श्रीमद् दयानंद ज्योतिरमठ आर्ष गुरुकुल पौंधा देहरादून के वार्षिकोत्सव का फेसबुक पर लाइव प्रसारण
ओ३म्
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वैदिक धर्म में सृष्टि के आरम्भ से गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति प्रचलित रही है। यह प्रणाली महाभारत काल में कुछ विश्रृंखलित हो गई थी। महाभारत के बाद यह विलुप्त हो गई। ऐसा माना जाता है विदेशी शासकों ने गुरुकुल शिक्षा प्रणाली का पोषण न कर अपने गुप्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिये इस शिक्षा प्रणाली को समाप्त किया। ऋषि दयानन्द (1825-1883) ने वैदिक धर्म का उद्धार किया तो उन्होंने अपने प्रमुख ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में वैदिक शिक्षा प्रणाली पर भी अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति पर प्रकाश डाला और इसे मनुष्यों के सर्वांगीण उन्नति का आधार बताया। ऋषि के इन विचारों से प्रेरणा पाकर उनके प्रमुख शिष्य स्वामी श्रद्धानन्द जी ने सन् 1902 में हरिद्वार के निकट कांगड़ी ग्राम में प्रथम गुरुकुल स्थापित किया था। इस गुरुकुल में समय के साथ अनेक उतार चढ़ाव आये। अब यह वेद वर्णित गुरुकुल न रहकर अन्य स्कूलों, विद्यालयों, महाविद्यालयों की आधुनिक शिक्षा के अध्ययन-अध्यापन का विश्वविद्यालय बन गया है जहां संस्कृत भी एक भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है। अब यह आर्यसमाज का शिक्षण संस्थान न होकर भारत सरकार का विश्वविद्यालय है जहां सरकार के नियमों के अनुसार अध्यापन होता है। स्वामी श्रद्धानंद जी ने अपने जीवन में आठ गुरुकुल खोले थे। उनकी ही तरह स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती जी ने भी गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर सहित अनेक गुरुकुल खोले व संचालित किये थे। अब इन सभी गुरुकुलों में समय के साथ परिवर्तन आ गया है। प्रायः सभी स्थानों के गुरुकुलों में आधुनिक विषयों की शिक्षा का समावेश भी इनके संचालकों को करना पड़ा है।
वर्तमान में दिल्ली में गुरुकुल गौतमनगर संचालित होता है। इस गुरुकुल के आचार्य एवं संचालक आर्यसमाज के प्रसिद्ध विद्वान एवं ऋषिभक्त स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी हैं। इनके द्वारा देश में लगभग अन्य 6 गुरुकुल भी स्थापित किये गये हैं। इन गुरुकुलों में आर्ष व्याकरण एवं पाठविधि से शिक्षण होता है। 6 जून, सन् 2000 को स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने देहरादून में एक गुरुकुल की स्थापना की थी। वर्तमान में यह श्रीमद् दयानन्द ज्योतिर्मठ आर्ष गुरुकुल पौंधा-देहरादून के नाम से प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष इस गुरुकुल का जून माह के प्रथम रविवार व उससे पूर्व के दो दिवसों शुक्रवार तथा शनिवार को तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव मनाया जाता रहा है। ऋषिभक्त विद्वान आचार्य डा. धनंजय आर्य इस गुरुकुल का विगत 20 वर्षों से आचार्यत्व कर रहे हैं। गुरुकुल में लगभग 125 बच्चे अध्ययन करते हैं। वर्तमान में आचार्य शिवकुमार वेदि जी तथा आचार्य शिवदेव आर्य आदि आचार्यमण गुरुकुल के ब्रह्मचारियों को अध्ययन कराते हैं। डा. यज्ञवीर जी का आचार्यत्व एवं मार्गदर्शन भी गुरुुल व इसके सभी ब्रह्मचारियों को प्राप्त है। पं. चन्द्र भूषण शास्त्री जी गुरुकुल के अधिष्ठाता है। गुरुकुल ने अतीत में अनेक उपलब्धियां प्राप्त की हैं। गुरुकुल से अनेक ब्रह्मचारी स्नातक बने हैं। कुछ ने पी.एच-डी. व नैट परीक्षायें भी उत्तीर्ण की है। कुछ महाविद्यालयों में अध्यापन कराते हैं। यह गुरुकुल उन्नति के पथ पर अग्रसर है। हमारी शुभकामनायें इसके सभी आचार्यों एवं संचालकों के साथ हैं।
