सम्पूर्ण विश्व में इस्लाम अरब से निकल कर जहां भी गया वहां के लोग पुराने धर्म सभ्यता को भूलकर इस्लाम को ही अपना धर्म मानने लगे। चाहे वह मिश्र की 5000 वर्ष पुरानी सभ्यता हो या ईरान की। आज ये सभी राष्ट्र इस्लामिक राष्ट्र के रूप में प्रसिद्ध हैं। लेकिन, हिंदुस्तान ने कई चुनौतियों का डटकर सामना किया और अपने वर्चस्व का परचम लहराते हुए अपनी जमीर को ना खोकर हिन्दू बहुल हिन्दू राष्ट्र के रूप में ही प्रसिद्धि हासिल की। भले ही इस परचम की लहर को धूमिल करने के लिए यहां इस्लामियों ने 501 वर्ष तक शासन किया।
इस्लामिक राज्य में परिवर्तित किया :
आप मिश्र से लेकर इंडोनेसिया तक देखिए जहां-जहां इस्लाम को मानने वाला राजा बना, उसने उस राज्य का कायाकल्प कर इस्लामिक राज्य में परिवर्तित कर दिया। हिंदुस्तान पर इस्लाम को अपना धर्म मानने वाले लोगों ने सिर्फ 501 वर्ष तक शासन किया। यहां इस्लामियों ने (1206) पृथ्वीराज चौहान की मोहम्मद गौरी के हाथों पराजय से लेकर औरंगजेब की मृत्यु (1707) तक हुकूमत की। औरंगजेब के निधन के पश्चात दिल्ली के मुगलिया शासकों ने मराठों को वसूली देकर अपनों को सुरक्षित रखा था। इसलिए जो लोग यह कहते हैं कि मुसलमानों ने भारत पर 1000 वर्ष तक शासन किया वह सब निराधार और बकवास है। मुस्लिम शासक कभी भी पूरे हिंदुस्तान को अपने नियंत्रण में नहीं ले सके। उनका राज्य समय-समय पर यह घटता-बढ़ता रहता था। निम्नतम 10-20 प्रतिशत से लेकर अधिकतम 80 प्रतिशत क्षेत्र ही मुस्लिम शासक जीत सके थे।
इस्लाम के जन्म के 200 वर्ष के भीतर ही इसके अनुयायियों ने कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया, लेकिन दिल्ली जीतने के लिए इसे 600 साल तक का समय लग गया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद कहने को तो दिल्ली में मुगलिया शासन था पर मराठों ने उसको इतना कमजोर कर दिया था कि उनका सिक्का सिर्फ लाल किले से लेकर कुतुब मीनार तक ही चलता था। वहीं, मुगलिया शासक मराठों को टैक्स अदा करते थे। इस्लाम का जन्म 1400 वर्ष पूर्व हुआ था। इस्लाम धर्म की इतनी बड़ी जीत का एकमात्र कारण उनके सिद्धांतवादी पराजित काफिर राजा की प्रजा की स्त्री व बच्चे माले ग़नीमत है अर्थात लूट का माल है। इसके बंटवारें की भी इस्लाम में उचित व्यवस्था थी। 20 प्रतिशत ख़लीफ़ा यानि राजा को मिलता था तथा शेष सैनिकों में बांट दिया जाता था। सैनिक माले ग़नीमत में मिलने वाली काफिरों की औरतें व बच्चों को गुलाम बना कर रखेंगे इसलिए वे जी जान से लड़ते थे। राजपूत बहुत जल्द मुस्लिमों की मंशा समझ गये।
आग में कूद जाती :
यद्यपि राजपूतों को लग रहा होता कि वे युद्ध जीत नहीं पाएंगे तो वे अपनी महिलाओं और बच्चों की हत्या कर देते थे। इसके बाद वे मुस्लिम आक्रमणकारी से युद्ध करने निकल पड़ते। कई बार राजपूत औरतें स्वयं जहर खाकर खुदकुशी कर लेती थी। वे किसी कुएं या गड्ढे में कूद कर अपनी जान दे देती, या तो जहर खा लेती या आग में कूद जाती। इसको जौहर व्रत यानी आग में स्वयं को सौंपने का व्रत कहा जाता था। जबकि पुरुष युद्ध में शत्रु से मरने तक लड़ने के लिए निकल जाते। अब ये सवाल उठता है कि महिलाएं जहर खा लेने के बाद खुद को आग के हवाले क्यों कर देती थी। यह सीधी सी बात है। वे ऐसा इसलिए करती थीं ताकि मुस्लिम आक्रमणकारी युद्ध में विजय के बाद तब इन काफिर हिन्दू महिलाओं के शरीर को देखेंगे तो मरी हुई महिलाओं से भी बलात्कार करेंगे। मृत शरीर को इस तरह की घिनौनी हरकत से बचाने के लिए हिंदू महिलाएं जहर खाने के बाद भी स्वयं को आग के हवाले कर देती थी। ताकि मुस्लिम आक्रमणकारी शहर में आकर एक भी जिंदा या मुर्दा महिला को ना देख सकें और निराश हो जाए। इस्लाम का हिंदुस्तान में 501 वर्ष का शासन होने के बाद भी हिंदुस्तान मिश्र ईरान की तरह इस्लामिक राष्ट्र नहीं बना। इसके लिए निराशा भरे शब्दों में इनके विश्व प्रसिद्ध कवि मौलाना हाली ने हिंदुस्तान के लोगों की वीरतापूर्ण देशभक्ति के बारे में लिखा है :–
‘ वो दीने हज़ाजी का बेबाक़ बेड़ा,
जो जेहू में अटका ना केहु में अटका,
मुकाबिल हुआ कोई खतरा न जिसका।
किए थे पार जिसने सातों समंदर
वो डूबा दहाने में गंगा के आकर ।।
( लेखक हिन्दू महासभा क़े राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। )