जीवन का एक रूप है – श्वास। यदि मनुष्य श्वास रहित हो जाए तो मृत हो जाता है । श्वासों का खेल जब तक चल रहा है तब तक हम सब गतिमान हैं। श्वासों का खेल खत्म हो गया तो जीवन मेला खत्म हो गया ,लेकिन मनुष्य इनका कोई मूल्य न समझकर इन सांसों को व्यर्थ में ही खोता रहता है। मनुष्य का अंत समय जब आता है तो वह एक श्वास के लिए भी तरसता है । वही मनुष्य समय रहते श्वासों को उपेक्षित रखता है । उनके महत्व को नहीं समझता है , क्योंकि जीवित होते हुए मनुष्य को लगता है कि यह हमें सहज ही उपलब्ध हो गई हैं। वास्तव में जो वस्तु संसार में जितनी सहजता और सरलता से मनुष्य को उपलब्ध हो जाती है वह उसके प्रति उसी अनुपात में उदासीन रहते हैं।
संसार के जितने भी मत, पंथ, संप्रदाय, मजहब हैं उन सबने मानव को अपने मनमाने ढंग से विभाजित कर दिया , लेकिन किसी पर भी आज तक धूप नहीं बाँटी गई कि इतनी धूप तेरी और इतनी धूप मेरी। चांद की चांदनी नहीं बंटी । इसके अतिरिक्त हमारे भूमण्डल के ऊपर छाई हुई उनकी जीवन प्रदायिनी ओजोन की परत नहीं बंटी। इसका अभिप्राय है कि ईश्वर ने सभी जीवधारियों पर समान कृपा की है। उसकी दया और कृपा के सभी समान रूप से अधिकारी हैं।यह मजहब की दीवारें तो मनुष्य ने खड़ी की हैं।
मानव भी कितना कृतघ्न है कि वह सदा से यह रोना रोता है कि ईश्वर ने मुझे यह नहीं दिया वह नहीं दिया। मैं अभागा हूं ।लेकिन ईश्वर के खुले कोष और उनका उपभोग का अधिकार मानव के पास होना – यह बताता है कि उसने मानव को कितने अधिकार प्रदान करके उत्पन्न किया है ? इन दिए गए अधिकारों के प्रति हमें सचमुच में ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। मनुष्य को इन उपभोग अधिकारों को छोटा नहीं समझना चाहिए ।इसी प्रकार दूसरों के सहयोग से ,दूसरों की कृपा से और परिजनों एवं प्रियजनों के सद्भाव से हमें क्या-क्या अवसर सहज में उपलब्ध हुए हैं ? – उनका हम सूक्ष्मता से गहन अवलोकन करते चले। इन अवसरों की प्राप्ति में उन सबके सहयोग , आशीर्वाद, साहचर्य भाव ,सानिध्य और सद्भाव को भी कभी कम करके न आंकें।
जब जीवन में मनुष्य के सारे कार्य अपनी मनोकामनाओं के अनुकूल होते जा रहे हों तो सोच लो कि प्रारब्ध की बदली ठहरकर बरस रही है। सुदिनों का अनुपम और आनंदकर दौर चल रहा है। मनुष्य उर्जा को अपने दावों में व्यय करने के लिए आपको प्रेरित नहीं कर रहे तो समझ लो किसी की अनंत कृपा हो रही है। उस कृपा के आप पात्र बन गए हैं या बने हुए हैं ।यह देखकर श्रद्धा से झुक जाओ उस परमेश्वर के समक्ष । दुर्दिनों की इस अवस्था में ही आपको शुभ दिनों के मूल्य का अनुभव होगा। बुरे दिनों में आपका व्यवहार यदि सुंदर था , सहयोगी था, विनम्र था तो यह दुर्दिनों के लिए आपकी पूंजी बन जाएगी। जो उस समय उसी प्रकार काम आएगी जिस प्रकार बुरे समय के लिए बचाया गया धन काम आता है। यह छोटी बचत मानव को बड़ी रकम के रूप में उस समय तैयार मिलेगी । अतः इसका मूल्य समझें ।