दिनांक 5 जून, 2020 को समाप्त सप्ताह के दौरान भारत ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की है। भारतीय इतिहास में पहली बार देश में विदेशी मुद्रा भंडार ने 500 बिलियन (50,000 करोड़) अमेरिकी डॉलर के आँकड़े को पार करते हुए 501.70 बिलियन (50,170 करोड़) अमेरिकी डॉलर के स्तर को छुआ है। विदेशी मुद्रा भंडार का यह स्तर भारत के एक साल के आयात के बराबर है। इस आँकड़े, अमेरिकी डॉलर को यदि (एक डॉलर को भारतीय रुपए 76.50 की दर से) भारतीय रुपए में परिवर्तित करें तो भारतीय रुपए में यह रक़म 38,38,005 करोड़ रुपए बनती है। भारत में विदेशी मुद्रा भंडार ने कभी भी इस स्तर को नहीं छुआ है।
कल्पना करें, भारत ने किस स्थिति से आगे बढ़ना प्रारंभ किया है। वर्ष 1991 में देश के पास 15 दिनों के आयात के लिए भी विदेशी मुद्रा भंडार उपलब्ध नहीं था और तत्कालीन प्रधान मंत्री ने इंग्लैंड में सोना गिरवी रखकर विदेश मुद्रा की व्यवस्था की थी ताकि विदेशी मुद्रा के भुगतान में भारत को चूककर्ता की श्रेणी में शामिल होने से बचाया जा सके।
देश के लिए यह हर्ष का विषय ही होना चाहिए कि जब पूरे विश्व में कोरोना महामारी का प्रकोप छाया हुआ है ऐसी स्थिति में भी विदेशी निवेशकों का भारत पर विश्वास बना हुआ है। मार्च 2020 के बाद से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 2400 करोड़ अमेरिकी डॉलर की वृद्धि दर्ज हुई है। यह सब भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई अन्य देशों एवं विदेशी निवेशकों के आत्मविश्वास के चलते ही सम्भव हो सका है क्योंकि इस दौरान भी भारतीय अर्थव्यवस्था के व्यापक आर्थिक मानक मज़बूत बने रहे हैं।
हाल ही के समय में देश में विदेशी पूँजी निवेश की मात्रा में भी भारी वृद्धि दर्ज की गई है। विदेशों में ब्याज की दरें बहुत ही कम हैं अतः कई भारतीय कम्पनियाँ विदेशी मुद्रा में विदेशी व्यावसायिक उधार के मार्ग का उपयोग करते हुए विदेशी ऋण भी ले रहीं हैं।
वर्ष 2019-20 में भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश भी पिछले 4 वित्तीय वर्षों में सबसे अधिक 13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 4997 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा था जो वर्ष 2018-19 में 4436 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा था। यह विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सामान्यतः बहुत लम्बे समय के लिए किया जाता है और यह तभी सम्भव होता है जब देश के व्यापक आर्थिक मानक विदेश निवेशकों की नज़रों में मज़बूत बने रहे हों।
साथ ही, इस वर्ष जून 2020 के प्रथम सप्ताह में भी विदेशी पोर्टफ़ोलीयो निवेशकों ने भारतीय पूँजी बाज़ार में 18,589 करोड़ रुपए का निवेश किया है। अतः देश में विदेशी निवेश की यह प्रवृत्ति अभी भी जारी है।
कई भारतीय कम्पनियों में विदेशी निवेशकों का आकर्षण स्पष्ट तौर पर देखने में आ रहा है। भारतीय कम्पनी रिलायंस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड में हाल ही में कई विदेशी कम्पनियों ने विदेशी मुद्रा में निवेश किया है और इस कम्पनी में अपने हिस्सेदारी बढ़ाई है। पिछले 7 सप्ताहों के दौरान रिलायंस इण्डस्ट्रीज में 97,886 करोड़ रुपए का निवेश हुआ है। इन निवेशकों में अमेरिका की फ़ेसबुक एवं साऊदी अरब की विदेशी कम्पनियाँ भी शामिल हैं।
5 जून 2020 को समाप्त सप्ताह के दौरान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास भारत ने विशेष आहरण अधिकार की मद के तहत 1 करोड़ अमेरिकी डॉलर जमा कर इस कोष में कुल जमा राशि को 144 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुँचा दिया है। इस प्रकार, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में भारत के कुल रिज़र्व की राशि भी 12 करोड़ अमेरिकी डॉलर की वृद्धि दर्ज करते हुए 428 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुँच गई है, जो भारत की लगातार मज़बूत तो रही स्थिति को दर्शाता है।
विदेशी मुद्रा में लिए गए ऋणों की अदायगी एवं इस ऋण पर ब्याज अदा करने हेतु तथा विदेशों से आयात की गई वस्तुओं के विदेशी मुद्रा में भुगतान हेतु विभिन देशों को विदेशी मुद्रा भंडार को एक आदर्श स्तर पर लगातार बनाए रखने की आवश्यकता महसूस होती है। और, इन्हीं कारणों के चलते विभिन्न देशों को विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखना पड़ता है। यह विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी बैंक नोट, विदेशी बैंकों में जमाराशि, विदेशी ट्रेज़री बिल और अन्य अल्पकालिक विदेशी सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश, सोने के भंडार एवं विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास जमा राशि के रूप में रखा जाता है। अधिक मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार को बनाए रखना एक चुनौती भी है क्योंकिं इस विदेशी मुद्रा भंडार का निवेश अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इस प्रकार से किये जाने की आवश्यकता होती है ताकि देश को इस प्रकार के निवेश पर अधिक से अधिक आय की प्राप्ति हो सके। अब, भारत में भी चूँकि विदेशी मुद्रा भंडार नित नई उचाईयाँ छू रहा है अतः इसके उचित निवेश पर, देश को अधिकतम आय हो सके, इस बात का ध्यान रखना भी अब अति आवश्यक हो गया है।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।