हम स्कूल गए। पढे। जिस अध्यापक ने हमे पढ़ाया वह भी कभी विद्यार्थी था। उसका अध्यापक भी कभी विद्यार्थी रहा था। प्रश्न उठता है जब दुनिया बनी तब सबसे पहला अध्यापक कौन था?
इसका उत्तर योग दर्शन मे महर्षि पतंजलि देते हैं–
क्लेश-कर्म-विपाक-आशयैः परामृष्टः पुरुषविशेषो ईश्वरः ।।24।।
क्लेश-कर्म-विपाक और आशयों से रहित पुरुष विशेष ईश्वर है ।
भाष्य-विद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, अभिनिवश, यह पांच क्लेश हैं, और शुभ अशुभ दो प्रकार के कर्म हैं, कर्मों के फल, जाति, आयु, भोग, इनका नाम “विपाक” है इनके अनुसार चित्त में होनेवाली वासनाओं को “आशय” कहते हैं, इन सब के सम्बन्ध से रहित पुरूष विषेश का नाम “ईश्वर” है।।
स एष पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात् ||26||
[स एषः] वह यह (ईश्वर) [पूर्वेषाम् अपि] पूर्व गुरुओं (ऋषियों, महर्षियों) का भी [गुरुः] गुरु है [कालेन] काल के द्वारा [अनवच्छेदात्] नष्ट न होने से |
ईश्वर प्रदत्त ज्ञान को प्राप्त करके ही कोई शरीरधारी व्यक्ति गुरु बनने में समर्थ होता है, इसलिए वह परमेश्वर सृष्टि के आदि से लेकर अब तक जितने भी ऋषि, महर्षि, आचार्य, अध्यापक, उपदेशक इत्यादि गुरु हुए हैं तथा जो आगे होंगे, उन सबका भी गुरु है | क्योंकि वह काल से कभी नष्ट नहीं होता, वह अमर है | इसी प्रकार से वह पिछली सृष्टियों में भी सबका गुरु था और आगे आने वाली सृष्टियों में भी सबका गुरु रहेगा