जब सर्वत्र आपके वर्चस्व को लोग स्वीकार कर रहे हों , आपकी यश पताका सर्वत्र फैल रही हो तो समझ लो – यही वह समय है जब आपके व्यवहार पर ,आपके आचरण पर ,आपकी कार्यशैली पर ,आपके वार्तालाप पर ,आपके हर छोटी-मोटी गतिविधि पर, लोग पैनी नजर रख रहे हैं। आप भूल में हैं कि वह आपके सम्मान में कसीदे काढ़ रहे हैं , यह कसीदे और जयकारे किसी छुपी हुई ईर्ष्या का परिणाम भी हो सकते हैं। हर व्यक्ति की चाह होती है कि जयकारे लगें तो मेरे ही लगें ,फिर वह दूसरों के लगते जयकारों को क्यों कर प्रसाद मानेगा ? इसलिए प्रत्येक प्रस्तुति एवं वस्तु को छोटी मानकर आगे न बढ़ें अपितु अपने व्यवहार को, आचरण को, अपनी कार्यशैली को, अपने वार्तालाप के ढंग को और भी ग्राहय और अनुकरणीय बनाने के लिए प्रयासरत रहें ,क्योंकि सदा स्मरण करते रहें कि इसी अच्छे समय में ही समाज में सर्वाधिक शत्रु हैं। इस तथ्य को हम कभी भी भूले नहीं।
अपने सहयोगियों, साथियों, मित्रों, शुभचिंतकों, सहकर्मियों, अधीनस्थ कर्मियों के दु:ख दर्द की बातों को पूछ कर उन्हें नेक सलाह देने का सदा प्रयत्न करें। इस छोटी सी बात का ही उन पर कमाल का प्रभाव पड़ेगा। किसी भी व्यक्ति की दुखती रग पर मरहम लगाने की छोटी-सी शुरूआत करने से लोग अत्यधिक आपके प्रति आकर्षित होंगे ।इससे सत्यता ज्ञात हो जाएगी कि परामर्श और सदौषधि के लिए भी लोगों की कितनी बड़ी इच्छा है ? वे भूखे शेर की भांति आपके सत्परामर्श और सद औषधि को ग्रहण करेंगे।
अपने से छोटा समझ कर अर्थात छोटे लोगों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। उनमें भी उसी परमपिता परमेश्वर के आलोक का दिव्य दर्शन करना चाहिए। जिस प्रकाश से आप स्वयं आलोकित हैं ।गंदा आचरण होता है ,कर्म गंदा नहीं होता। गंदी नियत होती है, किसी की जिंदगी गंदी नहीं होती ।न कर्म से घृणा करनी है और न ही किसी की जिंदगी से। घृणास्पद मनुष्य के लिए है तो किसी का आचरण है ।कोई मैला उठाकर कहीं डाल रहा है तो यह उसका कर्म गंदा नहीं है, यह तो उसका जन मानस पर उपकार है कि वह गंदगी को ढो, धो रहा है या उठा रहा है।
जीवन के प्रत्येक शुभ कर्म को अपने प्रभु की गोद में बैठ कर उसी प्रकार भेंट चढ़ा दो जिस प्रकार बाहर से लाई गई वस्तु को बचपन में बच्चा मां के हवाले कर देता है ।उस बच्चे की तरह आदत बनाओ । वह उस वस्तु को मां को सौंप कर प्रसन्नता का अनुभव करता है। किसी प्रकार का गर्व घमंड ना करें। इसी तरह मनुष्य को भी अनुभव करना चाहिए कि प्रभु को अपना सर्वस्व सौंप कर प्रसन्नवदन रहे।
जीवन के हर पल को महत्वपूर्ण समझो। हर क्षण आपको अनमोल निधि के रूप में मिला है। इस जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण में महत्व उत्पन्न करो ।ईश्वर ने इसे किसी विशेष कार्य के लिए आपको दिया है। जाने से पहले एकांत में बैठकर उस महान कार्य का निर्धारण और विनिश्चयकरण स्वयं के लिए तैयार कर लो जो ईश्वर ने आपसे ही कराना है फिर हो जाओ अपने उस निर्धारण और विनिश्चय करण के प्रति समर्पित।अर्थात लग जाओ उसी की प्राप्ति में , मिटा दो उसी के लिए अपने आपको। तब आप देखेंगे कि आप के बढ़ते कदम रुक जाएंगे ,अनायास उस रास्ते से जिस पर वे आज तक बेरोकटोक चल रहे थे। किंतु इसके पश्चात छोटी बातों का महत्व जब मनुष्य पर स्पष्ट अपना रंग जमाने लगेगा तो आप बड़ी बातों के रहस्य को भी सरलता से समझ जाएंगे ।जब ऐसी स्थिति आ जाएगी तभी यह जीवन जीवन के रूप में सार्थक होगा , अन्यथा इसे मनुष्य निरर्थक समझकर बोझ मानकर ढोते रहेंगे।
देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन : उगता भारत
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।