कार्यशील वर्ग ने अकर्मण्य वर्ग का और साहसी वर्ग ने कायर वर्ग का सदैव शोषण किया है । मनुष्य को आज एक दूसरे का दु:ख दर्द समझने की फुर्सत नहीं है । ना ही यह सोचने का वक्त है कि वह आधुनिकता की इस दौड़ में कहां जा रहा है ?
मनुष्य ने दुनिया को सदा से ही दो भागों में विभाजित किया है,। बुद्धिमान – मूर्ख, साहसी – कायर ,कर्मशील -अकर्मण्य ,धनी – निर्धन , दानव – मानव, आशावादी – निराशावादी आदि ।
बुद्धिमान लोगों ने मूर्खों का शोषण किया है । साहसी ने कायर को मारा है ।कर्मशील ने अकर्मण्य का शोषण किया है ,तो धनी वर्ग ने निर्धन को निचोड़ा है। दानव हमेशा से मानव के रास्ते में रोड़े अटका रहा है। आशावादी वर्ग निराशावादी वर्ग पर हावी रहा है । बुद्धि वालों की परिभाषा देखिए कि जब तक मूर्ख विद्यमान हैं तब तक बुद्धिमान को कमाने की आवश्यकता नहीं ।लेकिन मनुष्य की मनुष्यता की परिभाषा के परिप्रेक्ष्य व दृष्टिकोण से क्या यह सर्वथा उचित है ? उत्तर होगा नहीं।
बुद्धिमान वर्ग आज दंभ में जी रहा है। सुबह के वक्त सैर करते समय पार्क में सड़क पर नमस्कार करने वाला व्यक्ति आज बुद्धिमान नहीं माना जाता , क्योंकि बुद्धिमानी का दूसरा दृष्टिकोण आज प्रचलित हो गया है ।वह परिभाषा है अपने आप को विकसित न समझ कर एक ही अपार्टमेंट में रहने वाले एक दूसरे के लिए अपरिचित बने रहना, क्योंकि वे तथाकथित विकसित लोग एक दूसरे से बात नहीं करना चाहते हैं । आज विकसित मनुष्य गांव से चलकर शहर में आकर रहना चाहते हैं और वह भी चुप्पी साध कर । आपको भारतीय संस्कृति व सभ्यता के अनुसार अभिवादन नमस्कार नहीं करना होगा, बात एक दूसरे से नहीं करनी होगी । यदि आप ऐसा करेंगे तो मूर्ख कहे जाएंगे। अविकसित मनुष्य की श्रेणी में आ जाओगे।
आप भारतीय संस्कृति व सभ्यता को पूर्णत: भुला दो तो विकसित मनुष्य की श्रेणी में गिने जाओगे ।
आधुनिकता की अंधी दौड़ में हमारी सभी महिलाएं कच्छा या हाफ पैंट पहनकर खुले बालों से घूमती हों।यदि भारतीय योग को अंग्रेजी में योगा कहोगे ,श्रीकृष्ण को कृष्णा उच्चारोगे, सुबह प्रातः नमन के स्थान पर गुड मॉर्निंग कहोगे, मां को मॉम (मृतक देह को सुरक्षित रखना) व पिता को डैड (मृतक) , अपने जामात्र को डॉटर का हस्बैंड कहोगे (जिसमें यह भाव छिपा होता है कि वह केवल आपकी पुत्री से संबंध रखता है , उसका आप से कोई संबंध नहीं है), जब अपने बच्चों को गोद में न लेकर ट्रॉली में बैठाकर घुमाओगे और कुत्ते को गोद में लेकर घूमोगे ,जब अपने बच्चे को समय न देकर कुत्ते और बिल्लियों पर अधिक समय दोगे ,बच्चे को केवल पैसा दोगे (जो बड़ा होकर केवल आपको पैसा ही देगा , सेवा नहीं करेगा और इससे अधिक यह भी हो सकता है कि वह आपको वृद्ध आश्रम में पहुंचा कर पैसा पहुंचाता रहे) तो आप विकसित मनुष्य की परिभाषा में आओगे। अन्यथा मूर्ख ही बने रहोगे। उपहास के पात्र बने रहोगे ।आज की भारतीय संस्कृति व सभ्यता के अनुसार आपको अपने पड़ोसी से यह पूछने की आवश्यकता नहीं कि आपके यहां भोजन बना या नहीं ,आपने खाया कि नहीं ।आपको तो गेट बंद करके अपने ही मकान में अपनी ही दुनिया में अपने बीवी बच्चों में एकांत में रहना है , आपको इस बात को देखने की जरूरत नहीं है कि :-
तेरा भूखा मरा पड़ोसी तूने रोटी खाई तो क्या ?
