हमारे हिन्दू धर्मग्रंथों में नेत्रदान को महादान की संज्ञा दी गई है। आप कल्पना करें कि कोई व्यक्ति आँखों के अभाव में यदि इस दुनिया की ख़ूबसूरती को नहीं देख पाता है तो उसका इस पृथ्वी पर जन्म ही अधूरा कहा जाएगा। अतः नेत्रदान की महत्ता को समझते हुए, प्रत्येक वर्ष विश्व के विभिन्न देशों में 10 जून को ‘विश्व दृष्टिदान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इसके जरिए लोगों में नेत्रदान करने की जागरूकता फैलाई जाती है। विश्व दृष्टिदान दिवस का उद्देश्य, नेत्रदान के महत्व के बारे में व्यापक पैमाने पर जन जागरूकता पैदा करना है तथा लोगों को मृत्यु के बाद अपनी आँखें दान करने की शपथ लेने के लिए प्रेरित करना है।
आँखों का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्व है, इससे हम भलीभांति परिचित हैं। संसार की प्रत्येक वस्तु का परिचय हमें हमारी आँखों के माध्यम से मिलता है। साथ ही, इस रंगबिरंगी दुनिया का आनंद भी हम अपनी इन्हीं आँखों के माध्यम से ही उठा पाते हैं। बिना आँखों के तो रंगों की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। परंतु, वर्तमान समय में बदलती जीवन शैली, अनियमित दिनचर्या, प्रदूषण एवं मानसिक तनाव की अधिकता के कारण अधिकांश लोग आँखों से जुड़ी समस्याओं से ग्रसित होने लगे हैं।
विश्व शान्ति की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ की इकाई विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कॉर्निया की बीमारियां (कार्निया की क्षति, जो कि आँखों की अगली परत हैं), मोतियाबिंद और ग्लूकोमा के बाद, दृष्टि हानि और अंधापन के प्रमुख कारणों में से एक हैं।
दुनियां भर में नेत्रहीनों की संख्या काफी अधिक है जिनमें से कई तो जन्मजात ही नेत्रहीन होते हैं। ब्लड केंसर जैसी बीमारियों के कारण भी कई अभागे अपनी आँखें गवाँ बैठते हैं। हम सभी लोग आंखों का महत्व समझते हैं और इसीलिए इसकी सुरक्षा भी हम बड़े पैमाने पर करते हैं। परंतु, हममें से बहुत कम लोग ऐसे हैं जो अपने अलावा दूसरों की आँखों के बारे में भी सोचते हैं। जी हाँ, यहाँ हमारा इशारा नेत्रदान की ओर ही है। हमारी आंखें न सिर्फ हमें रोशनी दे सकती हैं बल्कि नेत्रदान करने से हमारे मरने के बाद भी वह किसी और की जिंदगी से भी अंधेरा हटा सकती हैं। लेकिन जब बात नेत्रदान की होती है तो काफी लोग अंधविश्वास के कारण पीछे हट जाते हैं। इस अंधविश्वास की वजह से दुनियाँ के कई नेत्रहीन लोगों के जीवन में अँधेरा बना रहता है। आईए, नेत्रदान के सम्बंध में प्रचलित कुछ भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास करते हैं।
नेत्र दान को लेकर हमारे समाज में कई प्रकार की ग़लत फ़हमियाँ प्रचलित हैं जैसे – नेत्रदान करने से अगले जन्म में नेत्रहीन पैदा होंगे, धर्म नेत्रदान की अनुमति नहीं देता है, नेत्रदान से शरीर विकृत हो जाता है, नेत्रदान के दौरान मृतक की पूरी आँखे निकाल ली जाती हैं और आँखों की जगह ग़ड्डे बन जाते हैं, आदि आदि। इस तरह की समस्त भ्रांतियों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं पाया गया है। नेत्रदान की शल्य क्रिया से मृतक का चेहरा देखने में बुरा नहीं लगता है। नेत्रबैंक का कार्यदल मृतक के चेहरे को बिना बिगाड़े बड़ी सावधानी से आँखों को निकालता है अर्थात मृतक की काया अशोभनीय नहीं बनती है।
हाँ, जिन व्यक्तियों में निम्न प्रकार के रोग पाए जाते हैं उन्हें नेत्रदान करने से मना किया जाता है। यदि किसी को, एड्स, हैपेटैटिस, पीलिया, ब्लड केन्सर, रेबीज (कुत्ते का काटा), सेप्टीसिमिया, गैंगरीन, ब्रेन टयूमर, आँख के आगे की काली पुतली (कार्निया) की ख़राबी हो, अथवा ज़हर आदि से मृत्यु हुई हो या इसी प्रकार के कोई अन्य संक्रामक रोग हों, तो ये व्यक्ति मृत्यु उपरांत नेत्रदान नहीं कर सकते हैं। परंतु, जिन रोगियों ने मोतियाबिंद, कालापानी या अन्य आँखों का आपरेशन करवाया है, वे नेत्रदान कर सकते हैं। साथ ही, नज़र का चश्मा पहनने वाले, मधुमेह (डायबिटीज़), अस्थमा, उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) और अन्य शारीरिक विकारों जैसे साँस फूलना, हृदय रोग, क्षय रोग आदि के रोगी भी नेत्र दान कर सकते हैं।
