फिल्मी दुनिया को पुरनूर करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा के सितारे राजनीति में क्यों हो गए गुल ?
आदमी के सितारे कब किस क्षेत्र में चमक उठें और किस क्षेत्र में जाकर गुल हो जाएं ,कुछ कहा नहीं जा सकता । यह बात फिल्मी जगत को अपनी उपस्थिति से पुरनूर करने वाले और पटना की धरती से चलकर भारत की राजनीति के चंद हसीन चेहरों में सम्मिलित होकर बिहार का नाम रोशन करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा पर तो पूर्णतया लागू होती है।
आजकल सिन्हा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (2019) के सदस्य हैं। राजेश खन्ना के खिलाफ एक उपचुनाव में चुनाव लड़कर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। सिन्हा ने एक साक्षात्कार में उद्धृत किया कि उनके जीवन में उनका सबसे बड़ा अफसोस उनके दोस्त खन्ना के खिलाफ चुनाव लड़ना रहा था। खन्ना ने 25,000 वोटों से सिन्हा को हराकर चुनाव जीते लेकिन हालांकि, उन्हें चोट लगी और उसके बाद सिन्हा से कभी बात नहीं की। सिन्हा ने खन्ना के साथ अपनी दोस्ती का पुनर्निर्माण करने की कोशिश की, हालांकि 2012 में खन्ना की मौत तक ऐसा कभी नहीं हुआ।
उन्होंने भारतीय आम चुनाव, २००९ के दौरान बिहार में पटना साहिब लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र जीता। उन्होंने एक और सिनेमा सेलिब्रिटी शेखर सुमन को हराया। कुल 552,293 वोटों में से मतदान में सिन्हा को 316,472 वोट मिले। उन्होंने बाद के भारतीय आम चुनाव, 2014 में भी सीट जीती।
वह 13 वीं लोक सभा से तीसरे वाजपेयी मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री बने, जिसमें दो पोर्टफोलियो, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग (जनवरी 2003-मई 2004) और शिपिंग विभाग (अगस्त 2004) शामिल थे। मई 2006 तक, उन्हें बीजेपी संस्कृति और कला विभाग के प्रमुख नियुक्त किया गया था।
जन्म: 15 जुलाई, 1946 को बिहार की राजधानी पटना में जन्मे शत्रुघ्न सिन्हा भारतवर्ष के फिल्मी जगत की नामचीन हस्तियों में से एक हैं , इस क्षेत्र में उन्होंने बिहार का नाम रोशन किया है।
73 वर्षीय श्री सिन्हा अपनी साफगोई के लिए जाने जाते हैं । इसलिए बिहार की जनता को उन पर न केवल नाज है बल्कि अभी भी बहुत कुछ उम्मीदें हैं । उनका नाम बिहार की राजनीति में एक समय मुख्यमंत्री पद के लिए बड़ी गंभीरता से चला था ।लोग अभी भी उनके भीतर एक छुपा हुआ ऐसा राजनेता देखते हैं जिसमें भविष्य की बहुत सारी संभावनाएं छुपी हैं। उनके समर्थकों का कहना है कि या तो श्री सिन्हा अपनी पूर्ण प्रतिभा को राजनीतिक क्षेत्र में निखरने का स्वयं ही मौका नहीं दे रहे हैं या फिर वह किन्हीं कारणों से अपने आप को असमर्थ पा रहे हैं। परंतु इन सबके उपरांत भी प्रदेश की जनता का एक बहुत बड़ा तबका उनसे प्यार करता है । अब देखना यह है कि श्री सिन्हा अपने जीवन के इस पड़ाव पर आकर भी क्या कोई गुल खिला सकते हैं या अपनी राजनीति के आगोश में ही गुम रह जाना पसंद करेंगे ?