भारत चीन सीमा विवाद : चीन के राजदूत ने कहा कि भारत कोई ऐसा कदम न उठाए जिससे उसे ही नुकसान हो

मोदी और जिनपिंग

भारत और चीन में जारी तनाव को लेकर भारत में चीन के राजदूत सुन वेइदोंग ने अपना बयान जारी किया है. इस बयान में चीनी राजदूत ने कहा कि 15 जून को गलवान घाटी में जो कुछ भी हुआ उसे न तो भारत और न ही चीन को पसंद आया.

सुन वेइदोंग ने कहा है, ”पाँच जून को सीमा विवाद को लेकर चीन के विदेश मंत्री वांग यी और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के बीच बातचीत हुई और दोनों देश तनातनी कम करने के लिए एक सकारात्मक सहमति तक पहुंचे. वर्तमान में हमारे सैनिक सैन्य कोर कमांडर के साथ हुई बातचीत के अनुरूप पीछे हट रहे हैं. गलवान घाटी में जो कुछ भी हुआ उसे लेकर दोनों देशों में बनी सहमति पर भारत में कुछ हलक़ों में संदेह जताए गए. इससे दोनों देशों के संबंधों को लेकर ग़लत धारणा बनी. ये चीज़ें दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के लिए ठीक नहीं हैं. इसी को लेकर मैंने सोचा कि कुछ अहम बिंदुओ पर स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए.”

चीन-भारत की दोस्ती का इतिहास 2000 साल से भी ज़्यादा पुराना

चीनी राजदूत ने कहा, ”चीन और भारत को साझेदार बनना चाहिए न कि प्रतिद्वंद्वी. चीन और भारत की दोस्ती का इतिहास 2000 साल से भी ज़्यादा पुराना है. ज़्यादातर वक़्त दोनों मुल्कों के बीच दोस्ताना संबंध रहे हैं. दोनों देशों की प्राथमिकता में विकास है और हमारे साझे रणनीतिक हित भी हैं. 1990 के दशक से दोनों देश एक अहम सहमति पर पहुंचे कि दोनों एक दूसरे के लिए ख़तरा नहीं हैं. 2018 में वुहान में इन्फॉर्मल समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक बार फिर से इस बात पर ज़ोर दिया कि दोनों देश एक दूसरे को विकास के मौक़े मुहैया कराएंगे न कि एक दूसरे के लिए ख़तरा बनेंगे.”

”यह भारत और चीन के द्विपक्षीय संबंधों की बुनियाद है. हाल के दिनों में मैंने नोटिस किया है कि कुछ ऐसी राय बनाई जा रही है जिसमें सीमा विवाद के कारण चीन और भारत के संबंधों की अहमियत को ख़ारिज किया जा रहा है. इसके तर्क में चीन की मंशा को लेकर ग़लत धारणा बनाई जा रही है. टकराव को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा है और तनाव को उकसाने की कोशिश की जा रही है. हज़ारों साल से क़रीबी पड़ोसी को दुश्मन और ख़तरे के तौर पर दिखाया जा रहा है. यह सच नहीं है. दरअसल, इन बातों से हमें फ़ायदा नहीं बल्कि नुक़सान ही होना है.”

‘चीन चाहता है कि भारत तरक़्क़ी करे’

चीनी राजदूत ने कहा कि चीन और भारत ने संयुक्त रूप से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और स्वतंत्र विदेश नीति को लेकर पाँच सिद्धांतों की वकालत की है.

चीनी राजदूत ने कहा है, ”हमने सीमा विवाद पर बात के लिए कई तरह के मेकैनिज़म बनाए हैं. दोनों पक्ष हमेशा से इस बात पर सहमत होते हैं कि सीमा पर शांति ज़रूरी है. दोनों देशों को आपसी सहमति का पालन करना चाहिए ताकि सीमा पर स्थिति शांतिपूर्ण रहे. चीन हमेशा से शांति की वकालत करता रहा है. चीन कोई युद्धप्रिय देश नहीं है. गलवान घाटी में सही या ग़लत जो कुछ भी हुआ वो स्पष्ट है. चीन अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंड़ता को लेकर अडिग है और सीमाई इलाक़ों में शांति चाहता है. मेरा मानना है कि चीन और भारत अपने मतभेदों को सुलझाने में सक्षम हैं और टकराव के रास्ते पर नहीं बढ़ेंगे. हमें एक साझेदार के रूप में विकास के रास्ते पर बढ़ना चाहिए न कि विरोधी के तौर पर.’

सुन वेइदोंग ने कहा, ”भारत और चीन दोनों बड़े विकासशील देश हैं और दोनों की उभरती अर्थव्यव्स्था है. हम दूसरे के लिए फ़ायदेमंद हैं, साथी हैं. चीन के लिए भारत बड़ा कारोबरी साझेदार रहा है. चीन ने भारत में आठ अरब डॉलर का निवेश किया है. चीन-भारत की आर्थिक और कारोबारी साझेदारी के कारण भारत में बड़ी संख्या में नौकरियां भी पैदा हुई हैं. कुछ लोग चीन-भारत के कारोबारी रिश्तों को बिगााड़ना चाहते हैं. वो मेड इन चाइना को बाहर करना चाहते हैं. भारत के लोगों को चीन-भारत आर्थिक सहयोग से फ़ायदा है. किसी भी तरह के संरक्षणवाद, रुकावट और पाबंदी वाले क़दम चीन के ख़िलाफ़ होगा. इसके साथ ही यह भारत के उपभोक्ताओं और कारोबारियों के भी खिलाफ़ होगा. यह एक दूसरे के लिए नुक़सानदायक होगा और इससे किसी का फ़ायदा नहीं होना है.”

बीबीसी से साभार

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