भारत से हांगकांग तक चीन का जाल,लेकिन मोदी के आगे एक नहीं चली
अजय कुमार
भारत शांति में विश्वास करता है लेकिन जब उसकी क्षेत्रीय अस्मिता की रक्षा पर संकट आएगा तो वह पूरी दृढ़ता और संकल्प से इसका जवाब देगा। भारत का यह रुख उसके द्वारा चीन से किए गए चार समझौतों में भी स्पष्ट रूप से झलकता है।
जिस देश का नेतृत्व मजबूत होता है, उसको आंख दिखाने की हिम्मत बाहरी ताकतें नहीं जुटा पाती हैं। इस बात का अहसास उस चीन से बेहतर किसको हो सकता है, जिसके सैनिक बार-बार सीमा पार करके भारत में घुस आया करते थे। उसकी सारी हेकड़ी मोदी सरकार ने अपने सख्त रवैये से एक ही झटके में निकाल दी। चीन को मोदी सरकार के सख्त रवैये के चलते अपने सैनिकों को दो किलोमीटर पीछे ले जाने को मजबूर होना पड़ गया। हालांकि एक किलोमीटर भरतीय सेना भी पीछे आई, लेकिन यह महत्वपूर्ण नहीं था। उधर, सीमा पर तनाव के बीच भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना के जमावड़े पर सरकार को विस्तृत रिपोर्ट सौंप दी है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन किस तरह इस क्षेत्र में इतनी बड़ी संख्या में फौजियों को ले आया। इस विस्तृत रिपोर्ट में दौलत बेग ओल्डी और पैंगांग त्सो समेत पूर्वी लद्दाख के सभी महत्वपूर्ण जगहों पर चीनी सेना के जमावड़े का विवरण दिया गया है।
रिपोर्ट में सरकार को उन सभी बिंदुओं से जानकारी दी गई है कि कैसे चीन इतनी तेजी से इतनी बड़ी तादाद में अपनी सैनिकों को इन मोर्चो पर ले आया। मई के पहले सप्ताह में चीन ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपने पांच हजार सैनिक तैनात कर दिए थे। चीन ने अचानक इतनी बड़ी तादाद में सैनिक तैनात करके भारतीय पक्ष को चैंका दिया था। इसके बाद भारत ने भी ऊंचाई पर लड़ाई में प्रशिक्षित अपनी रिजर्व टुकड़ियों को फौरन यहां तैनात किया। ये टुकड़ियां लद्दाख में मौजूद सैनिकों के अतिरिक्त हैं। मई के पहले सप्ताह से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करके बैठे चीनी सैनिकों की स्थिति में धरातल पर कोई बदलाव नहीं दिख रहा है। कई जगहों पर चीनी और भारतीय सैनिक आमने-सामने हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि चीनी सैनिक भारतीय क्षेत्र में और अंदर कब्जा जमाना चाहते थे लेकिन भारतीय सेना के समय पर सक्रिय होने से चीन का यह मंसूबा पूरा नहीं हो पाया। शनिवार को होने जा रही दोनों देशों के बीच लेफ्टीनेंट जनरल स्तर की होने जा रही बैठक से भारत और चीन इस स्थिति में बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं। इस बीच भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी सीमा को लेकर कोई समझौता नहीं करेगा। चीनी सेना लद्दाख में भारतीय सेना को मजबूत होते देख वास्तविक नियंत्रण रेखा पर विकास के प्रोजेक्टों में रोड़े अटका रही है। ऐसे में उसने गलवन घाटी, पैंगोंग त्सो समेत तीन जगहों पर आक्रामक तेवर दिखाते हुए घुसपैठ की थी। इसके बाद भारतीय सेना ने भी चीन को कड़े तेवर दिखकर बाज आने का स्पष्ट संकेत दिया है।
भारत शांति में विश्वास करता है लेकिन जब उसकी क्षेत्रीय अस्मिता की रक्षा पर संकट आएगा तो वह पूरी दृढ़ता और संकल्प से इसका जवाब देगा। भारत का यह रुख उसके द्वारा चीन से किए गए चार समझौतों में भी झलकता है। भारत ने सबसे पहले 1993 और फिर 1996 में समझौता किया है। इसके बाद 2005 में विश्वास बहाली उपाय समझौता (सीबीएम) किया गया। इसके बाद 2013 में सीमा समझौता किया गया। इन समझौतों के बाद से सीमा विवाद सुलझाने के लिए एक तंत्र विकसित हुआ है। यह तंत्र अभी भी काफी कारगर है।
