मनुष्य की योनि प्राप्त करना जितना दुर्लभ है , उससे भी कठिन मनुष्य बनना है। परंतु मनुर्भव का वेद का आदेश है। वेद के आदेश का पालन करना मनुष्य का प्रथम एवं पावन उत्तरदायित्व है। इसलिए मनुष्य बनने के लिए उपरोक्त सभी सिद्धांतों व नियमों का पालन करते हुए निम्नलिखित बातों का भी ध्यान रखना होगा। तब ही मनुष्य मनुष्य बन सकता है। और जिस दिन मनुष्य मनुष्य बन जाएगा उसकी मुक्ति का मार्ग स्वत: प्रशस्त हो जाएगा।
मनुष्य बनने के लिए मनोभाव शुभम, शुभ्र, श्वेत, सर्व मंगलकारी हों। एकाग्रता के साथ इंद्रिय संयम आत्मनिरीक्षण करते हुए योग का अर्थ भली-भांति आत्म कल्याण हेतु समझें । आस्था और अनास्था में अंतर करें। सच्चा ज्ञान , यश और सफलता शाश्वत आनंद कैसे प्राप्त हो सकता है ? इस पर विचार करें। अपना मन शुभचिंतक में लगा हो । दिखावे से दूर रहें। वर्तमान को प्रतिक्षण संभालें । कर्तव्य पालन में संयम नियम पर विशेष बल देना चाहिए ।
वास्तविक शिक्षा क्या है ? जीवन का सौंदर्य कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? जीवन में सुख और दुख का क्या संबंध है ? सचित्र की स्थिति क्या होती है ? राष्ट्रप्रेम मातृभूमि के प्रति क्या हैं ? ईश्वर की शरण में शरणागति से जीवन में क्या लाभ होता है ? – दूसरों की पीड़ा समझने के लिए मानवीय रिश्ते पर ध्यान पूर्वक विचार करना चाहिए । धर्म का अनुसरण करते हुए परमानंद को प्राप्त करना चाहिए । यह शरीर किस लिए मिला ? कर्म विज्ञान का इसके साथ क्या संबंध है ? इस पर अवश्य ही ध्यान करते हुए जीवन जीना चाहिए ।
शरीर कितने प्रकार के हैं ,? सूक्ष्म शरीर , स्थूल शरीर , आदि क्या हैं ? जीवन में संघर्ष करते हुए शाश्वत आनंद की प्राप्ति करनी चाहिए । अपनी सोच को हमेशा मानव जीवन को सफल बनाने के लिए संकल्प शक्ति और आत्मविश्वास के साथ व्यवहार करना चाहिए । बड़ों के साथ अभिवादनशीलता पूर्वक व्यवहार करते रहना चाहिए। अपने से बड़ों के नेतृत्व में विश्वास रखना चाहिए । कार्य करते समय सामूहिक शक्ति एवं पंचशीलता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जीवन में निराशा नहीं आनी चाहिए । वास्तविक कमाई करते हुए मानव जीवन का अभ्युदय करना चाहिए।
मानव जीवन का अभ्युदय करते हुए मुक्ति का मार्ग खोजना चाहिए। वास्तव में मनुष्य एक भटका हुआ देवता कहा जाता है । उसके अंदर देवत्व निहित है। बस आवश्यकता इतनी है कि वह कब अपने आप को पहचान ले कि वह किन महान उद्देश्यों को लेकर पैदा हुआ है ? और परमपिता परमात्मा ने उसे क्या कहकर यहाँ भेजा है ? हमें अपने जीवन का उद्देश्य पता होना चाहिए और यह प्रयास अपनी ओर से सदा बना रहना चाहिए कि हम उस उद्देश्य की प्राप्ति से पूर्व रुकेंगे नहीं किसी भी परिस्थिति में कहीं झुकेंगे नहीं।
जीवन के ई9सी समर्पण का नाम अध्यात्म है और जब अध्यात्म अपनी आराधना में लीन हो जाता है तो वह अवस्था ही समाधि की अवस्था है । समाधि की अवस्था में जब केवल और केवल प्रभु का आनंद बरसने लगे तो वही अवस्था परमानंद की अवस्था है, और जब परमानंद जीवन और जगत के सारे चक्रों से मुक्त हो जाए तो वही अवस्था मोक्ष की है।
अध्यात्म के माध्यम से ही मनुष्य स्वयं को समझता है जानता है ।अपने जीवन के विषय में यह विचार करता है कि वह किस लिए पृथ्वी पर आया है ? सभी को वह परमपिता परमात्मा की संतान और उसका अंश मानता है।
सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि जहां वृक्ष नहीं होते , जहां हरीतिमा रहित क्षेत्र होता है , वहां रेगिस्तान हो जाते हैं । इसलिए जिस मनुष्य के हृदय में अंतर्जगत में परमात्मा को प्राप्त करने की हरीतिमा रूपी इच्छा नहीं होगी , वहीं पर हृदय रेगिस्तान बन जाएगा , भावना शून्य हो जाएगा। भावशून्यता में व्यक्ति यंत्रवत अर्थात मशीन की तरह काम करता है। आज के बिजनेसमैन इसी भाव से ग्रस्त होकर अपने सारे कामों को यंत्रवत करते जा रहे हैं । जिससे उनके जीवन में भावशून्यता उत्पन्न हो गई है । इस भावशून्यता ने उनके हृदय की कोमलता , सरसता और सरलता को भंग कर दिया है । जिससे उनका भीतरी जगत अशांत है।
इस अवस्था से मुक्ति पाने के लिए मनुष्य को अपने हृदय को ईश्वर को सौंपना पड़ेगा । जब हम विद्यालय में गुरु के पास जाते हैं तो वहां पर तीन समिधाएं लेकर जाते हैं ।उन तीनों समिधाओं का अर्थ यही होता है कि मैं अपने मन , वचन , कर्म तीनों को आपको सौंपता हूं । मैं अपने स्थूल , सूक्ष्म और कारण तीनों प्रकार के शरीरों को आपको सौंपता हूं । मैं अपने तीनों प्रकार के दुखों को भी तुम्हें सौंपता हूं । मैं पृथ्वी ,अंतरिक्ष और द्युलोक इन तीनों को भी तुम्हें सौंपता हूं अर्थात अपना सर्वस्व समर्पण आपके श्री चरणों में करता हूं । यही भाव ईश्वर के प्रति भक्त के होने चाहिए । वह जब अपने हृदय को उस परमपिता परमेश्वर को इसी भाव से सौंप देता है तो फिर धीरे-धीरे वहां से रेगिस्तान हटने लगता है और सरस भावों की हरियाली दिखाई देने लगती है।
देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन : उगता भारत