लघु कथा : वक्त – वक्त की बात

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          अभी बस दो साल पहले की ही बात है।कि शर्मा जी के पड़ोस में एक घर में चोरी हो गई थी।चोरी कोई बड़ी नहीं थी।केवल गुप्ता जी की काफी पुरानी कार चोरी हो गयी थी।
          शर्मा जी ने फिर भी पड़ोस वालों को समझाया।कि अपने मोहल्ले के दोनों तरफ लोहे के बड़े-बड़े गेट लगवा लेते हैं।जिससे चोरी की संभावना समाप्त हो जाएगी और एक गार्ड को ड्यूटी पर रख लेंगे।जिसे सब मिलकर महीने भर की तनखा दे दिया करेंगे।
          लेकिन शर्मा जी की बात सिर्फ गुप्ता जी को समझ में आई।जिनके घर में चोरी हुई थी।बाकी सभी लोगों का यह कहना था कि ऐसी घटना तो हो ही जाती हैं।इसके लिए पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिए।वही लोग चोरों को ढूंढ कर उन पर उचित कार्रवाई करेंगे।
           वहीं कुछ लोगों का यह भी कहना था कि शर्मा जी हमारे मोहल्ले के इन 60 मकानों में गिने-चुने लोगों के पास की कार है।जिसके लिए केवल उन्हीं लोगों को सुरक्षा की जरूरत ज्यादा है जिनके पास कार है।
           अगर वो लोग चाहे तो मिलकर लोहे का गेट लगा ले और गार्ड भी रखें।लेकिन बाकी लोग अपनी कमाई से उन्हें पैसा क्यों दें।
          खैर आज 2 साल बाद कोरोना की महामारी के दौर में परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि अब वही लोग इस बात की राय देने लगे कि चलो सबलोग मिलकर लोहे का दरवाजा दोनों तरफ लगवा ले और गार्ड भी रख लें।जिससे मोहल्ले के लोगों के अलावा बाहर का कोई भी व्यक्ति बिना जानकारी के अंदर ना आ सके।
           शर्मा जी इस बात को सुनकर मन ही मन मुस्कुराए।उन्होंने सोचा कई बार जीवन में बदलाव कुछ इस तरह आते हैं।कि कुछ चीजें अपने आप लोगों को जरूरी लगने लगती है।जो किसी दूसरे समय मे उन्हें सही नही लगती।
           जीवन के हर पहलू में हर व्यक्ति की राय अलग अलग हो सकती हैं।एक बात जो कभी सभी के लिए गलत थी।वही बात जीवन के किसी दूसरे पहलू में सही भी लगने लगती है। शर्मा जी मन ही मन मुस्कुराए और सभी लोगों को पैसे इकट्ठा करने का बात कही और सब लोगो ने मिलजुलकर इस दिशा में आगे कदम बढ़ाया।जो काम शायद दो साल पहले दो या तीन महीनों में होता।वही काम कोरोना काल में चार से पाँच दिनो में ही पूरा हो गया।
नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

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