भारत में जनसंख्या पर ब्रेक समय की आवश्यकता, सरकार को उठाने होंगे कड़े कदम
डॉ. रमेश ठाकुर
जनसंख्या नियंत्रण पर जब भी कानून बनाने की मांग उठती है, उसे सियासी मुद्दा बना दिया जाता है। जबकि, इस समस्या से आहत सभी हैं। पढ़ा लिखा हिंदु−मुसलमान, सिख−ईसाई सभी समर्थन में हैं कि इस मसले पर मुकम्मल प्रयास होने चाहिए।
बेहताशा बढ़ती जनसंख्या ने ना केवल वर्तमान विकास क्रम को प्रभावित किया है, बल्कि अपने साथ भविष्य की कई चुनौतियां को भी हमारे समक्ष खड़ा कर दिया। कुछ ही वर्षों बाद भारत की आबादी चीन की आबादी को पछाड़ देगी। हुकूमत के लिए गंभीरता से लेने वाला विषय है। क्योंकि बिना सरकारी सख्ती के कोई मानने वाला नहीं? बीते करीब दो दशकों से जनसंख्या में बढ़ोतरी जिस तेज गति से हो रही है, उससे हिंदुस्तान की आबादी विकराल रूप ले चुकी है। जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणाम अब दिखने भी लगे हैं। सड़के इंसानों और वाहनों से खचाखच भरी हैं, पार्किंग फुल हैं, घरों के आंगन सिमट गए हैं, आवासीय जगहें लगातार कम होती जा रही हैं, जिस कारण फ्लैट सिस्टम का चलन शुरू हो गया है। उपरोक्त सभी समस्याओं को कायदे से देखें तो हर समस्या की जड़ बढ़ती जनसंख्या ही है। इसलिए इस विस्फोट को रोकना निहायत जरूरी हो गया है। इसमें भला किसी एकवर्ग या एक समुदाय का फायदा नहीं, बल्कि सामूहिक रूप से सबों का भला है। ऐसा भी नहीं कि जनसंख्या को रोकने के प्रयास नहीं किए जा रहे, सरकारी−सामाजिक दोनों स्तरों से लाखों प्रयासों के बावजूद भी गति धमने का नाम नहीं ले रही। इस कड़ी में सरकारी स्लोगन ‘हम दो हमारे दो’ भी फीका पड़ा। कुछ वर्गों ने अपनाया, तो कुछों ने पूरी तरह से नकारा। देश में काफी समय से जनसंख्या नियंत्रण की मांग उठ रही है। समय की दरकार है इस मसले पर केंद्रीय हुकूमत को गंभीरता से सोचना चाहिए। कानून बनाने की जरूरत आन पड़ी है। बिना कानूनी सख्ती से ये समस्या नहीं रूकने वाली।
बढ़ती जनसंख्या ने रोजगार, शिक्षा व जरूरतों को सीमित कर दिया है। दूसरे देशों के मुकाबले हम जनसंख्या वृद्धि में अभी दसवें पायदान पर हैं। भारत के अलावा इथियोपिया−तंजानिया, संयुक्त राष्ट्र, चीन, नाइजीरिया, कांगो, पाकिस्तान, युगांडा, इंडोनेशिया व मिश्र भी ऐसे मुल्क हैं जहां की स्थिति भी कमोबेश हमारे जैसी ही है। लेकिन इन कई देशों में जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए कानून अमल में आ चुके हैं। कई देशों में दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने पर सरकारी सुविधाओं से वंचित करने का फरमान जारी हो चुके हैं। भारत की आबादी अगले एक दशक में 1.5 बिलियन हो जाने का अनुमान है। आजादी के समय हिंदुस्तान की जनसंख्या मात्र 34 करोड़ थी। लेकिन बीते 72 सालों में बढ़कर डेढ़ सौ करोड़ के आसपास पहुंच गई।
जनगणना 2011 के मुताबिक भारत की आबादी 121.5 करोड़ थी जिनमें 62.31 करोड़ पुरुष और 58.47 करोड़ महिलाएं शामिल थीं। अगले वर्ष नया आकंड़ा आएगा, उससे पता चलेगा हम कहां पहुंच चुके हैं। सर्वाधिक जनसंख्या राज्य उत्तर प्रदेश में है जहां कुल आबादी 19.98 करोड़ है। सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य सिक्किम है जहां की आबादी मात्र 6 लाख है। बढ़ती जनसंख्या पर कायदे से गौर करें तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के जनसंख्या नियंत्रण पर दिए बयान को अगर सियासी चस्मे से न देखकर सामाजिक लिहाज से देखें तो कई बातें साफ हो जाती हैं। इस मसले पर जितने दूसरे वर्ग चिंतित हैं उतने ही अल्पसंख्य भी।
जनसंख्या नियंत्रण पर जब भी कानून बनाने की मांग उठती है, उसे सियासी मुद्दा बना दिया जाता है। जबकि, इस समस्या से आहत सभी हैं। पढ़ा लिखा हिंदु−मुसलमान, सिख−ईसाई सभी समर्थन में हैं कि इस मसले पर मुकम्मल प्रयास होने चाहिए। इसी दिशा में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी कुछ समय पहले अपनी चिंता जताई थी। तब उनके बयान पर बेवजह की बहस छिड़ी गई थी। समूचा हिंदुस्तान जनसंख्या विस्फोट का भुगतभोगी है। रेल, सड़क, बाजार, सार्वजनिक स्थान लोगों से खचाखच भरे हैं। नौकरियां, मौके, साधन−संसाधन सबके सब सिमटते जा रहे हैं। नौबत ऐसी भी आ गई है कि चपरासी की वैकेंसी के लिए पीएचडी जैसे उच्च शिक्षा प्राप्त युवा भी एप्लाई कर रहे हैं। ऐसी स्थिति को देखते हुए जनसंख्या नियंत्रण कानून निहायत जरूरी हो जाता है। घोर चिंता करने वाली बात है कि आज ऐसी स्थित हिै तो आने वाले वक्त में क्या होगा?
