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नेपाल के नये नक्शे के पीछे चाइनीज प्रिंटर!

नई दिल्ली।जहां आज सारा विश्व कोरोना की बीमारी से लड़ रहा है , वही भारत भी कोरोना के साथ-साथ पाकिस्तान,चीन, नेपाल व आर्थिक संकट आदि चुनौतीपूर्ण समस्याओं से लड़ रहा है।यह सप्ताह देश के लिए कई चुनौतियां एक साथ लेकर आया। कोरोना वायरस महामारी से तो देश निबट ही रहा था ऐसे में चीन ने गलवान घाटी में जो धोखा दिया और नेपाल ने अपना नया नक्शा जारी कर जो विश्वासघात किया, उससे देश को अपनी कुछ प्राथमिकताएं बदलनी पड़ीं।

इस सप्ताह के राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों की बात करें तो गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद अब पूरी दुनिया की नजरें इस ओर लग गयी हैं कि क्या एशिया की दो महाशक्तियों भारत और चीन के बीच युद्ध की नौबत तो नहीं आयेगी। भारत ने जिस तरह दृढ़ता से चीन को स्पष्ट कर दिया है कि हमारी शांति की भावना को कमजोर नहीं समझा जाये उससे चीन अब वार्ता की गुहार लगाता दिख रहा है हालांकि इसके साथ-साथ वह सीमा पर अपनी सैन्य शक्ति में भी इजाफा कर रहा है। इस मामले में भारत भी पीछे नहीं है और उसने सीमा पर चीन के मुकाबला करने के लिए पूरी शक्ति तैयार रखी है।

उधर, कोरोना वायरस के मामले भारत में चार लाख तक पहुँचने वाले हैं लेकिन राहत की बात यह है कि हमारे यहाँ स्वस्थ होने की दर 53 प्रतिशत से ज्यादा है और मृत्यु दर भी नियंत्रण में है। ठीक होने वाले लोगों का बढ़ता आंकड़ा दर्शाता है कि कोरोना वायरस के खिलाफ चल रही लड़ाई में भारत विजय पथ पर अग्रसर है। इसके अलावा कोरोना काल में प्रवासी श्रमिकों को जो कष्ट उठाना पड़ा उसे दूर करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रवासी श्रमिकों को आय समर्थन देने के लिये 50,000 करोड़ रुपये के ‘गरीब कल्याण रोजगार अभियान’ की शुरुआत की है। लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक अपने गांवों को लौटे हैं जहां उनके समक्ष रोजगार की समस्या खड़ी हुई है। यह योजना मुख्य रूप से उन छह राज्यों पर केंद्रित होगी, जहां सबसे अधिक प्रवासी श्रमिक अपने घरों को लौटे हैं।

दूसरी ओर देश में राज्यसभा चुनाव संपन्न हुए और सभी राज्यों में परिणाम आशानुरूप ही रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाई जिसमें सभी दलों के विचार जाने गये लेकिन आप देखिये कि कांग्रेस की ओर से इस सर्वदलीय बैठक में जिस तरह का व्यवहार किया गया वह ठीक नहीं था। राजनीतिक एकजुटता दिखाने की बजाय कांग्रेस अध्यक्षा जिस तरह निरर्थक सवाल उठाती रहीं उससे बचना चाहिए था। राहुल गांधी ने भी इस सप्ताह जिस तरह लगातार चीन मुद्दे पर खुद भारत की ही सरकार को घेरना उचित समझा वह नासमझी ही कही जायेगी। पूरा सोशल मीडिया जहां चीन विरोधी टिप्पणियों से भरा पड़ा था तो वहीं शायद राहुल गांधी एकमात्र होंगे जोकि अपनी ही सरकार पर सवाल उठा रहे थे। चीन के विरोध में जिस तरह आक्रोश देश भर में पनपा है और चीनी उत्पादों के बहिष्कार का जो आह्वान किया गया वह अब एक आंदोलन का रूप ले चुका है।

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