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कविता

कविता – समस्या


ओ३म्
सर्वेभ्यो नमः
*समस्या* सबके जीवन में आती हैं,
किसी के में कम, किसी के में ज्यादा।
कई रोते हैं कम, तो कोई रोते हैं ज्यादा।
जो रोते हैं अधिक जिस बात पर,
वह तो समस्या ही नहीं थी।
पता चला बाद में अम्मा ने,
बाबा को एक अंतिम रोटी घी बूरे की शुगर के कारण नहीं दी थी।
अरे देखो महा पुरुषों को,
जो औरों की समस्या को,
अपने ऊपर ओढ़ लेते हैं।
स्वयं को फंसा मुश्किल में,
औरों को प्यार की लोढ़ देते हैं।
समझने की बात है कोई भूखा भी खुश रहता है।
और कोई जिखा (पेटभरा) भी दुखी रहता है।
कोई गुदड़ी में भी खुशी से सोता है,
किसी को गद्दे पर भी नींद नहीं आती।
इसलिये मित्रो समस्या तो स्वयं की कमाई है।
जो कमजोर मन मस्तिष्क की उपजाई है,
इस पर विचार मत करो।
विचार समाधान पर करो,
जो तंदुरुस्त दिल खुशियों की रजाई है, खुशियों की तुरपाई है।।
-आचार्या विमलेश बंसल आर्या
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