ओ३म्
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हमने कल वयोवृद्ध आर्यविद्वान पं. इन्द्रजित् देव, यमुनानगर से बातचीत की। उनसे महात्मा चैतन्य स्वामी जी के विषय में बातें हुईं। पंडित जी सन् 1965 से सन् 1969 तक चार वर्ष अपने सरकारी सेवाकाल में हिमाचल प्रदेश के मण्डी जिले के सुन्दरनगर स्थान पर रहे। इन्हीं दिनों लगभग 18 वर्ष के किशोर भगवान दास जी से उनके पास आया करते थे। युवक भगवान दास अपनी शंकायें व प्रश्न लेकर आचार्य इन्द्रजित् देव जी के पास आते थे। अपने जूते व चप्पल घर के बाहर उतार देते थे और ऋषि दयानन्द, आर्यसमाज व इसके सिद्धान्तों पर चर्चा करते थे। हमें अपने दूरभाषा पर वार्तालाप में जो बातें ज्ञात हुई, उन्हीं की कुछ चर्चा यहां कर रहे हैं।
इस समय पं0 इन्द्रजित्देव जी की वय 82 है तथा महात्मा चैतन्य मुनि जी 72 वर्ष के थे। पंडित जी उन्हें अपने छोटे भाई की तरह मानते तथा स्नेह देते थे। यहां मण्डी-सुन्दरनगर में पंडित जी ने एक संस्था बनाई थी जिसका नाम था ‘हिन्दी साहित्य संगम’। इस संस्था में दोनों आर्य पुरुषों ने मिलकर काम किया। हिन्दी कथा साहित्य में मुंशी प्रेमचन्द जी के बाद कथाकार व साहित्यकार यशपाल जी का नाम आता हे। यशपाल जी एक बार सुन्दर नगर आये। पंडित जी ने अपने प्रयत्नों से हिमचाल प्रदेश सरकार से उन्हें राजकीय अतिथि घोषित कराया था। उन दिनों श्री शान्ता कुमार राजनीति में अधिक आगे नहीं थे लेकिन वह साहित्य जगत में पहले से प्रसिद्ध थे। उनसे भी पंडित इन्द्रजित् जी के सम्बन्ध रहे। यशपाल जी का मण्डी वा हिमाचल प्रदेश में कई स्थानों पर अभिनन्दन हुआ। हिन्दी साहित्य संगम संस्था के द्वारा भी यशपाल जी का अभिनन्दन किया गया। चैतन्य जी पहली बार यशपाल जी के अभिनन्दन के कार्यक्रम में ही आये थे जहां उनका पं. इन्द्रजित देव जी से परिचय हुआ था। इसके बाद चैतन्य जी पंडित जी के घर यदा कदा आने लगे थे। वह अपनी चप्पलें कमरे के बाहर उतार कर आते थे।
चैतन्य मुनि जी उन दिनों कवितायें लिखा करते थे। पंडित जी भी उन दिनों कवितायें लिखते थे। इसके बाद चैतन्य जी कहानी भी लिखने लगे थे। इन्हीं दिनों पंडित जी ने चैतन्य जी को आर्यसमाज की ओर मोड़ा। कुछ काल बाद सन् १९६९ में पंडित जी सुन्दरनगर से हरियाणा अपने निवास प्रदेश में लौट आये। अब चैतन्य जी से उनका सम्पर्क पत्रों के माध्यम से होने लगा। आप पत्रों से चैतन्य मुनि जी का शंका समाधान किया करते थे। चैतन्यमुनि जी लेखन के क्षेत्र में अपने पुरुषार्थ से आगे बढ़े। सिंचाई विभाग की सरकारी नौकरी में रहते हुए आपने एम.ए. हिन्दी में किया। सुन्दरनगर में रहते हुए ही पंडित जी की पत्नी का देहान्त हुआ था अतः इस क्षेत्र से पंडित जी की यादें जुड़ी रही हैं। सन् 1969 के बाद भी आपका सुन्दरनगर में जाना होता रहा। सुन्दरनगर में ही पंडित जी की दो सन्तानें एक पुत्री कविता वाक्चनवी और पुत्र आलोक जी थे। इन्हीं दिनों चैतन्य जी ने हिन्दी प्रभाकर की परीक्षा उत्तीर्ण की। यह परीक्षा बी.ए. आनर्स के समकक्ष है। इसके बाद चैतन्यमुनि जी ने हिन्दी प्रभाकर के विद्यार्थियों को कोचिंग भी दी। यह कोचिंग आपने सिंचाई विभाग की नौकरी लगने से पहले की। कोचिंग का कारण अर्थोपार्जन था जिससे आप अपने परिवार के लोगों की आर्थिक सहायता कर सकें।
