प्रहलाद सबनानी
ऐसा कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस जैसी महामारी पिछले 100 वर्षों में कभी नहीं देखी गई है। कुछ मायनों में कोरोना वायरस महामारी वर्ष 1918 में हुई दुर्घटना से भी अधिक भयावह है। अतः इसके प्रभाव भी आर्थिक एवं स्वास्थ्य के क्षेत्रों में बहुत अधिक गम्भीर हो रहे हैं।
वैश्विक स्तर पर कई वित्तीय संस्थानों जैसे विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आदि ने वैश्विक अर्थव्यवस्था एवं विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर कोरोना महामारी के कारण होने वाले सम्भावित प्रभाव का आकलन करने का प्रयास किया है। इसी कड़ी में, अभी हाल ही में ऑर्गनाइज़ेशन फॉर इकोनोमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) ने भी विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर कोरोना संकट के दुष्प्रभाव का आँकलन किया है। इस प्रतिवेदन में यह तथ्य उभर कर सामने आया है कि भारत की अर्थव्यवस्था पर कोरोना संकट का सबसे कम प्रभाव पड़ेगा। सर्वाधिक प्रभाव ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर होने का अनुमान लगाया गया है, जहां सकल घरेलू उत्पाद में 11.5 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है। इसके बाद फ्रांस और इटली जैसे देशों के सकल घरेलू उत्पाद में भारी गिरावट का आकलन है। इस संकट से यदि कोई देश सबसे कम प्रभावित होंगे तो वो हैं भारत एवं चीन। कोरोना वायरस का शुरुआती केंद्र रहे चीन के सकल घरेलू उत्पाद में महज 2.6 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान लगाया गया है। जबकि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 3.7 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है। वैश्विक स्तर पर वर्ष 2020 में पिछले साल की तुलना में सकल घरेलू उत्पाद में 6 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान है। परंतु वैश्विक स्तर पर यदि कोरोना संक्रमण का दूसरा दौर शुरू होता है तो यह अनुमान बताता है कि वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद में 7.6 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है.
ऐसा कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस जैसी महामारी पिछले 100 वर्षों में कभी नहीं देखी गई है। कुछ मायनों में कोरोना वायरस महामारी वर्ष 1918 में हुई दुर्घटना से भी अधिक भयावह है। अतः इसके प्रभाव भी आर्थिक एवं स्वास्थ्य के क्षेत्रों में बहुत अधिक गम्भीर हो रहे हैं। पूरे विश्व में आज कोई टीका अथवा दवाई उपलब्ध नहीं है जिससे इस आपदा को फैलने से रोका जा सके। बल्कि, विश्व के कुछ देशों में तो यह महामारी अभी भी बड़ी तेज़ी से फैलती जा रही है। कई देशों की सरकारों के सामने इस समय सबसे बड़ी समस्या यह है कि किस प्रकार स्वास्थ्य एवं अर्थव्यवस्था में सामंजस्य बिठाया जाये। क्योंकि कोरोना महामारी सभी देशों में दोनों प्रमुख क्षेत्रों अर्थात् स्वास्थ्य एवं आर्थिक प्रगति को बहुत विपरीत रूप में प्रभावित कर रही है। कुछ अर्थव्यवस्थाएँ तो इस महामारी के प्रभाव से निकट भविष्य में आसानी से उबर भी नहीं पाएँगी। विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएँ तो 11 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज कर सकती हैं।
दरअसल भारत ने शुरू से ही कोरोना महामारी के प्रकोप को गम्भीरता से लिया है एवं केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर कई उपायों की लगातार घोषणा की जाती रही है। इसकी तुलना में अमेरिका, इंग्लैंड, इटली, फ्रांस आदि देशों ने इस महामारी को गम्भीरता से नहीं लिया। इन देशों में लोग खुले में घूमते रहे क्योंकि इन देशों का सोचना था कि इनके पास उच्च स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध हैं। वहीं दूसरी ओर भारत में चूँकि स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव था अतः केंद्र सरकार ने लोगों को ज़्यादा सतर्कता से रहने को मजबूर किया।
भारत में अर्थव्यवस्था को खोलने सम्बंधी निर्णय भी बहुत सही समय पर लिया गया एवं केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपए के एक विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की जिसे इस प्रकार बनाया गया है कि देश में कार्यशील पूँजी की उपलब्धता पर इसका प्रभाव तुरंत दिखाई देने लगा। देश में बेरोज़गारी की दर में बड़ी तेज़ी से सुधार देखा गया है एवं अब यह महामारी फैलने के पूर्व के स्तर अर्थात् लगभग 11 प्रतिशत पर आ गई है। कई उद्योग तो अब 90/95 प्रतिशत की क्षमता पर कार्य कर रहे हैं। विभिन्न करों के संग्रह में सुधार देखने में आया है। जून 2020 में जीएसटी संग्रहण बढ़कर 91,000 करोड़ रुपए के स्तर पर पहुँच गया है। जो पिछले वर्ष की इसी अवधि से मात्र 10 प्रतिशत कम है। अतः अब ऐसा महसूस होने लगा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार V आकार में हो रहा है। किसी भी महामारी का ग़रीब वर्ग पर ही ज़्यादा प्रभाव पड़ता है परंतु यह भी एक तथ्य है कि ग़रीब वर्ग ही सबसे पहले एवं बहुत जल्दी इस तरह की समस्या से बाहर भी निकल आता है।
