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इतिहास के पन्नों से

गांधी के पापों ने हिंदू जाति का कर दिया सर्वनाश

-श्याम सुंदर पोद्दार

( श्री श्याम सुंदर पोद्दार जी एक ऐसे राष्ट्रवादी चिंतक व लेखक हैं जो वीर सावरकर जी के चिंतन और विचारधारा के प्रति पूर्णतया समर्पित हैं । उनके भीतर वही तड़प और वही आग है जो भारत की एकता व अखंडता को लेकर सावरकर जी के भीतर थी । उनके लेखों में वही धड़कन है जो सावरकर जी की लेखनी में कभी दिखाई दिया करती थी । उनके प्रस्तुत लेख में उनकी विचारधारा , उनका चिंतन , उनकी सोच और राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव स्पष्ट परिलक्षित होता है । आशा है हमारे सभी पाठकों के लिए यह लेख विशेष उपयोगी होगा । — डॉ राकेश कुमार आर्य , संपादक : उगता भारत )

हमारे देश की केंद्रीय धारा-सभा का निर्वाचन 1945 के अंत में द्वितीय विश्व युद्ध के समापन के बाद हुआ। इस निर्वाचन में 102 सीटों पर चुनाव होने थे। मुस्लिम लीग ने मुस्लिम मतदाताओं से यह कह कर चुनाव लड़ा कि हम मुसलमान काफिर हिंदुओं के साथ नहीं रह सकते, हमें हमारा अलग से इस्लामिक राज्य चाहिए।

कांग्रेस ने जनता से वादा किया कि हम किसी भी कीमत पर मुस्लिम लीग की मांग के आगे नहीं झुकेंगे। देश का बंटवारा गांधी जी की लाश पर होगा। हिंदू जनता ने गांधी की शपथ पर पूरा विश्वास किया, और कांग्रेस को पूरा समर्थन दिया। 102 सदस्यों की केंद्रीय धारा-सभा के सदन में मुस्लिम लीग को 30 सीटें मिलीं और कांग्रेस को 54 सीटें। भारत वर्ष के 93 प्रतिशत मुसलमानों ने भारत के दो टुकड़े कर इस्लामिक राज्य पाकिस्तान के निर्माण के पक्ष में अपने वोट दिये। दरअसल विभाजित भारत वर्ष के 100 प्रतिशत मुसलमानों ने इस्लामिक राज्य पाकिस्तान बनाने के पक्ष में अपने वोट दिये। जिन सात प्रतिशत मुसलमानों ने पाकिस्तान बनाने के विरुद्ध में वोट दिये वे आज के पाकिस्तान के थे। सिंध, पंजाब व फ्रंटियर प्रॉविंस के थे। जिन्ना को कलकत्ता किलिंग के बाद जब नोवाखाली किलिंग में सफलता मिली तब उन्होंने कहा, “हमारे इस्लामिक पाकिस्तान में काफिर हिंदुओं के लिए कोई जगह नहीं होगी, ऐसा नहीं होने पर हमारा इस्लामिक राज्य बनाने का उद्देश्य पूर्ण सफल नहीं होगा।”

तो एक ऐसी व्यवस्था की जाए कि जनसंख्या की अदला-बदली शांति से की जा सके। ऐसा नहीं, होने पर हम नोवाखाली की तरह खून-खराबा कर पाकिस्तान के हिंदुओं को निकालेंगे। पर सवाल है, जिन्ना की इस धमकी को गांधी ने किस तरह लिया? दरअसल, उनके दिमाग में 1952 का चुनाव था जिसमें वे कांग्रेस को जीताना चाह रहे थे। गांधी ने जनसंख्या की अदला-बदली की कोई व्यवस्था नहीं की। पाकिस्तान से 23 प्रतिशत हिंदुओं को भगाने के लिए जिन्ना ने 20 लाख हिंदुओं की कत्लेआम करवाई और 23 प्रतिशत हिंदुओं को कम कर पाकिस्तान में मात्र दो प्रतिशत पर ला दिया। इन 20 लाख हिंदुओं की कत्लेआम के एकमात्र जिम्मेवार गांधी हैं। गांधी जिन्ना की बात मान कर जनसंख्या की अदला-बदली कर लेते तो 20 लाख हिंदुओं की जान बचाई जा सकती थी। दूसरा, जिन भारतीय मुसलमानों ने पाकिस्तान बनवाया, उनको वहां जाने नहीं दिया ताकि उनके वोट की बदौलत 1952 का चुनाव जीत सके। जनता ने 1945 के चुनाव में गांधी को देश को एक सूत्र में पिरोए रखने का अधिकार दिया था, न कि देश के बंटवारे का और इतनी बड़ी संख्या में हिंदुओं को मरवा कर उनके सर्वनाश करने का।

अपनी पार्टी को 1952 का चुनाव जीताने के लिए पाकिस्तान बनाने वाले मुसलमानों को भारत में रख कर हिंदुओं की पीठ में गांधी ने छुरा भोंक दिया। मुसलमानों के तो दोनों हाथों में लड्डू। 23 पर्सेंट थे, लेकिन पाकिस्तान के रूप में हिंदुस्तान की 30 पर्सेंट जमीन ले गए और हिंदुओं की छाती पर मूंग दलने के लिए यहां रह गये। जिस मुस्लिम लीग ने देश का विभाजन करवाया था, जो खण्डित भारत में बच गयी थी। देश का विभाजन कराने वाली उस बची हुई मुस्लिम लीग का विलय कांग्रेस में गांधी ने कर दिया और उसके नेताओं को मंत्री-गवर्नर के पद दे दिये।

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