मण्डी में रिवाल्सर एक तालाब है। हिन्दू, सिख व बौद्धों आदि समुदायों में इस सरोवर की धार्मिक दृष्टि से मान्यता व महत्व है। इसके पास ही एक गांव हैं वहां के चैतन्यमुनि वा भगवानदास जी रहने वाले थे। इनके पिता का नाम श्री रामशरण था। पंडित जी चार वर्ष सुन्दरनगर से यमुनानगर आने के बाद भी चार छः महीनों में सुन्दरनगर जाया करते थे। इन्हीं दिनों चैतन्यमुनि जी के लेख पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने आरम्भ हो गये थे। पंडित जी जब सुन्दरनगर से स्थानान्तरित हुए तो आप अपनी संस्था ‘हिन्दी साहित्य सगम’ को श्री चैतन्यमुनि जी को सौंप गये थे। चैतन्यमुनि जी ने इस संस्था को दो तीन वर्ष चलाया। हिन्दी को राजकीय स्तर पर मान्यता दिलाने के लिये पंडित जी तथा चैतन्यमुनि दोनों ने प्रशंसकीय कार्य किया। साहित्यकार तथा हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री शान्ता कुमार जी का हिन्दी को सरकार की ओर से मान्यता दिलाने में योगदान रहा है। इसके बाद चैतन्यमुनि जी ने अपने पुरुषार्थ से अपनी वर्तमान सम्मानित स्थिति जो एक लेखक, संस्थाओं के संचालक तथा समाजों व संस्थाओं में वेद व्याख्यानदाता की थी, को प्राप्त किया। हिमाचल-प्रदेश आर्य प्रतिनिधि सभा में भी आपने सक्रिय योगदान किया। सभा की पत्रिका ‘आर्य वन्दना’ के आप आठ-दस वर्षों तक सम्पादक रहे। इस पत्रिका में आपके लेख प्रकाशित होते रहते थे। चैतन्यमुनि जी का सुन्दरनगर के एक पौराणिक परिवार में विवाह हुआ था। श्रीमती सत्यप्रिया जी आपकी धर्मपत्नी हैं। विवाह के बाद श्रीमती सत्यप्रिया जी ने भी वैदिक धर्म व आर्यसमाज की विचारधारा को अंगीकार कर किया। चैतन्यमुनि जी अपने जीवन के आरम्भ काल में भगवानदास ‘दर्दी’ के नाम से कवितायें लिखते थे। पंडित इन्द्रजित् देव जी ने आपको सुझाव दिया कि दर्दी के स्थान पर कुछ और नाम रखिये। सुझाव मांगने पर आपने भगवान दास ‘व्यथित’ नाम रखने की प्रेरणा की थी जिसका चैतन्यमुनि जी ने पालन किया था।
स्वामी चैतन्य मुनि जी के तीन पुत्र हैं। बड़ा पुत्र मण्डी में डिप्टी कमीशनर के कार्यालय में राजपत्रित अधिकारी है। दो छोटे पुत्र निजी व्यवसाय में हैं। पं. इन्द्रजित् देव जी ने बताया कि ऊधमपुर-जम्मू आश्रम के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। इस आश्रम की व्यवस्था ऋषिभक्त भारतभूषण जी, जम्मू करते हैं जो व्यवसाय से एक वकील है। इस आश्रम में स्वामी चैतन्म मुनि वर्ष में दो बार शिविर लगाते थे। यह शिविर अप्रैल तथा अक्टूबर महीने में आयोजित किये जाते थे। स्वामी जी इस आश्रम के संरक्षक के पद पर थे। इस आश्रम को भूमि श्री रसीला राम जी नाम के एक आर्यसमाज भक्त ने दी थी तथा आश्रम को बनवाया था। पं. इन्द्रजित् देव भी इस आश्रम में दो-दो और कभी चार महीनों तक जाकर रहे हैं।
महात्मा चैतन्य मुनि जी के पिता पौरोहित्य कार्य करते थे। चैतन्यमुनि जी ने लगभग 25 पुस्तकें लिखी हैं। उनकी कुछ पुस्तकें विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली से प्रकाशित हैं। महात्मा चैतन्य मुनि जी ने पंजाब, हरयाणा, दिल्ली सहित जम्मू एवं महाराष्ट्र आदि अनेक प्रदेशों में वैदिक धर्म का प्रचार किया। वह नवम्बर, 2019 में आर्यसमाज धामावाला, देहरादून के वार्षिकोत्सव में मुख्य वक्ता के रूप में भी आये थे। हमने उनके प्रभावशाली व प्रेरक व्याख्यानों को सुना था। उनको नोट कर उन्हें अपने फेसबुक, व्हटशप, इमेल आदि मित्रों तक भी पहुंचाया था। आपको समय समय पर अनेक आर्यसमाजों व संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जाता रहा। आपको निम्न रक्तचाप का रोग था। दिनांक 26-6-2020 को महात्मा जी का परिवार किसी कार्य से कहीं गया था। स्वामी जी घर पर अकेले थे। ऐसी स्थिति में आपको तीव्र हृदयाघात हुआ जिससे उनकी मृत्यु हो गई। उसी दिन मण्डी में उनकी अन्त्येष्टि कर दी गई। अब स्वामी चैतन्यमुनि जी एक इतिहास बन चुके हैं। वह जिन जिन लोगों के सम्पर्क में रहे उनको याद आते रहेंगे। इन पंक्तियों को लिखते समय हमारी आंखों के सामने उनका मोहक मुखमण्डल वा चित्र उपस्थित है। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह स्वामी जी की आत्मा को सद्गति वा मुक्ति प्रदान करें। आर्यसमाज के प्रचार कार्य को क्षति हुई उसकी पूर्ति के लिये पुण्यात्मा को भेजे जिससे आर्यसमाज का वेद प्रचार का कार्य तीव्र गति से हो सके। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य