प्रायः यह पाया गया है कि वैश्विक आर्थिक संकटों का भारत पर असर कम ही होता है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था का अपना आंतरिक बाज़ार ही बहुत बड़ा है। दरअसल, आज भारत को वैश्विक बाज़ार की उतनी आवश्यकता नहीं है जितनी दूसरे देशों को भारतीय बाज़ार की आवश्यकता है। भारत की अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का योगदान 60 प्रतिशत से अधिक का रहता है। औद्योगिक क्षेत्र का योगदान बहुत कम है हालाँकि इसे अब तुरंत बढ़ाये जाने की आज आवश्यकता है। क्योंकि पिछले लगभग 10 से 15 वर्षों के दौरान औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं के लिए भारत की निर्भरता चीन पर आवश्यकता से अधिक हो गई है। इससे हमारे देश में भारी संख्या में औद्योगिक इकाईयाँ बंद हो गई हैं। अब हमें कोरोना महामारी को एक अवसर में बदलने का मौक़ा मिला है, इसमें हमें किसी भी क़ीमत पर चूकना नहीं चाहिए एवं देश में लघु उद्योगों की स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी तेज़ी से की जानी चाहिए ताकि रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर गांवों में ही पैदा हो सकें।
भारत में लगभग 6.3 करोड़ सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम आकार की इकाईयाँ हैं। इनमें बहुत बड़ी तादाद में सूक्ष्म आकार की इकाईयाँ शामिल हैं। अगर इन इकाईयों के हालात जल्दी ही ठीक कर लिए जाएँ तो देश की अर्थव्यवस्था में बहुत शीघ्र ही एक गति आ जाएगी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने विशेष आर्थिक पैकेज में 3 लाख करोड़ रुपए की राशि विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग के लिए निर्धारित की है। भारत हालाँकि विकासशील देश की श्रेणी में गिना जाता है परंतु हाल ही के वर्षों में कई क्षेत्रों यथा, सूचना एवं प्रौद्योगिकी तथा फ़ार्मा आदि में देश विकसित देशों की श्रेणी में आ चुका है। अब तो भारत अल्प समय में ही मास्क आदि जैसे उत्पादों का भी निर्यात करने लगा है एवं हाल ही में भारत द्वारा लगभग 150 देशों को दवाईयाँ आदि निर्यात की गईं हैं। भारत की अपनी एक अलग शक्ति है, जिसमें युवा जनसंख्या, उत्पादों की भारी माँग जिसके चलते सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को स्थापित किए जाने की आवश्यकता, रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित किए जाने की क्षमता, कच्चे माल की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता, उत्पादित माल के लिए बहुत बड़े बाज़ार की उपलब्धता, आदि कुछ ऐसे तथ्य हैं जो भारत को विश्व के अन्य देशों से कुछ अलग करते हैं। साथ ही, हाल ही के समय में भारत ने जो योजनाएँ बनाईं एवं लागू की हैं उसका प्रभाव भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर तेज़ी से होता दिखाई दे रहा है। विभिन्न योजनाओं के माध्यम से उपभोक्ता के हाथों में पैसा पहुँचाया जा रहा है ताकि विभिन्न उत्पादों की भारतीय बाज़ार में माँग उत्पन्न हो सके।
भारत के प्रधानमंत्री ने कई बार कहा है कि भारत को कोरोना महामारी को एक अवसर में बदलना है एवं देश को आत्मनिर्भर बनाना है। चीन से उत्पादों का आयात ख़त्म कर इन उत्पादों को हमारे देश में ही निर्मित करना अब एक आवश्यकता बन गया है। देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था इस कार्यक्रम को सफल बनाने में बहुत बड़ा योगदान कर सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था को दरअसल आज ग्रामीण क्षेत्र ही बचाए हुए है। उद्योग क्षेत्र यदि अपने योगदान को बढ़ा लेने में सफल हो जाता है तो देश पुनः तेज़ी से तरक़्क़ी के रास्ते पर चल पड़ेगा।
हम सभी भारतीयों के लिए यह हर्ष का विषय है कि क्रय शक्ति समता (पर्चेसिंग पावर पैरिटी- PPP) सिद्धांत की दृष्टि से भारत आज विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। पहले स्थान पर अमेरिका, दूसरे स्थान पर चीन एवं तीसरे स्थान पर भारत है। क्रय शक्ति समता अंतरराष्ट्रीय विनिमय का एक सिद्धांत है जिसका अर्थ किन्हीं दो देशों के बीच वस्तु या सेवा की कीमत में मौजूद अंतर से है। इससे किसी देश की अर्थव्यवस्था के आकार का पता लगाया जा सकता है।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।