आज नहीं तो कल ‘हम दो, हमारे दो’ नीति का हमें अनुपालन करना ही होगा। अगर सरकार इस दिशा में कोई कदम उठाती है तो उसका सामूहिक रूप से सभी को समर्थन करना चाहिए। इस समय देश की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। बेरोजगारी के कारण युवा शक्ति लगातार तनाव की तरफ बढ़ रही है। कुछ गलत रास्तों पर भी चल पड़े हैं। एनसीआरबी के ताजे आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं। हर तरह के अपराधों में युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है जिसमें ब्लैकमेलिंग, लूट−चोरी, रंगबाजी आदि कृत्य शामिल हैं। केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें जब भी किसी बड़े मसले पर लगाम लगाने के लिए कोई सुगबुगाहट या हलचल करती है तो उससे लागू होने से पहले ही लोग बिना जाने समझ विरोध करना शुरू कर देते हैं। विपक्षी दलों ने कुछ वर्षों से ऐसा प्रचलन आरंभ किया है कि कानून या नीति बनने से उपरांत ही छाती पीटना शुरू कर देते हैं, दुष्प्रचार करने लगते हैं। जबकि, कुछ मसले ऐसे होते हैं जिनमें राजनीति नहीं की जानी चाहिए।
गौरतलब है, जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर अंदरखाने हवा बननी शुरू हो गई है। दरअसल बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रण करने की मांग किसी एक वर्ग विशेष की नहीं, बल्कि हर वर्ग सहमत है। लेकिन इसकी सुगबुगाहट होने से पहले ही उसे सियासी भट्टी में झोकने की कोशिशें भी तेज हैं। देश का प्रबुद्व वर्ग सहूलियतें चाहता है, सामान अधिकार चाहता है, खुली फिजाओं में सांस लेना चाहता है, सभी को घरों की छत और रोजगार मिले इसकी ख्वाहिशें अपने भीतर पालता है। पर, इनकी जगह उनके हिस्से सिर्फ परेशानियां ही आ रही हैं। जब वह रेलगाड़ी में सफर करे तो आसानी से बैठने के लिए सीट मिल जाए, भीड़ होने के कारण उसे धक्के न खाने पड़े। युवाओं को जरूरत के हिसाब से जॉब मुहैया हों, डिग्री लेकर सड़कों पर घूमना न पड़े।
शिक्षित अल्पसंख्यक वर्ग भी जनसंख्या नियंत्रण कानून के पक्ष में हैं। हां, उनका एक धड़ा इसके खिलाफ है, जो जनसंख्या बढ़ोतरी को कुदरत का वरदान मानता है। उसे रोकने को बुरा मानता है। दरअसल, ऐसे लोगों की मानसिकता को हमें बदलने की जरूरत है। पढ़ा लिखा मुसलमान भी भविष्य में होने वाले खतरों से वाकिफ हैं। अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट आई थी जिसमें बताया गया था कि हिंदुस्तान में जिस तेज गति से जनसंख्या बढ़ रही है उससे तो 2024 तक चीन को भी पीछे छोड़ देगा। इस लिहाज से अगले पचास वर्ष बाद हिंदुस्तान समूची दुनिया में जनसंख्या में सबसे बड़ा मुल्क हो जाएगा। समय की दरकार यही है कि सियासी लोगों को आपस में लड़ने के बजाय इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचें और सभी सरकार से जनसंख्या कानून बनाने की सिफारिश करें। जनसंख्या नियंत्रण से कई समस्याएं अपने आप सुलक्ष जाएंगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब लोग रोटी और जमीन के टुकड़ों के लिए आपस में एक दूसरे के खून के प्यासे हो होंगे।
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