प्रियंका गांधी के सरकारी बंगले पर जारी विवाद के दृष्टिगत शरद पवार बोले : मिलना चाहिए जिंदगी भर के लिए सरकारी बंगला
सोनिया गाँधी के विदेशी होने के कांग्रेस छोड़ने वाले शरद पवार के बदले स्वर |
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
देश के कई नेता राजनीति के चंद नकारात्मक पहलुओं से खुद को कभी उबार नहीं पाते हैं। सामाजिक और राजनीतिक मंचों पर अक्सर उनके भीतर बैठी ‘जातिवादी कुंठा’ बाहर आ ही जाती है। हाल ही में कुछ इस तरह की मानसिकता का प्रदर्शन किया है एनसीपी के मुखिया शरद पवार ने।
दरअसल कुछ ही दिन पहले कॉन्ग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव को 35 लोधी रोड स्थित सरकारी आवास खाली करने का आदेश दिया गया था। जिस पर शरद पवार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर जातिवादी कटाक्ष करते हुए इसे ‘शूद्र स्तर की राजनीति’ बताया।
पूरे 33 सालों में पहली बार शिवसेना के मुखपत्र सामना में ऐसे नेता का साक्षात्कार प्रकाशित हुआ, जो शिवसेना से संबंध नहीं रखता है। तीन हिस्सों में तैयार हुए इस साक्षात्कार के दौरान शरद पवार ने कई अहम मुद्दों पर बात की, जिसमें महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी से लेकर प्रियंका गाँधी का सरकारी आवास खाली कराने का आदेश तक शामिल था। सामना के उप संपादक संजय राउत से बात करते हुए शरद पवार ने कहा:
“नेहरू जैसा कद देश के किसी दूसरे नेता का नहीं है। उनकी बेटी इंदिरा गाँधी ने देश के लिए बलिदान दिया, उनके बेटे राजीव गाँधी ने भी देश के लिए बहुत योगदान दिए। अपने पिता की मौत के बाद अपनी माँ के साथ मिल कर वह पार्टी को अच्छी सूरत देने की हर संभव कोशिश कर रही हैं। हमारे राजनीतिक मतभेद भले हो सकते हैं लेकिन उन्हें सरकारी आवास से निकलने का आदेश जारी करना बदले की राजनीति नहीं बल्कि निम्न जाति के स्तर की राजनीति है।”
जहाँ तक इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी के बलिदान की बात है, यह तो 1855 में ही फ्रैंच ज्योतिष नॉस्त्रेदमस ने वर्ष सहित पहले ही लिख दिया था कि इनकी मृत्यु कैसे होगी, ठीक वैसे ही इनके जीवन का अंत हुआ। फिर भारत सरकार का नियम है कि आपातस्थिति में किसी भी एयरलाइन का कोई भी पायलट छुट्टी पर नहीं रहेगा, लेकिन 1971 में इंडो-पाक युद्ध के दौरान सिर्फ राजीव गाँधी ही ऐसे पायलट थे, जो ड्यूटी पर रहने की बजाए इटली घूमने गए हुए थे। क्या इसी का नाम देशभक्ति है? अगर राजीव की बजाए किसी अन्य पायलट ने ऐसा किया होता, शरद पवार बताएं, उस पायलट के साथ क्या होता?
संजय राउत ने याद दिलाया कि केंद्र सरकार के इस आदेश पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने पहले कहा था कि मोदी सरकार बदले की राजनीति कर रही है। इस पर शरद पवार ने कहा कि यह बदले की राजनीति नहीं बल्कि शूद्र स्तर की राजनीति है।
शरद पवार के अनुसार भारत में लोकतंत्र नेहरू-गाँधी परिवार की जागीर है। और इसी आधार पर प्रियंका गाँधी को सरकारी बंगला जिंदगी भर के लिए मिलना चाहिए। पवार के अनुसार अगर सरकार हद से ज्यादा सब्सिडी वाले ऐसे बंगलों में रहने का प्रियंका गाँधी का अधिकार छिनती है तो यह ‘शूद्र स्तर की राजनीति’ है।
सरकार ने कुछ ही समय पहले प्रियंका गाँधी के लिए आदेश जारी किया था कि उन्हें 35 लोधी रोड स्थित सरकारी आवास खाली करना होगा। जिस पर एनसीपी मुखिया शरद पवार ने सामना के साक्षात्कार में यह प्रतिक्रिया दी। आपको बता दें कि इसके पहले पिछले साल नवंबर महीने में प्रियंका गाँधी की एसपीजी सुरक्षा भी वापस ले ली गई थी।
प्रियंका गाँधी को यह बंगला केंद्र सरकार की तरफ से दिया गया था। उन्हें यह बंगला इसलिए दिया गया था क्योंकि उन्हें एसपीजी सुरक्षा मिली हुई थी। कुछ समय पहले उन्हें एक पत्र के माध्यम से सूचना जारी की गई थी, जिसके मुताबिक़ उन्हें 1 महीने के भीतर बंगला खाली करना था। उल्लेखनीय बात यह भी है कि यह बंगला 23 साल से उन्हें ही मिला हुआ था।
यह कोई पहला ऐसा मौक़ा नहीं है, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए इस तरह की अमर्यादित और जातिवादी भाषा का उपयोग किया गया है। इसके पहले कॉन्ग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री मोदी पर अनैतिक टिप्पणी की थी। 2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान प्रचार करते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के लिए ‘नीच’ शब्द का इस्तेमाल किया था। मणिशंकर अय्यर ने अपने बयान में कहा था:
“मुझे लगता है कि यह आदमी बहुत नीच किस्म का आदमी है। इसमें कोई सभ्यता नहीं है और ऐसे समय पर इस किस्म की गंदी राजनीति करने की क्या आवश्यकता थी?”