इस गुरुकुल-पौन्धा में वार्षिकोत्सव व स्थापना दिवस के रूप में 1 जून 2020 से यजुर्वेद पारायण यज्ञ का आयोजन चल रहा है। इस आयोजन में कोरोना महामारी के लिये बनाये गये रक्षात्मक सभी नियमों यथा सोशल डिस्टेंशिंग आदि का पालन किया जा रहा है। देश में लाकडाउन एवं अन्य प्रतिबन्धों के कारण गुरुकुल प्रेमी गुरुकुल नहीं आ सके। अतः यजुर्वेद पारायण यज्ञ का गुरुकुल के फेस बुक पृष्ठ ‘हनतनानसचवदकींकमीतंकनदष् के द्वारा लाइव प्रसारण किया जाता है जिसे हजारों की संख्या में गुरुकुल प्रेमी अपने घरों में रहते हुए अपने मोबाइल पर देखते हैं। इससे वर्तमान में निराशा दूर होकर आशा का संचार होता है। यह कार्यक्रम प्रातः 7.00 बजे एवं सायं 5.00 बजे आरम्भ किया जाता है और दो से ढाई घंटे तक चलता है। यज्ञ के मध्य व पश्चात बिजनौर, जयपुर, दिल्ली, चित्तौड़गढ़ आदि स्थानों के विद्वानों व भजनोपदेशकों के प्रवचन एवं भजन भी प्रसारित किये जाते हैं। इस प्रसारण की व्यवस्था गुरुकुल के पूर्व ब्रह्मचारी एवं वर्तमान में यशस्वी ऋषिभक्त आचार्य श्री शिवदेव आर्य जी कर रहे हैं जो गुरुकुल की प्रशंसित पत्रिका ‘‘आर्ष ज्योति” के सम्पादक भी हैं। इस आयोजन ने वर्तमान परिस्थितियों में गुरुकुल की उत्सव परम्परा को आधुनिक रूप में ढालकर बनाये व बचाये रखा है। आप भी इस कार्यक्रम से जुड़ कर इसका आनन्द ले सकते हैं। निश्चय ही आपको यह कार्यक्रम पसन्द आयेगा।
आर्यसमाज की सभी संस्थायें दानियों के दान से ही चलती हैं। वेद व वैदिक साहित्य में दान की महिमा का गुणगान किया गया है। यह तर्कसंगत सिद्धान्त है कि इस जन्म में किया गया दान परजन्म में भी हमें सुख पहुंचाता है। आजकल लाकडाउन के कारण देश व राज्यों सहित स्थानीय स्तर की प्रायः सभी गतिविधियां बन्द है। आवागमन भी अवरुद्ध है। इस कारण गुरुकुलों को अपने सहयोगियों से प्राप्त होने वाली सहायता भी प्रायः बन्द है। ऐसी स्थिति में गुरुकुल प्रेमियों का कर्तव्य है कि वह अपनी श्रद्धा एवं सामथ्र्यानुसार गुरुकुलों एवं आर्य संस्थाओं की आर्थिक सहायता करें जिससे यह संस्थायंक सामान्य व अबाध रूप से चल सकें। हम सभी जानते हैं कि हमारे गुरुकुल आर्यसमाज की लाइफ लाइन हैं। गुरुकुलों से ही हमें बड़ी संख्या में विद्वान, वक्ता, प्रचारक एवं पुरोहित मिलते हैं। अतः गुरुकुलों को जीवित व तनावमुक्त रखना सभी ऋषिभक्तों एवं वैदिक धर्म एवं संस्कृति के प्रेमियों का कर्तव्य है। आप अपने कर्तव्य का विवेकपूर्वक निर्वहन करें, यह हमारी सलाह है। किसी भी पूछताछ व सुझाव के लिये आप मोबाइल न. 9411106104 एवं 7900656649 से सम्पर्क कर सकते हैं। गुरुकुल पौंधा अध्ययन एवं गुरुकुलीय वातावरण की दृष्टि से वैसा ही गुरुकुल है जैसा हम प्राचीन ग्रन्थों में पढ़ते हैं। हमारी भी गुरुकुल से अपेक्षा है कि यह वैदिक धर्म व ऋषि दयानन्द के सिद्धान्तों की रक्षा करते हुए शिक्षा के उद्देश्य सहित वैदिक धर्म की रक्षा व प्रचार प्रसार का केन्द्र बने और आर्यसमाज को वैदिक विद्वान व पुरोहित प्रदान कर इसे सशक्त एवं समृद्ध बनाये। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए आप सक्रिय रूप से गुरुकुल के साथ जुड़ कर इसे पूर्णता प्रदान कर सकते हैं।
हम आशा करते हैं कि आप अपनी सुविधानुसार गुरुकुल के कार्यक्रम का अवलोकन करेंगे और इससे लाभ उठाने के साथ अपने कर्तव्य का पालन करेंगे। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य