जमशेदपुर । ( विशेष संवाददाता ) शहीद का ना कोई मजहब होता है ना कोई जाति होती है । उसकी शहादत पर हर आंख में आंसू होते हैं और हर दिल में उसके प्रति श्रद्धा का एक सैलाब उमड़ पड़ता है । यही स्थिति बताती है कि जाने वाला कितना शानदार था और अब जब वह चला गया है तो उसके जाने पर कितने लोगों को उसका गम है ? भारत चाइना बॉर्डर पर वीरगति को प्राप्त हुए एक अधिकारी समेत 20 जवानों में से एक भारत माता के वीर सपूत गणेश हांसदा जी का पार्थिव शरीर जब बाँसदा हेलीपैड पर लाया गया वहां पर उपस्थित लोगों की आंखें नम हो गई । कोरोना के कारण अधिक भीड़ तो नहीं आ सकती थी परंतु जिस – जिस ने भी अपने अमर शहीद के बारे में सुना उस – उसने ही अपने घर से ही मौन श्रद्धांजलि मां भारती के सच्चे सपूत को प्रदान की। यह स्थान पूर्वी सिंहभूम जिला के अंतर्गत बहरागोड़ा प्रखंड में आता है ।
उनके पार्थिव शरीर को रांची से हेलीकॉप्टर के द्वारा उनके गांव के समीप स्थित बाँसदा हेलीपैड पर लाया गया और वहां से सेना की गाड़ी से उनके गांव ले जाया गया ।
यहाँ 25 से 30 हजार लोगों ने वीरगति को प्राप्त गणेश हांसदा जी के पार्थिव शरीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित किये । पुष्पांजलि के इस क्रम में पूर्व सैनिक सेवा परिषद के लोगों के साथ वीर सावरकर फाउंडेशन के सदस्य भी गए थे । जिसमें राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष धर्म चंद्र पोद्दार एवं फाउंडेशन के सदस्य अजीत सिंह ने भी पुष्पांजलि कर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी ।
इस समय न केवल शहीद के परिवार वालों को ही उनकी शहादत पर गर्व हो रहा था बल्कि गांव और क्षेत्र के लोगों को भी मां भारती के सच्चे बलिदानी के बलिदान पर गर्व की अनुभूति हो रही थी । लोगों के भीतर जहां अपने बलिदानी के प्रति श्रद्धा का भाव था वहीं चीन के प्रति घृणा का भाव भी स्पष्ट झलक रहा था।
इस अवसर पर पूर्व सैनिकों ने यहां यह शपथ उठाई कि यदि भारत सरकार उन्हें चीन के साथ जाकर लड़ने के लिए बुलाएगी तो वह इसे अपना सौभाग्य समझेंगे और अपना सर्वोत्कृष्ट बलिदान देने तक से भी पीछे नहीं हटेंगे।