किसानों को नहीं बल्कि कॉरपोरेट को मिलेगा कृषि सुधार अधिनियम का फायदा : डॉक्टर त्रिपाठी
★ बगैर किसान संगठनों की सलाह से आपाधापी में तैयार किया गया अध्यादेश
★ कोविड19 की वजह से किसानों को चाहिए तात्कालिक राहत
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राकेश छोकर / नई दिल्ली
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कोविड 19 महामारी की वजह से देश की पूरी अर्थव्यवस्था जिस प्रकार ठप हुई ,उससे उबरने के लिए सरकार ताबड़तोड़ फैसले कर रही है। कुछ फैसले निश्चित तौर पर स्वागत योग्य हैं तो कुछ फैसले बिल्कुल व्यवहारिक नहीं माने जा रहे है। अभी हाल ही में तीन जून को केंद्र सरकार ने कृषि सुधार के नाम पर तीन अध्यादेश पारित किये और इसे तत्काल प्रभाव से लागू भी कर दिया। अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के अनुसार तीनों अध्यादेश जो कि कृषि में सुधार के लिए किये जाने का दावा करते हुए पारित किया गया, यह एक प्रकार से किसानों के हितों के प्रतिकूल है।
इससे कृषि तथा खाद्यान्न बाजार पर कारपोरेट का एकाधिकार हो जाएगा।यह बात अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने ब्यूरो चीफ राकेश छोकर के साथ इन अध्यादेशों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कही।डॉ त्रिपाठी ने कहा कि किसानों की भलाई के नाम पर कृषि में उपयोग में आने वाली 27 रासायनिक दवाइयों पर प्रतिबंधित लगाने तथा विद्युत सुधार अधिनियम 2020 भी लागू हो रहे हैं। महत्वपूर्ण बात है कि किसी अपरिहार्य परिस्थिति में ही अध्यादेश लाए जाने की परंपरा रही है। इन भविष्योन्मुखी दूरगामी सुधारों का दावा करने वाले सुधार अधिनियमों को् किसान संगठनों से बिना कोई राय मशवरा किए आपाधापी में पारित किया गया। यह गतिविधि एक प्रकार से किसानों के दिलों में सरकार की नीयत के प्रति शंका पैदा करता है। अगर आप तीनों अध्यादेशों के प्रावधानों पर नजर दौड़ाएं तो कई ऐसी चीजें है जो किसानों के हित में नहीं है, फिर यह कृषि में सुधार करने वाला अध्यादेश कैसे हो सकता है। इन्हीं में से एक मुद्दा है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का. आईफा ने पहले भी सरकार को सुझाव दिया था कि हमें यह अनुभवसिद्ध मान्यता नहीं भूलना चाहिए कि अनुबंध कैसे भी हों पर अंततः वे सशक्त पक्ष के हितों की ही रक्षा करते हैं और इधर हमारे किसान हों या किसान समूह ,हर लिहाज से ये अभी भी बहुत कमजोर हैं। अनुबंध खेती में इनके हितों की तात्कालिक तथा दीर्घकालिक सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाना पहली शर्त होनी चाहिए थी।
डॉ त्रिपाठी ने कहा कि आश्चर्यजनक रूप से खेती किसानी से संबंधित इन सुधारों को लागू करने के पूर्व सरकार ने किसान संगठनों के बजाय उन व्यापारिक संगठनों से इन अधिनियमों को लेकर राय मशविरा किया है, जिनका खेती या कृषि से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए आज ज्यादातर किसान संगठन इन सुधारों के बारे में यही समझ पा रहे हैं कि यह सुधार तथा अधिनियम दरअसल पूरी तरह से कारपोरेट के पक्ष में हीं गढ़े गए हैं, तथा सरकार देश की खाद्यान्नों के बाजार पर कारपोरेट का एकाधिकार देने जा रही है।
जिस तरह सरकार ने बीस लाख करोड़ के महा पैकेज में से किसानों की भलसारे किसान संगठन तथा किसान समुदाय स्तब्ध है। सिर्फ कागजी योजनाएं ना बनाएं और ना ही इस तरह के आत्मघाती अधिनियम बनाकर किसानों हाथ पैर बांधकर कारपोरेट के सामने परोसने की कोशिश करें।