आखिर किस आधार पर लोकतंत्र को नेहरू-गाँधी की जागीर बता रहे हैं, मक्खनबाजी की भी एक सीमा होती है? अगर लोकतंत्र इस परिवार की जागीर है, फिर किस कारण से सोनिया गाँधी को विदेशी बताकर कांग्रेस छोड़ नयी पार्टी बनाई? शरद जी कथनी और करनी में अंतर करना सीखो पहले। क्या लोकतंत्र की जागीर वाले अपने प्रधानमंत्री के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं? क्या इस जागीर को तुष्टिकरण करते भारत के इतिहास को ही बदलने, और वास्तविकता की बात करने वालों को साम्प्रदायिक, फिरकापरस्त और देश की शांति भंग करने वाले उपनामों से सम्बोधित करने का अधिकार है?
आपने कई बार दिल्ली में स्थित क़ुतुब मीनार को देखा होगा लेकिन इतनी बारीकी से शायद कभी नहीं देखा होगा जितनी बारीकी से इन सज्जन ने हमें यह इमारत पहली बार दिखलाई है हमारी संस्कृति को ही बदल और नष्ट कर दिया उसका जीता जागता उदाहरण आपके सामने हैं आप भी ध्यान से देखिए
सोशल मीडिया पर उपरोक्त वीडियो देख स्मरण आती है मुख्य संपादक केवल रतन मलकानी का लेख एवं बात। दरअसल, 1980 में मुंबई के बाबूभाई पटेल ने अपनी पत्रिका के प्रथम अंक में प्रतिष्ठित लोगों से लेख आमंत्रित किये थे, मलकानी जी के हिन्दुत्व लेख पर मेजर(सेवानिर्वित) हबीबुल्ला ने विरोध किया था, जिस पर दोनों के बीच आर्गेनाइजर में प्रकाशित होते एक पत्राचार में क़ुतुब मीनार के विषय में वर्णन था, जिसकी पुष्टि के लिए जब उनसे शंका दूर करने पर चर्चा पर उन्होंने जेब से 10 रूपए देकर बोले कि कल संडे है, अपने माता-पिता को लेकर क़ुतुब मीनार जाना, जो वो कहें उनको खिलाना, वहां जाकर इन-इन स्थानों को ध्यान से देखना, खंडित मूर्तियां दिखाई पड़ेंगी। जो सिद्ध करता है कि यह किसी मुग़ल आतताई का नहीं, बल्कि हिन्दू सम्राट द्वारा निर्मित स्मारक है। घर आकर पिताश्री एम.बी.एल.निगम को बताने पर बोले,”गलत क्या है, मुग़ल बादशाहों ने लूटपाट के सिवाए किया ही क्या था? ये सारा खेल कांग्रेस और कम्युनिस्टों का खेल है, असली हिस्ट्री की बजाए गलत हिस्ट्री पढ़ाई जा रही है।” दुर्भाग्य से वह पृष्ठ प्रकाशित नहीं हो पाए, क्योकि सोमवार को ऑफिस आकर मेजर ने मलकानी जी से माफ़ी मांग, विवाद को समाप्त करने का आग्रह किया था, परिणामस्वरूप, प्रेस से दोनों पृष्ठ वापस ले लिए। उन दिनों आर्गेनाइजर मंगलवार को प्रकाशित होता था।
वास्तव में जब क़ुतुब मीनार जाकर देखा तो असलियत सामने आ गयी, जैसाकि पिताश्री और मलकानी ने बताया था। और वीडियो में जो दर्शाया जा रहा है, कटु सच्चाई है। यानि उस जागीर की(नेहरू-गाँधी परिवार, शरद पवार के अनुसार) भारत को देन।
शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेताओं का कर्तव्य है कि देश के सम्मुख असलियत लाएं, या अपने आपको नेता न कहलवाएं। भीड़ तो अपनी जीविका के लिए सड़क पर मदारी भी लगा लेते हैं। जब इस परिवार की गुलामी ही करनी थी, फिर कांग्रेस क्यों छोड़ी थी? आखिर जनता को क्यों पागल बना रखा है? निर्वाचित होने पर शपथ लेते ही पेंशन के हक़दार बन, देश को सफेदपोशी बन लूटने की गलत परम्परा को चालू रखे हुए हैं। जनसेवक को पेंशन क्यों? जनता को नहीं मालूम की हर माह कितने करोड़ पेंशन के रूप में इन नेताओं की जेब में जाता है। सदन के सदस्य रहते मुफ्त में लाखों की सुविधायें भी चाहिए। राजनीति को व्यापार बनाकर रख दिया है।