*मदरसा मुस्लिम आक्रामकों द्वारा कब्जाई हुई हिन्दू इमारतें*
मदरसा :-
मध्यकालीन स्मारकों के खुले प्रांगण, वार्तालाप-कक्ष भाग यात्रियों को ‘मदरसे’ बता दिए जाते है। विचार करने की बात है कि मध्यकालीन इस्लामी शासन जे अंतर्गत, जब अशिक्षित शासकों का राज्य था और सम्पूर्ण शैक्षिक-योग्यता का अर्थ केवल कुरान का पूर्ण पाठ करने की क्षमता भर था और वह केवल मुस्लिम जनसंख्या के अल्पांश को ही पढ़ाने तक सीमित था, तो ऐसा कौन-सा शासक हो सकता था जो घोर व्यसनी और मद्यपि होते हुए भी शिक्षणालय के रूप में अतिविशाल भवनों का निर्माण करता ! यह असंभव है। अतः मध्यकालीन स्मारकों में भव्य भागों को मदरसे के रूप में चटकदार तथा लुभावनी भाषा में सामान्य यात्रियों और असंशयशील विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत करना ही इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि मध्य-कालीन भारतीय स्मारक, जिनमें इस्लामी धर्म-प्रेरणा से मेल न खाते हुए अनेक अयुक्तियुक्त लक्षण है, तथ्य रूप में मुस्लिम पूर्व काल के राजपूत स्मारक ही है।
*मदरसा शब्द का रहस्य –*
भारत में जहां देखो वहां ऐतिहासिक इमारतों के विशाल दालान बतलाने हुए स्थलदर्शक प्रेक्षपों को कहते रहते है, “यह मौहम्मद तुगलक का मदरसा, वह अलाउद्दीन खिलजी का मदरसा, वह अन्य एक मौहम्मद गवान का मदरसा, इत्यादि-इत्यादि ।” भारत में इतने ढ़ेर के ढ़ेर मदरसे खोलने की आवश्यकता इन आक्रामकों को क्यों पड़ी ? इस्लामी आक्रमणों से पूर्व भारत मे क्या सारे अनपढ़, निरक्षर, जंगली लोग ही बसते थे ? और इतने सारे इस्लामी आक्रामक जो लगातार छह सौ वर्ष भारत पर आक्रमण करते रहे क्या वे रक्तरंजित खड़ग उठाये आते थे या स्याही लगी कलम ? लेकिन क्या वे स्वयं बड़े उच्च शिक्षाविभूषित विद्याप्रसार के लिए तड़पने वाले व्यक्ति थे कि क्रूर, बर्बर, धर्मान्ध और अत्याचारी थे ? क्या उन्होंने उनके देश मे विद्याप्रसार का इतना पर्याप्त कार्य किया था कि उन्हें भारत में मदरसे स्थापित करने के सिवाय कोई चारा ही नहीं था।
विद्यमान से संस्कृत प्रणाली के अनुसार सर्वत्र ‘शाला’ का प्रयोग होता था। जैसे पाठशाला, चंद्रशाला, भोजशाला, यज्ञशाला, रंगशाला, वैधशाला, गजशाला इत्यादि-इत्यादि। इन सारे भवनों पर कब्जा करने के पश्चात मुसलमान जब उसमें रहने लगे तो विविध दालानो के नाम पूछने पर उन्हें ‘शाला-शाला’ शब्द ही सर्वत्र सुनाई दिया। उसका इस्लामी अनुवाद ‘मदरसा’ कर डाला। अतएव जिस भवन में मौहम्मद गवान ने कब्जा किया उसे लोग मौहम्मद गवान का मदरसा कहने लगे। इस ‘मदरसा’ नाम से ही एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह निकलता है कि क्रूर इस्लामी आक्रामकों द्वारा कब्जा किए हुए सारे ऐतिहासिक भवन हिंदुओं के भवन थे। दक्षिण भारत में तमिल प्रान्त की राजधानी मद्रास-इस नाम से हम कह सकते है कि प्राचीन काल में वहां अवश्य ही कोई वेद विद्यालय दीर्घ समय तक चलता रहा हो, अतएव उस नगर इस्लामी आक्रमण के काल में मदरसा उर्फ मद्रास पड़ गया।
*ऊपर किये गए विवेचन से प्रस्थापित होने वाले कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष इस प्रकार है :-*
1. विश्व में जितनी भी विशाल ऐतिहासिक इमारतें कब्रें, मस्जिदें, किले, बाड़े आदि समझी जाती है वे सारी कब्जा की हुई इमारतें है। क्योंकि इस्लाम की प्रथा ही इमारते हड़प करने की रही है, न कि बनाने की।
2. कोई भी ऐतिहासिक इमारत का ब्यौरा या उस इमारत का नाम भी तत्कालीन इस्लामी इतिहासों में नहीं है जिस काल में उस इमारत का इस्लामी निर्माण बताया जाता है।
3. इमारत को कब्र कहना या समझना बड़ी सारी भूल है। कब्र केवल मुर्दों के टीलों को कहा जाना चाहिए। यदि जाकिर हुसैन दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में दफनाएं जाते तो क्या राष्ट्रपति भवन को ही कब्र कहना ठीक होता ?
4. जिस मुसलमान का नाम जिस ऐतिहासिक इमारत से जुटाया गया है उसे इस्लाम का ध्वंसक मानना चाहिए, न कि निर्माता ।
5. प्रत्येक ऐतिहासिक स्थान पर जो निर्माण कार्य हुआ है वह हिन्दू निर्माण है, किन्तु जो तहस-नहस किया दिखाई देता है यह इस्लामी आक्रमकों की करतूत है।
6. प्रत्येक मुसलमान व्यक्ति कैदी बनाकर छल-बल से परिवर्तन कराए गए हिन्दू का वंशज है।
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