प्रस्तुति : देवेंद्र सिंह आर्य
कल एक संदेश नरभक्षी मनुष्यों के विषय में किसी ग्रुप पर पढ़ रहा था।
उसको पढ़ने के बाद मैंने भी एक घटना का उल्लेख किया कि दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने एक होटल पर मीट व सोरवा परोसा जाता था। 1 दिन उस शोरवा में एक बच्चे की अंगुली आ गई एक खाने वाले के सामने ।उस पर हंगामा हुआ। f.i.r. हुई। जांच हुई, तो पता पड़ा कि वहां बच्चों का मांस परोसा जाता था। जिसे लोग बहुत दूर से खाने के लिए आते क्योंकि उसको स्वादिष्ट बताते थे।
दूसरी घटना एक महात्मा आनंद स्वामी जी द्वारा अपनी पुस्तक” यह धन किसका है” में लिखा है उसको उल्लेख करना चाहूंगा।
“मैं भी दूसरे देशों में जाता हूं पिछली बार आर्य समाज पटेल नगर में कथा की तो नैरोबी ,युगांडा, मॉरीशस जाने से पहले ।अभी यहां कथा करने आया हूं, तो जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका, दक्षिण अमेरिका जाने से कुछ देर पहले ।परंतु मै रूपए पैसे के लिए तो जाता नहीं ।एक दूसरे ही काम के लिए जाता हूं। किसी से कुछ लेने नहीं सब को कुछ देने के लिए ।परंतु आज तो प्रत्येक आदमी को लेने की चिंता है ।प्रत्येक आदमी को अपने स्वार्थ की अभिलाषा है।
अफ्रीका में एक जाति रहती है ,जो मनुष्य का मांस खाती है। मैं केन्या में था किसंबु के भीतर। वहां मैंने एक सज्जन से कहा मैं उन लोगों को देखना चाहता हूं जो मनुष्य का मांस खाते हैं। वह सज्जन बोले यह तो बहुत कठिन है ।वहां कोई जा नहीं सकता। तभी एक सज्जन मिले जो क्षेत्र में रहते थे ।उन्होंने बताया कि मैं आपको वहां लेता जा सकता हूं ।परंतु पहले अपने अंग्रेज मालिक की अनुमति लेनी होगी ।अनुमति लेकर वह मेरे पास आए। मुझे मनुष्य भक्षियों के क्षेत्र में ले गए ।
एक ऊंचा पहाड़ है। वह चीड़ और देवदार ऊंचे ऊंचे ऊंचे पेड़ों से घिरा जंगल है। जंगल में भी मानव भक्षी जेब की तरह के मकान बनाकर रहते हैं। आधा मकान जमीन के अंदर आधा जमीन के बाहर। मकान में जाना हो तो शरीर का निचला हिस्सा मकान में चला जा ता आधा ऊपर। हम जीप में वहां पहुंचे तो मनुष्य के मांस को खाने वाले लोग अपने मकान से यह समझ कर बाहर आ गए एक नया शिकार आया है। परंतु मेरे साथी ने अपना नाम लेकर बताया कि मैं आया हूं ।तब हंस-हंस कर बातें करने लगे। मेरे साथी ने उन्हें बताया कि मैं कौन हूं। एक प्रतिष्ठितआध्यात्मिक गुरु। उन लोगों की भाषा में ईश्वर को मोंगु कहते हैं। मुझे भी मोंगू कह दिया । मैंने उन लोगों से पूछा कि आपआदमी को क्यों खाते हैं । संसार में दूध है, मक्खन हैं ,फल है, सब्जियां हैं, इन सबके होते हुए मनुष्य का मांस खाने की क्या आवश्यकता है?
वे हंसते हुए बोले दूध, घी, मक्खन ,सब्जियां तो गरीबों का खाना है । फिर इनमें वह स्वाद कहां जो आदमी के मांस में है ।मैंने हंसते हुए पूछा तभी तो मैं इन सज्जन के साथ आया हूं। जिन्हें आप पहचानते हैं। यदि मैं अकेला आता तो आप क्या करते ?वह बोले हम आप को बांधकर एक स्थान पर बिठा देते ।आपके चारों और नाचते। फिर आग जलाकर उस पर एक बड़ा तवा रख देते। जब वह खूब गर्म हो जाता तो आपका सिर काटकर उसके ऊपर रख देते। एक ओर तवे पर आपका सिर ना चता दूसरी ओर हम ना चते। फिर आपके शरीर का मांस काट काट कर हम सब लोगों को बांट देते क्योंकि आप मोंगो हैं ।आध्यात्मिक आदमी हैं। अंत में जब आपकी हड्डियों केवल रह जाती तब उन्हें एक स्थान पर दबाकर समाधि बना देते ।इस समाधि की प्रतिदिन पूजा करते क्योंकि आप मांगू हैं। मैंने मन ही मन सोचा कि यह मांगूहोना तो बहुत ही भयावह बात है ।”
भारतवर्ष में जो अफ्रीकी रहते हैं। इसी प्रकार यह सब अधिकतर नरभक्षी होते हैं।
दुनिया अजब गजब है
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।