लब्बोलुआब यह है कि मोदी सरकार के सख्त रवैये के चलते चीन अपनी हेकड़ी छोड़कर बातचीत की टेबल पर बैठ कर भारत से सीमा विवाद सुलझाने को तैयार हो गया है। असल में चीन लम्बे समय से खासकर 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद भारत को लेकर काफी संवेदनशील हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जिस तरह से पूरी दुनिया में स्वीकार्यता बढ़ रही है उससे चीन बेचैन हो उठा है। भले ही चीन के राष्ट्रपति ने तमाम मौकों पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ दोस्ती का दंभ भरने में संकोच नहीं किया हो, लेकिन भारत के प्रति चीन का नजरिया न पहले बदला था, न अब कोई बदलाव देखने को मिल रहा है। वह लगातार अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम आदि राज्यों सहित भारत के कई हिस्सों में अपनी दावेदारी जताता रहा है। मोदी के सख्त रवैये के बाद चीन सीमाओं पर दावेदारी के मामले में तो बैकफुट पर नजर आ ही रहा है, वहीं मोदी की ‘मेड इन इंडिया’, ‘लोकल के लिए वोकल’ जैसी सोच से भी चीन के हितों का नुकसान हो रहा है। रही सही कसर कोराना को लेकर चीन की मक्कारी ने पूरी कर दी।
दरअसल, कोविड-19 वायरस की जानकारी विश्व के अन्य देशों से छिपाने के चलते चीन पूरी दुनिया में शर्मसार हो रहा है। विश्व बिरादरी के बीच चीन पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गया है। कई देशों की सरकारें तो चीन से नाराज हैं ही, चीन में कारोबार कर रही विदेशी कम्पनियों का भी चीन से विश्वास उठ गया है। अगर चीन समय रहते दुनिया को कोविड-19 से अलर्ट कर देता तो लाखों लोगों की जान नहीं जाती और दुनिया भर को आर्थिक मंदी भी नहीं झेलनी पड़ती, लेकिन उसने जानबूझ कर यह बात दुनिया से छिपा कर रखी। तमाम देश चीन के इस कृत्य को मानवता के खिलाफ षड्यंत्र बता रहे हैं। कुछ देशों ने तो चीन पर मानहानि का भी दावा ठोंक दिया है। उधर, चीन अपने कृत्य पर शर्मसार होने की बजाए हांगकांग से लेकर हिन्दुस्तान तक में अवांछनीय हरकतें करने में गला है। चीन दुनिया का ध्यान कोरोना वायरस के चलते उस पर लगने वाले आरोपों से हटाने के लिए अनाप-शनाप हरकतें कर रहा है। चीन स्वयं तो भारत के साथ सीमा विवाद बढ़ा ही रहा है, नेपाल को भी वह भारत के खिलाफ उकसा रहा है। नेपाल में भी चीन की ही तरह कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है। नेपाल ने भी चीन के पदचिन्हों पर चलते हुए भारत के कुछ हिस्सों को अपने नक्शे में शामिल कर लिया है। चीन के साथ भारत के संबंध लगातार खराब हो रहे हैं यह बात केन्द्र की मोदी सरकार भी स्वीकार कर रही है।
बहरहाल, कोविड-19 को लेकर चीन के रवैये के चलते चीन में कारोबार कर रहीं तमाम विदेशी कम्पनियों ने वहां से कारोबार समेटना शुरू कर दिया है। चीन से पलायन करने वाले कारोबारी अन्य देशों में नया ठिकाना तलाश रहे हैं। इन कारोबारियों को भारत लुभाने में लगा है। इससे चीन जल-भुन गया है। बात यहीं तक सीमित नहीं है। चीन को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आम जनता से किया जाने वाला आग्रह ‘स्वदेशी अपनाओं’ और ‘लोकल के लिए वोकल’ होने का नारा भी रास नहीं आ रहा है। चीन को लग रहा है कि मोदी के सख्त तेवरों के चलते उसे (चीन) भारत में कारोबार समेटना पड़ सकता है। चीन के लिए और एक समस्या है उसका भारत के साथ लम्बे समय से चला आ रहा सीमा विवाद। जब तक केन्द्र में गैर भाजपा सरकारें सत्तारुढ़ रहीं तब तक चीन को भारतीय सीमा के इर्दगिर्द मंडराने में कोई समस्या भी नहीं आती थी, लेकिन मोदी सरकार चीन को हर मोर्चे पर मुंह तोड़ जवाब दे रही है। चीन ने सीमा पर हलचल बढ़ाई तो मोदी ने उसे करारा जवाब देने में देरी नहीं की। भारत ने भी सीमा पर अपनी सेना बढ़ा दी। इसी के बाद चीन के तेवर ढीले पड़ गए। कुल मिलाकर मोदी सरकार की कूटनीति और सैन्य रणनीति के चलते चीन को घुटने टेंकने को मजबूर होना पड़ गया, अन्यथा तो यहां तक अटकलें लगने लगी थीं कि चीन भारत के साथ युद्ध दोहरा सकता है।