अलगाववादी सिखों को गुरु ग्रंथ साहब की सीख
लंदन में हमारे कुछ सिख भाई पाकिस्तानी मुसलमानों के बहकावें में आकर अपने ही भारतवासी लोगों के साथ मार-पीट करने और नारा-ए-तकबीर अल्लाह-हो-अकबर के नारे लगाते मिले। पूर्व में भी यह खालिस्तानी आपको हिन्दू धर्म से अलग दिखाने की होड़ में “हम हिन्दू नहीं हैं” , “सिख गौ को माता नहीं समझते”, “सिख मुसलमानों के अधिक निकट हैं क्यूंकि दोनों एक ईश्वर को मानते है” जैसी बयानबाजी कर हिन्दुओं और सिखों के मध्य दरार डालने का कार्य करते रहे है। इंग्लैंड, कनाडा और अमरीका जैसे देशों में खालिस्तान के नाम पर सिखों की एक पूरी पीढ़ी को भड़काया गया हैं। हमें यह कहते हुए खेद हो रहा हैं की अंग्रेजों की फुट डालों और राज करो की नीति का स्वार्थ एवं महत्वकांक्षाओं के चलते पहले के समान अनुसरण हो रहा है। यह षड़यंत्र ISI और पाकिस्तान के ईशारे पर हो रहा हैं।
वीडियो मे जो गुरु ग्रन्थ साहिब (पृष्ठ 1105) के शब्द हैं वह भगवान कृष्ण, दुर्योधन और विदुर के इतिहास से जुड़े हैं। जिसमे श्रीकृष्ण जी दुर्योधन को कह रहे हैं कि हे राजा दुर्योधन तुम्हारे पास कौन आएगा ? मैंने विदुर की भावना देखी। भावना वाला वह गरीब मुझे अच्छा लगा।
राजन कउनु तुमारै आवै ॥
ऐसो भाउ बिदर को देखिओ ओहु गरीबु मोहि भावै ॥१॥ रहाउ ॥
हसती देखि भरम ते भूला स्री भगवानु न जानिआ ॥
तुमरो दूधु बिदर को पान्हो अम्रितु करि मै मानिआ ॥१॥
खीर समानि सागु मै पाइआ गुन गावत रैनि बिहानी ॥
कबीर को ठाकुरु अनद बिनोदी जाति न काहू की मानी ॥२॥९॥
गुरु साहिबान बड़े श्रद्धा भाव से सिखों को हिन्दू धर्म रक्षा का सन्देश देते है। गुरु नानक जी से लेकर गुरु गोविन्द सिंह जी सब हिन्दू धर्म को मानने वाले थे एवं उसी की रक्षा हेतु उन्होंने अपने प्राणों की आहुति तक दे दी। उदहारण के लिए देखिये पंथ प्रकाश संस्करण 5 म पृष्ठ 25 में गुरुनानक देव जी के विषय में लिखा हैं-
पालन हेत सनातन नेतै, वैदिक धर्म रखन के हेतै।
आप प्रभु गुरु नानक रूप, प्रगट भये जग मे सुख भूपम्।।
अर्थात सनातन सनातन वैदिक धर्म की रक्षा के लिए भगवान गुरु नानक जी के रूप में प्रकट हुए।
गुरु तेगबहादुर जी के वचन बलिदान देते समय पंथ प्रकाश में लिखे है-
हो हिन्दू धर्म के काज आज मम देह लटेगी।
अर्थात हिन्दू धर्म के लिए आज मेरे शरीर होगा।
औरंगज़ेब ने जब गुरु तेगबहादुर से पूछा की आप किस धर्म के लिए अपने प्राणों की बलि देने के लिए तैयार हो रहे है तो उन्होंने यह उत्तर दिया की-
आज्ञा जो करतार की, वेद चार उचार,धर्म तास को खास लख,हम तिह करत प्रचार।
वेद विरुद्ध अधर्म जो, हम नहीं करत पसंद,वेदोक्त गुरुधर्म सो, तीन लोक में चंद।।
(सन्दर्भ- श्री गुरुधर्म धुजा पृष्ठ 48, अंक 3 कवि सुचेत सिंह रचित)
अर्थात ईश्वर की आज्ञा रूप में जो चार वेद हैं उनमें जिस धर्म का प्रतिपादन हैं उसका ही हम प्रचार करते हैं। वेद विरुद्ध अधर्म होता है उसे हम पसंद नहीं करते। वेदोक्त गुरुधर्म ही तीनों लोकों में चन्द्र के समान आनंददायक है।
गुरु गोविन्द सिंह के दोनों पुत्रों जोरावर सिंह और फतेह सिंह जी को जब मुसलमान होने को कहा गया तो उन्होंने जो उत्तर दिया उनके अंतिम शब्द पंथ प्रकाश में इस प्रकार से दिए गए हैं-
गिरी से गिरावो काली नाग से डसावो हा हा प्रीत नां छुड़ावों इक हिन्दू धर्म पालसों अर्थात तुम हमें पहाड़ से गिरावो चाहे साप से कटवाओ पर एक हिन्दू धर्म से प्रेम न छुड़वाओं।
आदि ग्रन्थ में वेदों की महिमा बताते हुए कहा गया हैं
वाणी ब्रह्मा वेद धर्म दृढ़हु पाप तजाया ।
अर्थात वेद ईश्वर की वाणी हैं उसके धर्म पर दृढ़ रहो ऐसा गुरुओं ने कहा है और पाप छुड़ाया है( सन्दर्भ- आदि ग्रन्थ साहिब राग सुहई मुहल्ला 4 बावा छंद 2 तुक 2)
दिया बले अँधेरा जाये वेद पाठ मति पापा खाय
वेद पाठ संसार की कार पढ़ पढ़ पंडित करहि बिचार
बिन बूझे सभ होहि खुआर ,नानक गुरुमुख उतरसि पार
अर्थात जैसे दीपक जलाने से अँधेरा दूर हो जाता है ऐसे ही वेद का पाठ करके मनन करने से पाप खाये जाते है। वेदों का पाठ संसार का एक मुख्य कर्तव्य है। जो पंडित लोग उनका विचार करते है वे संसार से पार हो जाते है।वेदों को बिना जाने मनुष्य नष्ट हो जाते है। ( सन्दर्भ- आदि ग्रन्थ साहिब राग सुहई मुहल्ला 1 शब्द 17)