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” पत्तों को खाकर कीड़ा, रेशम बना रहा है |

है कौन! जो उदर में, चरखा चला रहा है?”

शाकाहारी से सर्वाहारी बनता जा रहा इंसान तरह तरह के फल फूल मेवा साग सब्जी मांस अंडे आदि खा पी पचा कर व अपच की स्थिति में विष्ठा के रूप में उल्टी, मल को निकाल देता है जो खुले तौर पर बहुत सी बीमारियों का कारण है ,मानव मल का खाद के अलावा कोई अभी तक ज्ञात व्यवहारिक उपयोग नहीं है |

लेकिन कीट पतंगों के मामले में ऐसा नहीं है| वयस्क अवस्था में केवल 2 दिन जीवित रहने वाले तितली के ही परिवार के कीट जिसका वैज्ञानिक नाम बॉम्बैक्स मोरी है हिंदी में जिसे पिल्लू कहते हैं, बड़ा ही प्यारा नाम है| मोटे तौर पर इसे रेशम कीट कह देते हैं यह शहतूत जैसे वृक्षों की पत्तियों को खाकर अपने मुंह की लार ग्रंथियों से रेशम जैसा प्रोटीन बनाता है जो वस्त्रों का प्राकृतिक तंतु है| रेशम वस्त्र उद्योग का मुख्य आधार है| गुणवत्ता के मामले में कपास , जूट से निर्मित वस्त्र तंतुओं से भी उत्तम होता है | जिसकी राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 6000 से लेकर ₹15000 किलो तक है |

रेशम कीट अर्थात मादा पिल्लू अपने अत्यंत अल्प छोटे से जीवन काल जो 48 घंटे का होता है के दौरान शहतूत के हरे भरे पत्तों पर 200 से लेकर 400 अंडे देती है | 10 दिन बाद उन अंडों से छोटे-छोटे लारवा निकलते हैं..| लारवा की कीट की शिशु अवस्था होती है| 20 से 30 दिन के दौरान लारवा पत्तों को खाकर लंबा चौड़ा हो जाता है…. एक-दो दिन में यह गोल मटोल हो जाता है अपने मुंह को झटक कर अपने शरीर के चारों तरफ मुंह से चिपचिपी ठोस तरल को निकालता है उसके द्वारा शरीर के चारों तरफ सुरक्षा आवरण जिसे ” कोकून” कहा जाता है का निर्माण कर लेता है… उसके अंदर ही लारवा कीट की तीसरी अवस्था जिसे प्यूपा कहा जाता है, में तब्दील हो जाता है| रेशम के तंतुओं का निर्माण करता है एक cokoon में 1000 मीटर रेशम तंतु का निर्माण होता है |

रेशम कीट के इसी खोल को गर्म पानी में डालकर रेशम कीट को मारकर हिंसक तरीके से रेशम प्राप्त किया जाता है| क्योंकि खोल को यदि गर्म पानी में ना डाला जाए तो Pupa वयस्क रेशम कीट में तब्दील हो जाता है| वयस्क रेशम कीट अपने मुंह के विशेष एंजाइम से अपने ही बनाए खोल को काट कर बाहर निकल जाता है| ऐसे में रेशम तंतु छोटे-छोटे टुकड़ों में बट जाता है ,इस्तेमाल के लायक नहीं होता|

महात्मा गांधी रेशम उद्योग के खिलाफ थे वह इसमें हिंसा मानते थे | इसी कारण में कपास सूती के वस्त्रों के प्रचलन को बढ़ावा दिया खादी के प्रचारक रहे क्योंकि वह किसी प्रकार की हिंसा नहीं है| आज अहिंसक तरीके से भी रेशम कीट पालन रेशम तंतुओं का उत्पादन किया जा रहा है| वन्य रेशम कीट से रेशम ऐसे ही प्राप्त किया जाता है नॉर्थ ईस्ट ,आसाम आदि मे| एरी ,टसर ,मूंगा आदि वन्य रेशम की वैरायटी है | रेशम कीट पालन को सेरीकल्चर कहा जाता है रेशम कीट की भी वैरायटी होती है ,जिनमें
अराकानी चीनी मद्रासी आदि प्रमुख है|

चीन रेशम के बल पर ही आर्थिक महाशक्ति बना है मेड इन चाइना बनने वाला पहला उत्पाद रेशम ही था| लेकिन भारत से अब उसे रेशम उत्पादन में कड़ा मुकाबला मिल रहा है चीन प्रथम रेशम उत्पादक तो भारत दुनिया का दूसरा रेशम उत्पादक देश है | भारत दुनिया का रेशम उपभोक्ता में प्रथम देश है | भारत में सालाना औसत 25000 टन रेशम का उत्पादन होता है |

लाभ हानि उत्पाद आयात निर्यात की भाषा को छोड़ें तो रेशम का तंतु रेशम कीट पिल्लू का सुरक्षा आवरण है प्रकृति में ऐसे कीटों का आवरण हम इंसानों का सौंदर्य वस्त्र परिधान बन जाता है |

हम इंसानों की यह चतुर भोग वृत्ति हमारी श्रेष्ठता है या निकृष्टता की कोटि में आती है, यह गहन गंभीर भी दार्शनिक चर्चा का विषय है |

*आर्य सागर खारी*✍✍✍

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