राजस्थान की रानी – राठी गाय

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अधिकांश पशुपालक ,गौपालन प्रेमी की यह स्वभाविक हार्दिक इच्छा होती है उसका गोवंश बीमार ना पड़े कम खाकर अधिक तथा लंबे समय तक दूध दे| प्रत्येक मौसम जलवायु परीक्षेत्र के अनुकूल हो |

दूध की गुणवत्ता भी बेहतरीन हो… विदेशी गोवंश एचएफ जर्सी नस्ल की गाय तो सात जन्मों में भी इस शर्त को पूरा नहीं कर सकती | मुकाबले में टिकती है भारतीय देसी गोवंश की नस्लें साहिवाल राठी गिर थारपारकर सिंधी हरियाणा आदि आदि |

इनमें भी राठी नस्ल की देसी गाय ही है जो एक पशुपालक की पूरी इच्छाओं को पूर्ण करती है| राठी नस्ल की उत्पत्ति भारतीय देसी दुधारू गायों की तीन नस्लों के सम्मिश्रण से हुई है जिनमें साहिवाल थारपारकर सिंधी शामिल है…. राठी गाय बहुत कम खा कर 26 लीटर तक दूध देती है… 2 डिग्री सेल्सियस से लेकर 52 डिग्री सेल्सियस तक यह मौसमी परिवर्तन को सह लेती है| 10 महीने तक दूध देती है… स्वभाव से शांत होती है|

राजस्थान थार का श्रीगंगानगर हनुमानगढ़ बीकानेर ट्रायंगल इसका होम ट्रेक्ट है…. राजस्थान , मरुस्थल उन इलाकों में पाई जाती है जहां औसत 200 एमएम से भी कम वर्षा होती है |गरम धूल भरी आंधियां चलती है | जहां पशुओं को हरी घास केवल वर्षा ऋतु के दौरान ही मिल पाती है… चारा पानी के अभाव में यह बहुत कम खा कर मरुस्थल में इंसान को मरने नहीं देती… भगवान यदि वहां के निवासियों को इस गोवंश की सौगात नहीं देता तो वहां जीवन यापन दूभर हो जाता|

यह गाय शारीरिक संरचना में एकदम साहिवाल नस्ल की हम रूप है फिर भी उल्लेखनीय पहचान में अंतर है| इसकी पूछ साहीवाल से अधिक बड़ी तथा नाभी अधिक लटकी हुई होती है| दूध एकदम गाढ़ा होता है,जैसा खिलाएंगे वैसा ही प्रभाव इसके दूध पर पड़ता है | हम पिछले 3 वर्षों से इसका पालन कर रहे हैं ,अभी हाल फिलहाल कुछ दिन पूर्व बाड़मेर वाया फरीदाबाद से यह गाय खरीदी है|

अन्य देसी गोवंश साहिवाल गीर से यह आधी कीमतों में मिल जाती है… 20 से 40 हजार की कीमत में आपको 10 से लेकर 18 लीटर दूध देने वाली राठी गाय मिल जाती है |

बात इसके कलर पेटर्न की करें तो यह सुनहरे भूरे रंग पर सफेद धब्बेदार या पूरी तरह भूरी या काले रंग में भी पाई जाती है ,यह सुर्ख लाल रंग में भी पाई जाती है|

पश्चिमी राजस्थान की राठ जनजाति( मुस्लिम राजपूत) तथा हजारों वर्षों से जन्मजात निश्चल गौ प्रेमी गुर्जर पशु पालकों के गोवंश संरक्षण संवर्धन की संस्कृति के कारण इसकी नस्ल सुरक्षित है| ऐसा ही उदाहरण पंजाब के मुस्लिम गुर्जरों ने साहीवाल गाय नस्ल को बचाकर किया है.. यह कड़वी सच्चाई है मध्यकाल में धर्मांतरण सभी योद्धा समाजों का हुआ.. लेकिन गुर्जर समाज ने गौ माता के प्रति अपने प्रेम को नहीं छोड़ा |
केंद्र राज्य किसी भी सरकारों का इसमें कोई योगदान नहीं है सरकारें तो देशी गोवंश की अवहेलना उपेक्षा ही करती है |

आर्य सागर खारी ✍✍✍

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