अपने प्राचीन भारत का गौरवपूर्ण अतीत
आज एक बहुत ही अद्वितीय, अकल्पनीय एवं अद्भुत जानकारी आपके साथ सांझा करना चाहता हूं।
अभी मैं ‘यौगिक प्रवचन माला , भाग – 1’ पढ़ रहा था।
जो ब्रह्मर्षि कृष्णदत्त ब्रह्मचारी के प्रवचन के आधार पर पुस्तक बनाई गई है। कृष्ण दत्त ब्रह्मचारी के विषय में तो आप सभी परिचित होंगे । जो खुर्रम पुर मुरादनगर के पास एक गरीब जुलाहे के घर में पैदा हुए थे ,और उस ब्रह्मचारी के शरीर में श्रृंग ऋषि की आत्मा थी। जो लाखों वर्ष पश्चात केवल 50 वर्ष के लिए इस पृथ्वी मंडल अथवा मृत मंडल में आई थी। ब्रह्म ऋषि श्रीकृष्ण दत्त ब्रह्मचारी
द्वारा अनेकानेक प्रवचन दिए गए । वारणावत (बरनावा) में महानंद मुनि की आत्मा से भूमंडल में इनका मिलन होता है। जहां ब्रह्मर्षि कृष्ण दत्त ब्रह्मचारी का आश्रम स्थापित किया गया था।विशेष रूप से जिस प्रवचन को आज मैं पढ़ रहा था वह रावण के राष्ट्र के विषय में उन्होंने बताया है।
उसको मैं आपके साथ यथावत प्रस्तुत कर रहा हूं।
अपने शिष्य महानंद जी के सूक्ष्म शरीर से श्रृंग ऋषि की आत्मा का साक्षात्कार होता है ।दोनों की वार्ता होती है।ब्रह्म ऋषि कृष्ण दत्त ब्रह्मचारी कहते हैं कि वेद में वह भोजन है जिस भोजन से आत्मा तृप्त होता है। आज मानव को संसार में अपनी आत्मा को तृप्त करना है। वेद में वह ज्ञान हैं जिस ज्ञान विज्ञान से आत्मा तृप्त होती है ,और अपने आनंद को अनुभव करती है। वेद में वह प्रकाश है परंतु उस प्रकाश को हमें रावण की भांति नहीं परंतु राम की भांति स्वीकार करना है।
तो सुनो।
रावण का राष्ट्र।
“बेटा ! तुमने सुना होगा रावण चारों वेदों का ज्ञाता और वैज्ञानिक था ।परंतु उसके पश्चात भी उसे दैत्य और यवन की श्रेणी में चुना जाता है ,और इसीलिए कि वह अक्षरों का बौद्धिक था।जो मानव संसार में अक्षरों का बौद्धिक होता है उस मानव का या वेद का उत्थान नहीं करता ।वह तो एक प्रकार का पक्षी होता है और वह रटन्त विद्या को अपने में धारण करता है, और उससे यदि अपने मानवत्व को ऊंचा नहीं बनाता तो संसार में मानव नहीं कहलाता है। मुनिवरो !रावण का राष्ट्र कहां तक था ?
इस आर्यावर्त में था। पातालपुरी में था। इंद्रपुरी में था, जिसको हम त्रिपुरी भी कहते हैं,जिसको भवनेति राज्य और चिरांगित राज्य कहते हैं ।इन सभी राष्ट्रों में विस्तार से रावण का राज हो चुका था। राजनीतिज्ञ था। केवल नीति जानता था। परंतु इस नीति के साथ-साथ यदि धर्म होता तो रावण की पताका संसार में सबसे उच्च कहलाती। परंतु उसके राष्ट्र में नीति थी कि दूसरों का हनन करो, और राज करो ।रावण के पुत्र मेघनाथ ने इंद्र को विजय किया और त्रिपुरी के राष्ट्र का स्वामी बनाया। रावण के पुत्र अहिरावण ने सुरिखी की नाम के राजा को नष्ट किया, और वह पातालपुरी का स्वामी बना, और रावण के पुत्र नरांतक ने सनभूमित नाम के राजा को नष्ट किया और वहां अपना राज्य किया। जिसे सोमकेतु नाम का राष्ट्र कहते थे। और भी उनके संबंधी जैसे खर दूषण इत्यादि थे उनका राष्ट्र आर्यावर्त में भी प्रसार होता चला आ रहा था ।राजा रावण के आततायीपन से यह संसार व्याकुल था। रावण के राष्ट्र में नीति थी, धर्म नहीं था ।नीति भी क्या अधर्म शचती नीति थी ।यदि उसके साथ धर्म भी होता तो निश्चित था कि रावण की पताका सबसे ऊंची कहलाती।
मुनिवरो !राम ने क्या किया ?
