सुखोई-30 एमकेआई तथा मिग-29 की आपूर्ति के संकेत दिया जाना निःसंदेह चीन के लिए बड़ा झटका है।
रूस अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सदैव भारत का मददगार साबित हुआ है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अथवा एनएसजी में भारत की सदस्यता के लिए समर्थन की बात हो या शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता दिलाने में भारत की मदद करने का मामला, रूस हमेशा हमारा भरोसेमंद मित्र साबित हुआ है। 13 अप्रैल 1948 को दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक दोस्ती दुनिया ने देखी थी, उसके बाद से दोनों देश एक-दूसरे के पूरक बने रहे। 1991 में सोवियत संघ के बिखराव के बाद दोनों देशों के आपसी रिश्तों में कुछ शिथिलता आई थी लेकिन व्लादिमीर पुतिन ने रूस की सत्ता संभाली तो पुरानी दोस्ती फिर पहले की तरह परवान चढ़ने लगी। वर्ष 2000 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस दोस्ती को प्रगाढ़ करने के उद्देश्य से दोनों राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्षों की वार्षिक भेंट की परम्परा का श्रीगणेश किया, जिसमें दोनों देशों द्वारा क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बढ़ाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण फैसले भी लिए जाते हैं। उसी कड़ी में दो वर्ष पूर्व 19वीं वार्षिक बैठक में भारत-रूस के बीच करीब पांच अरब डॉलर के रक्षा सौदों सहित कुल दस अरब डॉलर के ऊर्जा, टैक्नोलॉजी, साइंस, रेलवे, अंतरिक्ष, शिक्षा, पर्यटन इत्यादि कई क्षेत्रों में अहम समझौते हुए थे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच 2018 में हुई शिखर बैठक के दौरान वायुसेना को ताकत प्रदान करने के लिए करीब 5.43 अरब डॉलर यानी 40 हजार करोड़ रुपये में एस-400 एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल रक्षा प्रणाली की पांच इकाईयां खरीदने का करार हुआ था, जिसे देश के रक्षा क्षेत्र में एक नए युग की शुरूआत माना गया था। इनमें से दो यूनिट 2021 के अंत तक भारत को मिलनी हैं और इन्हीं की जल्द आपूर्ति के लिए रक्षामंत्री द्वारा रूस यात्रा के दौरान बातचीत हुई। एस-400 प्रणाली भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल करने के लिए रूस के साथ महत्वपूर्ण करार होने के बाद तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ ने कहा भी था कि एस-400 तथा राफेल विमान वायुसेना के लिए ‘बूस्टर खुराक’ होगी। चीन, पाकिस्तान तथा अन्य दुश्मन पड़ोसी देशों से निपटने के लिए भारत को इस रक्षा प्रणाली की सख्त जरूरत भी है।
मल्टीफंक्शन रडार से लैस दुश्मन की बर्बादी का ब्रह्मास्त्र मानी जाने वाली एस-400 दुनियाभर में सर्वाधिक उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियों में से एक है, जो रूसी सेना में 2007 में सम्मिलित हुई थी। यह ऐसी प्रणाली है, जिसके रडार में आने के बाद दुश्मन का बच पाना असंभव हो जाता है। इसके हमले के सामने भागना तो दूर, संभलना भी मुश्किल होता है। कुछ रक्षा विशेषज्ञ इसे जमीन पर तैनात ऐसी आर्मी भी कहते हैं, जो पलक झपकते ही सैंकड़ों फीट ऊपर आसमान में ही दुश्मनों की कब्र बना सकती है। कहा जा रहा है कि एस-400 के वायुसेना में शामिल होने के बाद भारत जमीन की लड़ाई भी आसमान से ही लड़ने में सक्षम हो जाएगा। यह एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम तीन तरह के अलग-अलग मिसाइल दाग सकता है और इसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी आसानी से पहुंचाया जा सकता है। यही नहीं, नौसेना के मोबाइल प्लेटफॉर्म से भी इसे दागा जा सकता है। एस-400 में मिसाइल दागने की क्षमता पहले से ढ़ाई गुना ज्यादा है। यह कम दूरी से लेकर लंबी दूरी तक मंडरा रहे किसी भी एरियल टारगेट को पलक झपकते ही हवा में ही नष्ट कर सकती है। यह मिसाइल प्रणाली पहले अपने टारगेट को स्पॉट कर उसे पहचानती है, उसके बाद मिसाइल सिस्टम उसे मॉनीटर करना शुरू कर देता है और उसकी लोकेशन ट्रैक करता है। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक इस मिसाइल प्रणाली को अगर आसमान में फुटबॉल के आकार की भी कोई चीज मंडराती हुई दिखाई दे तो यह उसे भी डिटेक्ट कर नष्ट कर सकती है।
एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की विशेषता इसी से समझ सकते हैं कि अमेरिका के एफ-35 जैसे सबसे एडवांस्ड फाइटर जेट भी इसके हमले से बच नहीं सकते। चीन रूस से यह मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने वाला पहला देश था। यह प्रणाली जमीन से मिसाइल दागकर हवा में ही दुश्मन की ओर से आ रही मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम है। यह एक साथ 36 लक्ष्यों और दो लॉन्चरों से आने वाली मिसाइलों पर निशाना साध सकती है और 17 हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से 30 किलोमीटर की ऊंचाई तक अपने लक्ष्य पर हमला कर सकती है। इसे मात्र पांच मिनट में ही युद्ध के लिए तैयार किया जा सकता है। 600 किलोमीटर की दूरी तक निगरानी करने की क्षमता से लैस एस-400 की मदद से भारत के लिए पाकिस्तान के चप्पे-चप्पे पर नजर रखना भी संभव हो सकेगा। यह किसी भी प्रकार के विमान, ड्रोन, बैलिस्टिक व क्रूज मिसाइल तथा जमीनी ठिकानों को 400 किलोमीटर की दूरी तक ध्वस्त करने में सक्षम है। इसके जरिये भारतीय वायुसेना देश के लिए खतरा बनने वाली मिसाइलों की पहचान कर उन्हें हवा में ही नष्ट कर सकेगी। भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा बन रहे धूर्त पड़ोसी देश चीन ने रूस से 2014 में ही एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीद ली थी। यही कारण है कि 3488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा के मद्देनजर हमारे लिए भी यह रक्षा प्रणाली हासिल करना और अपनी रक्षा प्रणाली को मजबूत करते हुए वायुसेना की ताकत बढ़ाना बेहद जरूरी हो गया है।
भारत की रक्षा जरूरतों की बात करें तो भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार खरीदार देशों में से एक है, जो हथियार और रक्षा उपकरण सबसे ज्यादा रूस से ही खरीदता रहा है। कभी भारत की करीब 80 फीसदी रक्षा जरूरतें रूस से ही पूरी होती थी किन्तु वक्त की मांग के अनुरूप भारत ने अमेरिका, फ्रांस और इजरायल के साथ भी कई बड़े रक्षा समझौते किए लेकिन फिर भी करीब 58 फीसदी रक्षा सौदे भारत आज भी रूस के साथ ही करता है। अगर 2013 से 2017 के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि दुनियाभर में हथियारों का करीब 12 फीसदी आयात भारत में ही हुआ, जो अन्य देशों के मुकाबले सर्वाधिक था। वैसे हथियारों के उत्पादन की भारत की ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम में भी रूस भारत का बहुत बड़ा मददगार साबित हो रहा है। मेक इन इंडिया सैन्य प्रोजेक्ट के तहत रूस के पास 12 अरब डॉलर की परियोजनाएं हैं।
भारत-रूस के बीच हथियारों के संयुक्त उत्पादन तथा तकनीक के हस्तांतरण में ब्रह्मोस मिसाइल सबसे महत्वपूर्ण है, जिसे फिलीपींस, वियतनाम जैसे चीन के दुश्मन भी खरीदने के इच्छुक हैं। रूस से 18 सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों के लिए पांच हजार करोड़ रुपये तथा 200 कामोव-226टी यूटिलिटी हेलीकॉप्टरों के लिए 3600 करोड़ रुपये का सौदा है, जिनका हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) में रूस के सहयोग से उत्पादन हो रहा है। अमेठी में 7.5 लाख एके-203 असॉल्ट राइफलों के निर्माण के लिए भी रूस से 12 हजार करोड़ का करार हुआ है। भारतीय नौसेना भी रूसी सहयोग से निर्मित छह युद्धपोतों आईएनएस तलवार, त्रिशूल, ताबर, तेग, तरकश और त्रिकांड का संचालन कर रही है। रूस से 17 हजार करोड़ रुपये के चार युद्धपोतों के सौदों में से दो का निर्माण भी भारत में ही हो रहा है। रूस के साथ अन्य रक्षा सौदों में 5175 शॉर्ट रेंज की इग्ला एस मिसाइल का डेढ़ अरब डॉलर का सौदा तथा परमाणु पनडुब्बी का 21 हजार करोड़ रुपये का सौदा शामिल हैं। मिग-35, सुखोई-35 जैसे 114 मध्यम लड़ाकू विमानों के अलावा पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के साझा उत्पादन को शीघ्र स्वीकृति मिलने की भी संभावना है। छह पनडुब्बियों के जल्द सौदा होने की उम्मीद है, जिसके लिए रूस भारत को तकनीक देने को तैयार है। 2022 तक शुरू होने वाले भारत के पहले गगनयान मानव मिशन के लिए रूस भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण भी दे रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा कई पुस्तकों के लेखक हैं, उनकी हाल ही में पर्यावरण संरक्षण पर 190 पृष्ठों की पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ प्रकाशित हुई है)