पटल पर चर्चा पारस्परिक सौहार्द , सौजन्य , समभाव व सार्वजनिक भाव से होनी चाहिए
पटल पर चर्चा!
(मधुकथा )
यदि हम किसी सामाजिक या राजनैतिक दर्शन में विश्वास करते हैं तो उसके ऊपर स्वयं गवेषणा कर सकते हैं या कोई पुस्तक लिख सकते हैं या फिर अपना अलग मंच या राजनैतिक दल बना कर वहाँ उसके ऊपर बहस या प्रचार प्रसार कर सकते हैं।
जो करना है उसे अपने जीवन जगत में करना है। केवल किसी पटल पर बहस करने से तो ज़्यादा कुछ नहीं होना। अनावश्यक उपदेश देना, स्वयं पंडित बन जाना, हर किसी की बुराई करना व समाज व्यवस्था को मन माने ढंग से बदलने की बातें पटल पर कहना या लिखना किसी भी तरह से उचित नहीं है। कुछ करना भी है तो उसे योजनावद्ध ढंग से करना होगा।
किसी दूसरे व्यक्ति या समूह के बनाए पटल पर दूसरों के न चाहते हुए भी अपने विचार या दर्शन का हर समय प्रचार करना या ज़ोर देना व हाबी होना, स्वयं को विद्वान समझना व योग्यों को अयोग्य समझना अनुचित है व पटल की मर्यादा के अनुकूल नहीं है। अपने व्यक्तिगत विचारों व मान्यताओं को हमें किसी के ऊपर थोपना नहीं चाहिए।
पटल प्रशासक को किसी भी पटल पर वर्ग या मज़हब या राजनीति पर आधारित अतिशय व अनावश्यक बहस जो सार्वजनिक विवेक पर आधारित न हो उसे करने की आज्ञा नहीं देनी चाहिए।
जो लोग परस्पर विनिमय की समरसता का वार वार उल्लंघन करें उन्हें पटल पर नहीं रहना या रखना चाहिए। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो पटल का वातावरण दूषित हो जाएगा और सभी विवेकी सुजन वहाँ रह कर अपना समय व मन ख़राब नहीं करना चाहेंगे।
समान भाव, परस्पर सम्मान, अपने अपने अहंकार का नियंत्रण, खुला व खिला मन व्यक्तिगत व सामाजिक स्थिरता, चैतन्यता व सार्वभौमिक जागरण के लिए आवश्यक है!
पटल पर व्यक्ति विचारों की सुगंध लेने देने और अभिव्यक्ति व अनुभूति साझा करने आते हैं! यदि उन्नत व सूक्ष्म मन मिलते हैं तो वे आनन्द अनुभव करते हैं! ऐसा नहीं हो तो वे वहाँ से विदा लेना बेहतर समझते हैं।
यदि हमें किसी पटल को चलाना है और सब लोग जो परस्पर विचारों का आदान प्रदान कर आनन्द ले रहे थे उन्हें प्रसन्न रखना है तो सदस्यों को नियम पालन कर, संयम रख कर सद्भाव में रह कर आत्म विश्लेषण करना पड़ेगा नहीं तो पटल प्रशासक को वरवश अनुशासनात्मक प्रक्रिया करनी पड़ेगी!
हर पटल पर जहाँ भी समरसता बाधित हो रही होगी यह होगा। पटल पर सदस्य संख्या ज़्यादा होने से महत्वपूर्ण है जितने अभी हैं उन सभी सदस्यों का समादर सद्भाव से रहना व परस्पर एक दूसरे की अच्छाइयों से सीखते हुए स्वयं के शरीर मन व आत्म को उत्तिष्ट करना कराना!
✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’
१ जून २०२० – ४:००
टोरोंटो, ओंटारियो, कनाडा
www.GopalBaghelMadhu.com