इन सब बातों को देखकर लगता है कि जैसे हम भारत को उजाड़ कर इंडिया बसाते जा रहे हैं ।भारत का तेजी से इंडियनाईजेशन हो रहा है इस इंडियनाइजेशन ने हमको बर्बाद करके रख दिया है। सारी व्यवस्था शीर्षासन कर गई है । उल्टी चाल , उल्टी सोच ,उल्टी खोपड़ी से काम लिया जा रहा है ।
इन तथाकथित आधुनिकतावादियों की ऐसी बकवास जीवन शैली को देखने से कभी-कभी ऐसा भी आभास होता है कि जैसे यह लौटकर फिर भारत की ओर आ रहे हैं ।जब इन्हें अच्छे पकवानों के स्थान पर मक्के की रोटी और सरसों का साग खाते देखते हैं या चीनी के स्थान पर गुड को खाते हुए देखते हैं या अपनी जीवनशैली को योग और वेद के अनुसार ढालने की बातें करते देखते हैं। वास्तव में इनकी ऐसी हरकतों को देखकर पता चलता है कि यूरोप और आज का आधुनिकतावादी मनुष्य अभी आधुनिकता, सभ्यता और संस्कृति का शायद पाठ सीख रहा है। अभी वह इस क्षेत्र में पूर्णता को प्राप्त नहीं हो पाया है।
यही कारण है कि वह कभी अपने ऊपर तो कभी समाज के ऊपर चीजों के प्रयोग कर रहा है । असफल होने पर या मुंह की खाने पर फिर लौटता है और फिर देखता है कि इससे तो बेहतर हमारे पूर्वज थे । जिनके पास एक पूर्णतया विकसित संस्कृति और सभ्यता थी। तब वह उनकी शरण में जाकर कहता है – मेरा भारत महान।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की निम्न कविता आज के विकसित दौर में अप्रासंगिक सी लगती है कि :-
यही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे ।
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।
मनुष्य को आज फुर्सत कहां ? वह आधुनिकता की दौड़ में दौड़ रहा है । अधिक से अधिक नग्नता का प्रदर्शन कर रहा है ।यदि पड़ोस में मृत्यु हो जाए और आप दो-चार घंटे तक मृतक के पुत्रों के विदेश प्रदेश से आने तक शव के पास बैठे तो यह तथ्य आपके निठल्लेपन का या अकर्मण्यता में गिनती कराने में सहायक सिद्ध होगा ।इसलिए पड़ोसी को दो-चार सिल्ली बर्फ की मंगाकर बर्फ में दबा कर दो तीन बुजुर्गों (जो उसी पंक्ति के हैं , जिनका कि वह मृतक रिश्तेदार है) पर छोड़कर अपने दैनिक कार्य में लग जाएं तो आप आधुनिक व सभ्य मनुष्य हैं ।आपको यह भी भूलना होगा कि आर्यावर्त या भारतवर्ष की सभ्यता और संस्कृति के ध्वजवाहक व प्रणेताओं ने तो “वसुधैव कुटुंबकम” का नारा दिया था,। वेद ने कहा कि” कृण्वंतो विश्वमार्यम्” अर्थात संसार को श्रेष्ठ बनाओ।इसी प्रकार के आदेशों से वेद भरा पड़ा है। वस्तुत: सुंदर संसार की रचना के सूत्र हैं वेद के ये वाक्य।
आज के मनुष्य ने वसुधा की बात छोड़ माता -पिता, भाई – बहन से भी नाता तोड़ लिया है ।ऐसा मनुष्य अपने ही कुटुंब को कुटुंब कहने में शर्म का अनुभव करता है और वह विकसित मनुष्य अपनी पत्नी व बच्चों समेत एक कमरे की दुनिया में सिमट गया है ।वृद्ध माता-पिता को वृद्ध आश्रम में छोड़ दीजिए तथा उनसे बर्थडे या शादी की वर्षगांठ पर जाकर वर्ष में एक दो बार फादर्स डे ,मदर्स डे के अवसर पर मिल आइए ।आप कहीं बहुत अच्छे पद पर हैं और आपका पिता आपसे मिलने चला जाए तो आप पिता का परिचय नौकर के रूप में कराएंगे। हां , यही तो आज के मनुष्य का विकास है और यही उसके विकास की पहचान है ।जहां एक पिता चार पुत्रों को पाल पोषण कर देता है, पढ़ा लिखा देता है, लेकिन चार पुत्र मिलकर एक पिता का पालन नहीं कर सकते। जहां माता पिता पुत्र के मुंह से एक मिठास भरा शब्द सुनने के लिए मोहताज रहें। तो ऐसे मानव विकास को धिक्कार है ,और धिक्कार है ऐसी श्रेष्ठता को। लेकिन यह कथित विकसित मनुष्य भटक रहा है। इसको शांति नहीं मिल रही है ।आधुनिक गुरुओं के पास दौड़ रहे हैं। इसलिए एक कमरे में एक बेड पर रहते हुए भी पति पत्नी में मतभेद हैं वे भी अशांत,एवम् एक दूसरे से अलग -2 हैं, असंतुष्ट हैं।
कुल मिलाकर सारी समस्याओं का समाधान एक ही है कि हमें अपने अतीत को खोजना होगा । मूल की भूल को सुधारना होगा । मूल की भूल को यदि नहीं सुधारा गया तो फूल के स्थान पर शूल ही मिलते रहेंगे।
भारतीय संस्कारों को प्रबल कर अपनी वर्तमान शिक्षा प्रणाली को हमें गुरुकुल के संस्कारों के आधार पर बनाना होगा । उसी से भारत भारत बना रहेगा और संसार भी स्वर्ग सम बना रहेगा।
देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन : उगता भारत
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।