दिनांक 25 दिसंबर 2015
स्थान : राजस्थान के राजसमंद जिले का कुंभलगढ़ दुर्ग
समय – शाम के 7:00 बज रहे हैं। लाइट एंड शो का कार्यक्रम सपरिवार देखने के लिए मैं पहुंच गया हूं।
कुंभलगढ़ का दुर्ग अरावली पर्वत श्रंखला के मध्य महाराणा कुंभा द्वारा सन 1500 में निर्माण प्रारंभ किया गया था। लेकिन 15 वर्ष में बन करके तैयार हुआ था ।जिसको 2013 में विश्व धरोहर में शामिल किया गया है ।महाराणा कुंभा ने ऊंची पहाड़ियों पर इस किले का निर्माण कराया था ।पहाड़ियों की ऊंचाई पर 15 फीट चौड़ी और 36 किलोमीटर लंबी दीवार का निर्माण कराया गया था ।चीन की दीवार के बाद इतिहास में दूसरी सबसे लंबी दीवार है। जिस दीवार पर एक साथ 8 घोड़े बराबर – बराबर चल सकते थे। महाराणा उदय सिंह का लालन-पालन गुजरी पन्ना धाय ने चोरी छिपे इसी किले में किया था। इसका मुख्य दरवाजा बहुत ही ऊंचा बहुत विशाल और पहाड़ियों से घुमावदार घाटियों में घिरा हुआ है ।गेट के पास पहुंचने पर ही मालूम पड़ता है कि यह उसका मुख्य दरवाजा है। यह दुर्ग एक बार के अतिरिक्त हमेशा अजेय रहा है।
इसी किले में जब मैं लाइट एंड सों का कार्यक्रम देख रहा था तो एक दृश्य आता है । किले के अंदर एक मंदिर है ।मंदिर में महाराणा कुंभा पूजा कर रहे होते हैं ,और उसी समय उनका पुत्र उदा वहां पहुंच जाता है। महाराणा कुंभा ने पूछा कि उदा तुम यहां क्यों , पुत्र ?
ऊदा ने कहा कि – ‘मुझे राज्य कब मिलेगा?’
महाराणा कुंभा ने कहा कि – ‘अभी तो मैं हूं।’
उदा ने कहा – ‘जब तुम हो तभी तो मैं नहीं ।इसलिए तुम ही नहीं रहोगे तो मैं राजा बनूंगा।’
एकदम ‘खच’ की आवाज आती है । उधर से महाराणा कुंभा के कराहने की आवाज आती है।
अर्थात ऊदा ने अपने पिता महाराणा कुंभा के पेट में कृपाण घोंप दी ,और उनकी हत्या कर दी।
जब यह दृश्य उसमें आया तो मुझे देख कर बहुत दुख हुआ ।क्योंकि मैं यह कभी सोचा करता था कि ऐसा तो केवल मुस्लिम लोग करते हैं , अपने पिता की और अपने भाइयों की हत्या करके गद्दी पर बैठते हैं । हमारे देश में ऐसा कभी नहीं हुआ। मुझे अपनी अल्पज्ञता पर शर्मिंदा होना पड़ा। पहला उदाहरण देखा – जहां महाराणा कुंभा जैसे वीर पुरुष की हत्या उसके ही पुत्र उदा ने मात्र इस वजह से कर दी कि मैं राजा बनूं । यह देखकर मेरा अपना गुमान टूट गया।
9 मई 1540 को वीर महाराणा प्रताप का जन्म इसी कुंभलगढ़ किले में एक कमरे के अंदर हुआ था।
महाराणा प्रताप के पिता का नाम उदय सिंह तथा माता का नाम जयवंता बाई था। जयवंता बाई पाली के ठाकुर अखेराज की पुत्री थी। बचपन में महाराणा प्रताप को लोग प्यार से कीका कहकर पुकारते थे।
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक सन 1572 में गोगुंदा के किले में हुआ था।
गोगुंदा के किले के विषय में
बहुत कम लोगों को जानकारी है कि महाराणा प्रताप के जीवन का बहुत महत्वपूर्ण पहलू गोगुंदा के किले से जुड़ा हुआ है।
वास्तव में चित्तौड़गढ़ के किले को असुरक्षित घोषित करने के बाद मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह ने उदयपुर की नींव रखी , लेकिन वास्तविक राजधानी गोगुंदा को बनाया। गोगुंदा की भौगोलिक स्थिति अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के बीच में हैं ।यह अरावली पर्वत श्रृंखलाएं किले की प्राचीर जैसी लगती हैं । इसकी ऊंची – ऊंची चोटिया इसके बुर्ज के समान हैं। नदी और नाले गहरी खाईयों का काम करते हैं। जो किसी भी सेना के बाहरी आक्रमण से किले को बचाते हैं ।इसलिए इसमें प्रवेश पाना बहुत ही दुष्कर था ।रास्ते बहुत दुर्गम थे। क्योंकि चारों तरफ से सघन वन था।
गोगुंदा के किले का निर्माण किसने किया ? इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है। परंतु यह कई बार उजड़ा और बसा है जो वहां पर उपस्थित मंदिर और बावड़ी आदि इसकी प्राचीनता की कहानी हमें बताती हैं। लेकिन यह निश्चित है कि यह इतिहास के पृष्ठों पर पहली बार 15वीं शताब्दी में आया। जब मालवा के अंतिम स्वाधीन बाज बहादुर ने 1562 में अकबर से हारने पर मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह के पास गोगुंदा में शरण ली थी ।उस समय गोगुंदा मेवाड़ की राजधानी के रूप में ख्याति प्राप्त कर रहा था।
परंतु सन 1572 में महाराणा उदय सिंह बीमार होकर 28 फरवरी को गोगुंदा में ही 50 वर्ष की अल्पायु में स्वर्ग सिधार गये। यहीं पर उनका स्मारक आज भी जीर्ण – शीर्ण अवस्था में पड़ा हुआ है।
देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन : उगता भारत
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।