सती होना रोकने का कानून सती मंदिर तोड़ने का कानून है : श्याम सुंदर पोद्दार
1987 में राजस्थान के सीकर जिले के देवराला नामक गांव में रूप कंवर ने अपने पति की मृत्यु के पश्चात उसके शव के साथ सहमरण किया था। जिसके बाद कम्युनिस्टों-मार्क्सिस्टों ने पूरे भारत में शोर मचाना शुरू किया। इन्होंने इसके लिए 700 वर्ष पहले हुई रानी सती के मंदिर को टार्गेट किया। कोलकाता के कांकुरगाछी मंदिर में मांगशिर बदी नवमी के दिन हजारों भक्त उपस्थित थे। सीपीआई के सांसद गुरुदास दासगुप्ता अपने 200 समर्थकों के साथ वहां पहुंचे और मंदिर के तीनों दरवाजों को बंद कर भक्तों को लाठी-डण्डा, रॉड, लात-घुसा, थप्पड़ से मारना शुरू कर दिया। पुलिस ने वहां जाकर लोगों को बचाना तो दूर आरोपियों के खिलाफ प्राथिमकी तक दर्ज करने से भी इनकार कर दिया। इसके बाद दशकों से चली आ रही रानी सती की शोभायात्रा को मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने प्रतिबंधित कर दिया। चारों तरफ़ आतंक के माहौल में तुरंत-फूरत में सती प्रिवेन्शन एक्ट 1987 लाया गया। कहने को तो यह कानून सती होने से रोकने का कानून है। पर इस क़ानून क़ो जिस तरह बनाया गया है, वह सती को रोकने के बजाय और बढ़ाने लगा, क्योंकि सती होने वाली महिला के लिए यहां सजा का कोई प्रावधान ही नहीं था। हां, लेकिन सती का स्मरण व पूजन करने वालों के लिए 7 वर्ष की सजा का प्रावधान था। इस क़ानून की सबसे बड़ी ख़राब बात यह है कि इसमें सती शब्द की व्याख्या बड़ी व्यापक है। जिसमें हिंदू समाज के सभी प्रकार के मंदिर आ जाते हैं, वह चाहें कोलकाता का कालीघाट सती मंदिर हो या गुवाहाटी का कामाख्या देवी का मंदिर। सती शब्द क़ी व्याख्या इस प्रकार ही है। क़ानून के हिसाब से खुद को ज़िन्दा जला देना या ज़िन्दा गाड़ देना स्वेच्छाकृत रूप से करती है। सती शब्द क़ी इस व्याख्या में दक्ष कन्या सती भी आ जाती है।
(7)(1)राज्य सरकार को यदि लगता है किसी भी मंदिर में 20 साल से अधिक समय से ऊपर किसी सती होने वाली महिला के सम्मान में पूजा की जाती है तो वे ऐसे मंदिर को हटाने के लिए आदेश दे सकती है।
(7)(2) सब सेक्शन 1 के अलावा जिला कलेक्टर या ज़िला मजिस्ट्रेट को यदि लगे कि किसी सती हुयी महिला के सम्मान में किसी मंदिर में पूजा की जाती है तो उसे हटा सकते हैं।
(7)(3) अगर सब सेक्शन (1) सब सेक्शन (2) में जो बाते कही गयी है उस को लागू नहीं किया गया है तो राज्य सरकार, ज़िला कलेक्टर या ज़िला मजिस्ट्रेट, सब इन्स्पेक्टर पद से ऊपर एक पुलिस अधिकारी के ज़रिए इस मन्दिर को हटाया जा सकेगा। इसका खर्च मंदिर बनाने वाले से लिया जाएगा। धरातल पर आज यह बात है।
कोलकाता में पिछले 30 वर्षों से हम माँगशिर बदी नवमी के अवसर पर शोभा यात्रा निकालने की अनुमति मांगते हैं। हमें अनुमति तो मिलती नहीं हम ज़बरदस्ती हज़ारों की संख्या में एकत्रित होकर यह शोभायात्रा निकालते है। कोर्ट के आदेश से झुनझुनु स्थित रानी सती मन्दिर में आज तक माता को चुनरी नहीं चढ़ायी जाती है। मंदिर में चढ़ावे का रुपया पहले कलेक्टर के पास जाता है। हर खर्च कलेक्टर से अनुमति लेकर करना पड़ता है। खेमी सती मंदिर को कोर्ट का आदेश है कि वहां सिर्फ़ पुजारी ही पूजा करेगा। भक्त पूजा नहीं कर सकते। बग्गर स्थित सती मंदिर को आदेश है कि यहां पुजारी भी पूजा नहीं कर सकते। सती प्रिवेन्शन एक्ट 1987 इतना बड़ा काला क़ानून है कि यह 20 वर्ष से ऊपर 10000 वर्ष पुराने मंदिरो को अपने दायरे में ले लेता है। इसमें दक्ष कन्या सती के 52 शक्ति पीठों क़ो भी अपने दायरे मे ले लेता है। कोई भी सिरफिरा कलेक्टर कालीघाट या कामाख्या देवी के मंदिर को तोड़ने का आदेश दे सकता है। इस काले क़ानून को अविलम्ब निरस्त करना चाहिए। अंत में जब मृत्यु जीवन से अधिक प्यारी लगने लगे तो सोचना चाहिए समाज में ज़बरदस्त गड़बड़ी है।