शास्त्रों में दिए गए मतानुसार, नेत्रदान कर आप पुण्य अर्जित कर सकते हैं। मृत्यु के उपरांत आप दो दृष्टिहीन व्यक्तियों को ज्योति प्रदान कर सकते हैं। मृत्यु के पश्चात 6 घंटे तक नेत्रदान किया जा सकता है। इस अवधि के बाद आँख के आगे की पुतली ख़राब हो जाती है, जिससे इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है। अतः मृत्यु उपरांत नेत्रबैंक से कार्यदल के पहुँचने तक मृतक नेत्र दाता की आँखों को बंद रखें एवं बंद आँखों पर गीली रुई या कपड़ा रख दें। साथ ही सिर के नीचे तकिया रखें तथा पंखे इत्यादि बंद कर दें। इससे कार्निया को नम रखने में मदद मिलेगी। अतः इस मामले में अपने नज़दीकी नेत्र बैंक के कार्यदल को सूचना देने में ज़रा भी समय नष्ट नहीं किया जाना चाहिए एवं उन्हें अतिशीघ्र सूचना दी जानी चाहिए। देश के विभिन्न शहरों एवं ग्रामीण इलाक़ों में मृत्यु उपरांत आपके निवास से ही नेत्र एकत्रित करने की निःशुल्क सुविधा उपलब्ध रहती है। अतः आप नेत्रदान को अपने परिवार की परम्परा बनाएँ।
नेत्रदान की प्रक्रिया अत्यंत सरल है जो मात्र 15-20 मिनट में ही पूरी हो जाती है। नेत्रदान प्रक्रिया के कारण अंतिम संस्कार करने में किसी भी प्रकार का विलम्ब नहीं होता है। नेत्रदान एक महादान के साथ-साथ गुप्तदान भी है, क्योंकि दान देने वाले परिवार एवं लेने वाले व्यक्ति को एक दूसरे की जानकारी नहीं दी जाती है। इस जानकारी को पूर्णतः गोपनीय रखा जाता है। नेत्रदान के लिए कोई आयु सीमा भी निर्धारित नहीं है, किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है।
नेत्रदान कराने में आप भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। यदि आपके परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो अपने नज़दीक के नेत्रबैंक के कार्यदल को बुलाना याद रखें। आपके परिवार के सदस्य ने नेत्रदान करने की वचनबद्धता दी है या नहीं, इस बात की परवाह किए बग़ैर भी नेत्रदान किया जा सकता है, यह मानवीय उपकार है। यदि आपकी दोस्ती के दायरे में किसी की मृत्यु हो जाती है, तो ऐसी स्थिति में मृतक के परिवार को मृत व्यक्ति की आँखें दान करने के लिए प्रेरित करें या फिर नज़दीकी नेत्रबैंक के परामर्शदाता को बुलाएँ।
वरिष्ठ नागरिक भी अपने नेत्रदान का संकल्प-पत्र भरकर परिवार को इस शानदार परम्परा की प्रेरणा दे सकते हैं। आपके जन्मदिन या शादी की गोल्डन जुबली पर भरा गया नेत्र दान का संकल्प-पत्र एक यादगार दस्तावेज़ बन जाएगा जो सारे समाज को प्रेरित करेगा।
नेत्रदान के माध्यम से आपकी नश्वर काया अजर अमर बन जाएगी। आप माटी में मिलकर भी जीवित रहेंगे एवं परोपकार में क्रियाशील बने रहेंगे। परिजन, मित्र एवं पड़ोसी की मृत्यु का समाचार पाते ही तुरंत उनके घर पहुँचकर सांत्वना देते हुए वरिष्ठ होने के नाते मृतक के परिजनों को मृतक के नेत्रदान करने हेतु प्रेरित करें।
समाज में शिक्षक भी इस महायज्ञ में अपनी महती भूमिका निभा सकते है। चूँकि शिक्षक विद्यादान जैसे महान कार्य से जुड़े हुए हैं। अतः शिक्षक वर्ग का एक छोटा सा प्रयास भी नेत्रदान के संदेश को समाज में फैलाने में अहम भूमिका निभा सकता है। शिक्षक विद्यार्थियों को नेत्र दान के बारे में समझा कर देश की भावी पीढ़ी को भी इस महान कार्य के प्रति जागरूक बना सकते हैं ताकि वे स्वयं भी नेत्र दान करें और दूसरों को भी प्रेरित करें।
धर्म प्रचारक भी नेत्रदान के महा अनुषठान में अपनी अहम भूमिका अदा कर सकते हैं। किसी माँगलिक कार्यक्रम या किसी श्रद्धांजलि सभा में प्रवचन देते हुए नेत्रदान के विषय में चर्चा की जा सकती है। लोग धर्म प्रचारकों की बातों से प्रेरित होते हैं, उनकी बात मानते हैं। अतः धर्म प्रचारकों द्वारा नेत्रदान करने एवं नेत्रदान करवाने में अपनी सशक्त भूमिका निभाई जा सकती है।
मंगलमूर्ति आचार्य गुरुवर स्वामी श्री टेंऊँराम जी महाराज की परम कृपा एवं पूज्य गुरुवर स्वामी श्री भगत प्रकाश जी महाराज के स्नेहाशीष से “स्वामी शांति प्रकाश धर्मार्थ चिकित्सालय” ग्वालियर विगत 35 वर्षों से नेत्र व्याधियों से पीड़ित निर्धन व जरूरतमंद व्यक्तियों की बिना किसी लाभ के निःस्वार्थ सेवा में सतत समर्पित है। यहाँ जाति, वर्ग के भेंदों से परे सभी असहाय, निर्धन व्यक्तियों को आवश्यक नेत्र चिकित्सा निः शुल्क उपलब्ध करायी जाती है। यह पावन मानवीय अनुषठान पूज्य आचार्य श्री के शुचि संकल्प एवं आशीष से ही सम्भव हो पाया है।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।