महर्षि बाल्मीकि का कथन है कि राम ने रावण के उस अत्याचार को नष्ट किया। राम जब अपनी पताका को लेकर चले तो सबसे प्रथम निषाद के राज्य में जाकर उन्होंने अपनी संस्कृति का प्रसार किया।
मुनिवर देखो ! बाली बहुत ऊंचा और वेद का पंडित था , परंतु क्या करें वह भी संस्कृति से दूर चला गया था। अपने छोटे भ्राता की पत्नी को अपने गृह में प्रविष्ट कर लिया था। राम ने उन्हें नष्ट किया और अपनी ऊंची संस्कृति का प्रसार किया ।
रावण के पुत्र नरांतक को नष्ट किया और वहां के सौमभाम नाम के राजा को राज्य दिया । जिसको सोम केतु नाम का राज्य कहते थे। पातालपुरी में अहिरावण को नष्ट कर हनुमान के पुत्र मकरध्वज को वहां का राज्य दिया, और रावण को नष्ट कर रावण के भ्राता विभीषण को वहां का राष्ट्र दे करके उसके पश्चात वह अपनी अयोध्यापुरी में आ पहुंचे। उच्चारण करने का अभिप्राय है कि मेघनाथ आदि सब को नष्ट किया।
पुरातन काल के राष्ट्रों के आधुनिक नाम।
पूज्य महानंद जी , भगवन ! जिसको आपने अभी-अभी पातालपुरी कहा था वहां रावण पुत्र अहिरावण राज्य करते थे उसे आधुनिक काल में अमेरिका कहते हैं। और जिसको आपने सोमभूम नाम से पुकारा सोमकेतु राष्ट्र जो त्रेता काल में था उसे रूस कहते हैं। जिसको आपने इंद्रपुरी कहा और जिसको रावण के पुत्र ने विजय किया पुरातन काल में त्रिपुरी कहते थे। और आधुनिक काल में उसका अपभ्रंश होकर तिब्बत हो गया है।
जिसको आपने चिरंगित नाम का राष्ट्र निर्णय कराया उसे आधुनिक काल में चीन कहकर पुकारा जाता है।
तो भगवान यह मैंने आपसे आधुनिक काल के नामों का कुछ प्रतिपादन किया।”
( यौगिक प्रवचन माला भाग – 1 से साभार,)
हम क्या सीख रहे हैं ? इस पर विचार करते हैं। एक शब्द तो इसमें यह आया कि रावण को यवन कहा गया । इसका तात्पर्य यह है कि यवन शब्द कोई नया नहीं है ,बल्कि ऐसे मनुष्यों को यवन कहा जाता था कि जो वेद विरुद्ध व धर्म विरुद्ध कार्य करते थे। इसका मतलब उनका कदापि तात्पर्य मुसलमानों से नहीं है। यह भ्रांति दूर हो गई । इसके बाद महाभारत काल में भी यवन देश पृथक रूप से देश रहा है।
पातालपुरी, इंद्रपुरी ,त्रिपुरी, सोमभूम , चिरंगित इन सब राष्ट्रों के नाम वर्तमान में क्या हैं ? यह भी स्पष्ट हो गया। तिब्बत( त्रिपुरी )और चिरंगित (चीन)पर भी रावण का राज्य था। अर्थात जहां पर हनुमान ने लक्ष्मण की प्राण रक्षा के लिए औषधि प्राप्त की थी, वह भी रावण के वैद्य सुशैन द्वारा बताए गए स्थान से और उसी के आधिपत्य वाले स्थान से प्राप्त की गई थी।
यह भी स्पष्ट हुआ कि पातालपुरी अमरीका में हनुमान के पुत्र मकरध्वज को राजा बनाया था। सोमभूम अथवा सोमकेतु राष्ट्र जो त्रेता काल में बोला जाता था उसी राष्ट्र से अपभ्रंश होकर रूस शब्द बना है ।इंद्रपुरी और त्रिपुरी तिब्बत का नाम होता था। बहुत ही विशिष्ट जानकारी प्राप्त हुई है ।
इसी में संस्कृत भाषा और देवनागरी भाषा पर भी अपने विचार ऋषि आत्मा द्वारा दिए गए हैं । जिन्हें कभी फिर आपके सामने प्रस्तुत करेंगे। यहां सिर्फ इतना निवेदन करते हैं कि संस्कृत और देवनागरी प्राकृत भाषा के उपरांत विकसित हुई हैं , जो पुरातन काल से चली आती हैं ,और पुरातन काल में केवल एक ही भाषा संस्कृत थी ।उसी से सभी भाषाओं की उत्पत्ति हुई है। यह भी सही सिद्ध होता है।
हम ब्रह्मर्षि कृष्ण दत्त ब्रह्मचारी व महामुनि महानंद के द्वारा दी गई इस अद्वितीय जानकारी के लिए हृदय से आभार व्यक्त करते हैं।
जो लोग आज अपने भारतवर्ष या कभी के आर्यवर्त के बारे में जानना चाहते हैं उन्हें इन तथ्यों को अवश्य पढ़ना चाहिए । हमें वर्तमान प्रचलित इतिहास कुछ इस प्रकार का संकेत और संदेश देता है कि जैसे जितना भारत आज है उतना ही प्राचीन काल से रहा है । यह प्रवचन इस झूठ से पर्दा उठाता है । हम सबको अपने प्राचीन भारत के गौरव पूर्ण इतिहास और उससे संबंधित तथ्यों को समझने का प्रयास करना चाहिए । ध्यान रहे कि हम टूटते टूटते आज अकेले रह गये हैं , जबकि इस्लाम और ईसाइयत बढ़ते बढ़ते जिनके पास एक भी नहीं था वह दर्जनों तक पहुंच गए हैं । विखंडन की प्रक्रिया हमारे भीतर अभी भी जारी है । जिस पर विचार करने की आवश्यकता है । यदि यहां रहते – रहते भी टूटे तो फिर क्या हालत होगी ?
देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन : उगता भारत